रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि (Indian Economy Growth) को लेकर एक बयान दिया. जिसके बाद उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. रघुराम राजन ने कहा है कि देश में गंभीर संरचनात्मक समस्याएं हैं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है. उन्होंने ब्लूमबर्ग को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा कि भारत अपने मजबूत इकोनॉमिक ग्रोथ की हाइप को लेकर बड़ी गलती कर रहा है और इसे साकार करने के लिए अभी भी कई वर्षों की कड़ी मेहनत बाकी है.
नई सरकार को इन मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए: रघुराम राजन
रघुराम राजन के अनुसार, 2024 के आम चुनावों के बाद शपथ लेने वाली नई सरकार को इन मुद्दों को ठीक करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह संभावना नहीं है कि भारत 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था नहीं बन पाएगा,लेकिन उस लक्ष्य के बारे में बात करना बकवास होगा यदि आपके बहुत से बच्चों हाई स्कूल की शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं और स्कूल छोड़ने की दर उच्च बनी रहती है.
रघुराम राजन के बयान पर क्यों हो रहा विवाद?
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया है और कुछ अर्थशास्त्रियों ने उनके तर्कों को मूर्खतापूर्ण बताया है. इसको लेकर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उनका भारत में जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है.
रघुराम राजन के बयान पर टिप्पणी करते हुए मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरपर्सन मोहनदास पई ने कहा,"आरआर (रघुराम राजन) के मूर्खतापूर्ण तर्क, स्कूल छोड़ने की दर कम हुई है, कॉलेज में नामांकन बढ़ा है, भारी नौकरियां पैदा हुई हैं, हायर एजुकेशन पर वार्षिक खर्च के लिए कई वर्षों में दी गई बच्चों की सब्सिडी की तुलना गलत"
India making mistake believing ‘hype' about growth: Raghuram Rajan
— Mohandas Pai (@TVMohandasPai) March 27, 2024
Silly arguments by RR, school drop out rates are down,college enrolment increased,huge jobs created, Wrong comparison about chil subsidy given over many years,to annual spend on HE
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नीति आयोग के सदस्य और मैक्रोइकॉनॉमिस्ट अरविंद विरमानी ने भी कहा कि रघुराम राजन की टिप्पणियां उन वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा की गई लगती हैं जो कभी भारत नहीं आए हैं.
श्री विरमानी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा,"1990 के दशक के बीओपी संकट (BOP crisis) के दौरान, हमारे पास डब्ल्यूबी (World Bank), आईएमएफ(IMF) और अन्य अर्थशास्त्रियों के लिए एक शब्द होता था: पैराशूट इकोनॉमिस्ट. दुख की बात है कि एक पूर्व आरबीआई गवर्नर जिसने आधी सदी तक भारतीय अर्थव्यवस्था पर काम किया है, वह उसकी तरह लगते हैं."