टैक्स स्लैब में बदलाव पर मैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को 10 में से 7 नंबर दूंगी. सरकार का फोकस काफी अच्छा रहा है. बजट में नौ पॉइंट्स के अजेंडे पर फोकस है. इंफ्रास्ट्रक्चर और खेती-किसानी पर जोर है. रोजगार सृजन और युवाओं की स्किल बढ़ाने पर जोर दिखाई देता है. इसके अलावा भी कई फैक्टर हैं. कस्टम, एमएसएमई और मैन्युफैक्चरिंग पर सरकार का ध्यान है. इकॉनोमी को कैसे बाइब्रेंट बनाया जाए, सरकार ने बहुत ही अच्छी तरह से समझाया है.
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टैक्स पर जानें एक्सपर्ट की राय
टैक्स में सिर्फ एक ही ड्रॉ बैक है कि मार्केट सेंटिमेंट बहुत बड़ी चीज है. वहीं मार्केट पार्टिसिपेंट जो रिटेल इन्वेस्टर्स हैं, वह भी मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास हैं. कैपिटल गेन्स का जो टैक्स बनता है वह इतना भारी नहीं पड़ता है. तो उसको उतना छोड़ना बहुत अच्छा आइडिया नहीं है. क्यों कि रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए यह सेटबैक है. हमें उम्मीद थी कि जिस तरह से एसबीआई चीफ ने सलाह दी थी कि सीनियर सिटीजन डिपोजिट को टैक्स फ्री करने की, हमें लगा था कि ऐसी सलाह आएगी, जिससे मार्केट और और रिटेल इनवेस्टर्स को फायदा हो सके. एसटीटी और एफईनो एक अच्छा आइडिया है, वो इस्पेक्युलेटिव ट्रेडिंग में होता है. जिसमें बहुत सारे युवा इनवेस्ट करते हैं, उसको छेड़ना ड्रॉ बैक जैसा है.
बजट में बेरोजगारी, उच्च मुद्रास्फीर्ति जैसे मुद्दों को बहुत अच्छी तरह से टैकल किया गया.कृषि में बहुत सालों से लैंड लेबर रिफॉर्म की बातें हो रही हैं, जो कभी होती नही हैं. प्रोडेक्टिविटी पर कभी भी ध्यान नहीं दिया जाता है. क्लाइमेट चेंज और वॉटर रिसोर्सेज पर कभी डिस्कशन ही नहीं होता है. लेकिन इस बजट में इन सभी मुद्दों पर पॉइंट वाई पॉइंट डिस्कशन किया गया कि कैसे प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जा सकता है. किस तरह से केंद्र और राज्य सरकार तीन तरह के प्राइवेट पार्टिसिपेशन के साथ टैकल कर सकते हैं, ताकि कृषि से रोजगार पैदा हो सके. स्किलिंग को लेकर भी हमने आइडेंटिफाई किया था.
नौकरियां हैं, लेकिन स्किल की कमी
इकनॉमिक सर्वे में भी कहा गया था कि स्किल गैप है. नौकरियां नहीं हैं ऐसा नहीं है. फाइनेंशियल सर्विसेज में ही देख लीजिए 46.86 लाख नौकरियां बीते साल क्रिएट हुए थे. लेकिन जॉब प्लेसमेंट्स 27.5. 18 लाख जॉब्स का स्किल न होने की वजह से प्लेसमेंट ही नहीं हुए. इसीलिए सरकार ने बजट में यह सजेस्ट किया है कि इंडस्ट्री के साथ काम करके और इंस्टीट्यूशन्स के साथ काम करके इस स्किलिंग गैप को तरीके से टैकल किया जा सकता है, जो कि बहुत ही अच्छा आइडिया है. इंडस्ट्री को ज्यादा क्रेडिट देना, बैंक-बैलेंस सीट क्लीन करके ज्यादा क्रेडिट लेने पर फोकस करना मुद्रास्फीर्ति में मदद करेगा, जिनका जिक्र बजट में अच्छी तरह से किया गया है.
मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर के साथ ही कृषि सेक्टर काफी सालों से भारत की इकोनॉमी की रीढ़ की हड्डी है. इसमें प्रोडेक्टिविटी पर डिस्कशन करना बहुत जरूरी है. क्यों कि आज के समय में एक देश के तौर पर हम क्लाइमेट चेंज, क्लाइमेट रेजिलिएंस, इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए ग्रोथ और डेवलपमेंट मॉडल पर आगे बढ़ रहे हैं. पिछले दो सालों से मॉनसून बहुत ही अनईवन रहे हैं. हर फसल साइकल पर MSP, वॉटर टेबल पर इंपेक्ट पर बातचीत होती है. हमारा एक फेडरल स्ट्र्क्चर है. एक तरफ सरकारी पॉलिसी और एक तरफ स्टेट पॉलिसी होती है.
कैसे किसानों को हो सकता है फायदा?
बजट में सेंट्रल पॉलिसी यूनिफॉर्म होने पर जो बात कही गई है कि फसलों की पहचान, जलवायु का लचीलापन, ये सब किसानों को आगे बढ़ा सकता है. पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की पहचान करने से हजारों और करोड़ों किसानों को फायदा हो सकता है. सिर्फ MSP की इकलौता विकल्प नहीं है. बल्कि प्राइस डिस्कवरी मॉडल, मार्केट टैक्सेस, बजट में इन सब को लेकर डिस्कशन हुआ है, जो बहुत ही अच्छी बात है.