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This Article is From Mar 10, 2024

देवानंद की हर फिल्म का हिस्सा हुआ करता था ये एक्टर, आज कहा जाता है भोजपुरी सिनेमा का पितामह, पता है नाम

भोजपुरी सिनेमा को पहली फिल्म देने वाला एक्टर कभी मलेशिया और सिंगापुर की जेलों में बंद रहा था. एक समय ऐसा भी आया था कि उनके पास काम तक नहीं था, जिसके बाद थियेटर से उन्होंने एक्टिंग की शुरुआत की थी.

देवानंद की हर फिल्म का हिस्सा हुआ करता था ये एक्टर, आज कहा जाता है भोजपुरी सिनेमा का पितामह, पता है नाम
भोजपुरी सिनेमा का पितामह कहा जाता है इन्हें
नई दिल्ली:

भोजपुरी सिनेमा को इस मुकाम पर पहुंचाने में एक फेसम अभिनेता का बहुत बड़ा रोल रहा है. इन्हें 'भोजपुरी सिनेमा का पितामह' भी कहा जाता है. इन्होंने बॉलीवुड में भी काम किया और जब भोजपुरी इंडस्ट्री में कदम रखा तो झंडे गाड़ दिए. हम बात कर रहे हैं एक्टर नजीर हुसैनl की. कैरेक्टर आर्टिस्ट नजीर जाने-माने अभिनेता थे और उनकी एक-एक फिल्म को दर्शक खूब पसंद किया करते थे. आइए जानते हैं उनके बारें में.

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मलेशिया-सिंगापुर की जेल में बंद रहे

15 मई 1922 को नजीर हुसैन का जन्म हुआ था. उनके पिता रेलवे में गार्ड हुआ करते थे. तब नजीर का परिवार लखनऊ में रहा करता था. अपने करियर की शुरुआत नजीर ने बतौर रेलवे फायरमैन के तौर पर की. दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन की और फिर उनकी पोस्टिंग मलेशिया और सिंगापुर में हुई. इस दौरान वे जेल में भी बंद रहे. इसके बाद भारत आए और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से काफी प्रभावित हुए. नजीर नेताजी को अपना आदर्श मानते थे.

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इस तरह सिनेमा की दुनिया में रखा कदम

जब नजीर भारत आए तो उन्हें काफी दिनों तक बिना काम के ही रहना पड़ा. इसके बाद उन्होंने थिएटर जॉइन किया. कोलकाता में थिएटर में काम करते हुए एक दिन उनकी मुलाकात बिमल रॉय से हुई. इसके बाद दोनों की मुलाकातें होती रहती थी और बाद में बिमल रॉय ने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया. कुछ समय तक नजीर राइटिंग में उनकी मदद करते रहे फिर फिल्मों में एक्टिंग करने लगे. एक समय तो ऐसा था कि नजीर बिमल रॉय की हर फिल्म का हिस्सा हुआ करते थे. 'दो बीघा जमीन', 'देवदास', 'नया दौर', और 'मुनिमजी' में उनकी एक्टिंग खूब पसंद की गई. इतना ही नहीं देवानंद की करीब-करीब हर फिल्म का हिस्सा नजीर हुआ करते थे.

इस तरह हुई भोजपुरी सिनेमा में एंट्री

बॉलीवुड के बाद नजीर ने लोकल सिनेमा की तरफ आ गए. भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से बात की. इसके बाद उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की पहली फिल्म 'मैया तोहे पियारी चढ़ाइबो' लिखी. इसमें उन्होंने काम भी किया. ये फिल्म 1963 में रिलीज हुई और यहां से भोजपुरी सिनेमा का भविष्य नजर आने लगा. इसके बाद 'हमार संसार' और 'बलम परदेसिया' जैसी फिल्मों से उन्होंने भोजपुरी की पहचान ही बदल दी.

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