बॉलीवुड में जब कभी भी म्यूजिक के क्षेत्र में दमदार आवाज की बात आती है तो उसमें ऊषा उत्थुप का नाम सबसे ऊपर आता है. ऊषा उत्थुप की आवाज में वो जादू है कि आप खुद के कदमों को थिरकने से रोक नहीं पाएंगे. ऊषा उत्थुप को फिल्म इंडस्ट्री में या आम जनता में भी बड़ी बिंदी वाली के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा कांजीवरम साड़ी और बालों में गजरा भी उनकी पहचान है. आज हम आपको ऊषा उत्थुप के शुरुआती दिनों के बारे में बताने जा रहे हैं.
नाइट क्लब से शुरू हुआ सफर
ऊषा उत्थुप की पहचान बाकी गायिकाओं से बिल्कुल अलग रही. जहां उस दौर की बड़ी-बड़ी सिंगर्स फिल्मों से मशहूर हुईं, वहीं ऊषा की असली पहचान रेस्टोरेंट और बार में हुए उनके लाइव शो से बनी. शुरुआती दिनों में उन्हें एक महीने के सिर्फ 750 रुपए मिलते थे. बाद में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी और उनकी सैलरी 1500 रुपए महीना हो गई. उस समय यह रकम किसी महिला सिंगर के लिए बहुत अच्छी मानी जाती थी. लोग उनकी गहरी, मज़बूत और अनोखी आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि धीरे-धीरे वो सुर्खियों में आ गईं.
सिर्फ़ 23 साल में बॉलीवुड डेब्यू
सिर्फ़ 23 साल की उम्र में ऊषा ने 1971 की फिल्म बॉम्बे टॉकी से बॉलीवुड में कदम रखा. उनके गाने “Good Times and Bad Times” और “Hare Om Tatsat” ने उन्हें संगीत जगत में एक नई पहचान दी.
बचपन से संगीत का जुनून
8 नवंबर 1947 को जन्मी ऊषा एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थीं. भले ही परिवार संगीत से जुड़ा नहीं था, लेकिन बचपन से ही उन्हें गाने का शौक था. सिर्फ़ 9 साल की उम्र में उन्होंने चेन्नई के Nine Gems क्लब में पहली बार स्टेज पर गाना गाया.
देव आनंद ने पहचाना हुनर
कोलकाता के Trincas क्लब में परफॉर्म करते हुए उनकी आवाज़ बॉलीवुड स्टार देव आनंद के कानों तक पहुँची. उन्होंने ऊषा को अपनी फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा (1971) में गाने का मौका दिया — और वहीं से ऊषा उत्थुप बन गईं "भारत की सबसे अलग आवाज़."
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