एक दौर था जब टीवी पर आने वाले शोज लोगों को इतने पसंद थे कि इन्हें देखने के लिए घरों में भीड़ जमा हो जाती थी. कई टीवी शो ऐसे भी थे, जिनमें दर्शकों से उनके सुझाव मांगे जाते थे, वहीं कुछ शोज में लोगों को बर्थडे विश भी किया जाता था. अपना नाम या फिर तस्वीर टीवी पर देखने के लिए लोग इतने पागल रहते थे कि लगातार टीवी शो के पते पर अपना पोस्टकार्ड भेजते रहते थे. अब ऐसे ही एक शो के होस्ट ने एक बड़ा खुलासा किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे उन्हें एक हफ्ते में दर्शकों ने 14 लाख पोस्टकार्ड भेज दिए थे. सबसे खास बात ये है कि लोगों के इतने पोस्टकार्ड रिसीव करने के लिए उन्हें टैंपो किराये पर लेना पड़ा.
लिम्का बुक में नाम दर्ज
दरअसल 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय शो सुरभि की यहां बात हो रही है. जिसके होस्ट सिद्धार्थ काक ने शो को लेकर ये बात कही है. उन्होंने बताया कि एक हफ्ते में 14 लाख पोस्टकार्ड मिलने की वजह से उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था. इतना ही नहीं उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें मिलने वाले पोस्टकार्ड की इतनी ज्यादा संख्या के बाद संचार मंत्रालय ने पोस्टकार्ड की कीमत बढ़ा दी थी.
उम्मीद से ज्यादा चिट्ठियां
बता दें कि सिद्धार्थ काक ने रेणुका शहाणे के साथ इस लोकप्रिय शो को होस्ट किया था. सिद्धार्थ ने अपने इंटरव्यू में बताया कि देश के लोग ही हमारी रिसर्च टीम थे, जो भी आप जानना चाहते थे वो सब आपको बता देते थे. आपको सिर्फ पूछना था और वो आपको इसकी जानकारी दे देते थे. उन्होंने कहा कि हमें ऐसी प्रतिक्रिया की कभी उम्मीद नहीं थी. शो के पहले कुछ महीनों में तो करीब 10-15 और 100 से 200 चिट्ठियां मिलीं, लेकिन चार से पांच महीने बाद हमें लगभग पांच हजार पोस्टकार्ड मिलने लगे. ये काफी मुश्किल हो गया था, क्योंकि हर चिट्ठी को आपको पढ़ना था, इसलिए हमने दर्शकों से हमें एक पोस्टकार्ड भेजने के लिए कहा.
पोस्ट ऑफिस वाले भी परेशान
सुरभि के होस्ट काक ने बताया कि उस वक्त एक पोस्टकार्ड की कीमत करीब 15 पैसे थी. सरकार इस पर सब्सिडी देती थी, क्योंकि इसकी असली कीमत 50 से 60 पैसा थी. लोग इसी के जरिए एक दूसरे से बात करते थे. इसलिए सरकार की तरफ से इस पर छूट दी जाती थी. शो के लिए लोग इतने पोस्टकार्ड भेजने लगे थे कि पोस्ट ऑफिस वाले भी परेशान हो गए थे. काक ने बताया कि एक बार उन्हें अंधेरी पोस्ट ऑफिस से फोन आया कि उनके पास न तो पोस्टकार्ड रखने की जगह है और न ही इतनी बड़ी मात्रा में चिट्ठी पहुंचाने का कोई साधन है. उन्होंने कहा कि आप खुद आकर पोस्टकार्ड ले जाइए, इतनी चिट्ठियों को एक साथ लाने के लिए हमें टैंपो करना पड़ा था. क्योंकि वहां पर सैकड़ों बैग पोस्टकार्ड से भरे हुए पड़े थे.
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