राष्ट्रपति से अवार्ड न मिलने पर इस एक्टर ने कहा, ‘हम तो दूल्हा बन के आ गए थे, कन्यादान कोई भी कर देता’

Newton में असिस्टेंट कमांडेंट आत्मा सिंह का किरदार निभाने वाले एक्टर पंकज त्रिपाठी को फिल्म में उनकी एक्टिंग के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया है. उन्हें स्पेशल मेंशन अवार्ड मिला है.

राष्ट्रपति से अवार्ड न मिलने पर इस एक्टर ने कहा, ‘हम तो दूल्हा बन के आ गए थे, कन्यादान कोई भी कर देता’

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के साथ पंकज त्रिपाठी

खास बातें

  • NSD से ली हैं एक्टिंग की ट्रेनिंग
  • बिहार के बरौली में हुआ जन्म
  • 'न्यूटन' के लिए मिला सम्मान
नई दिल्ली:

Newton फिल्म में असिस्टेंट कमांडेंट आत्मा सिंह का किरदार निभाने वाले एक्टर पंकज त्रिपाठी को फिल्म में उनकी एक्टिंग के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया है. उन्हें स्पेशल मेंशन अवार्ड मिला है और इस पर वे बेहद खुश भी हैं. लेकिन पंकज उन विजेताओं में रहे जिन्हें अवार्ड राष्ट्रपति के हाथों से नहीं मिला. दिल्ली से पुरस्कार लेकर लौटने के बाद जैसी ही वे घर में दाखिल हुए तो उनकी बिटिया ने उनके लिए सरप्राइज तैयार कर रखा था और पूरे घर को सजा रखा था. कई गिफ्ट भी थे और पड़ोस के बच्चे भी घर में ही थे. बिहार के बरौली में जन्मे और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग का हुनर मांजने वाले पंकज त्रिपाठी 'बरेली की बर्फी', 'निल बटे सन्नाटा' और 'फुकरे' जैसी फिल्मों में नजर आ चुके हैं, हमेशा ही उनका काम पसंद किया गया है.

इसी खुशी के माहौल के बीच उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

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राष्ट्रपति के हाथों ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ ने मिलने पर कैसा लगा?
मेरे लिए सम्मान अहम है. चाहें इसे राष्ट्रपति दें या मंत्री.

इस बात की जानकारी कब मिली?
इसकी जानकारी यहां आने पर ही मिली. हम तो दूल्हा बनकर आ गए थे, कन्यादान कोई भी कर देता. यहां पुरस्कार मायने रखता है.

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कुछ तो मलाल होगा कि राष्ट्रपति से पुरस्कार नहीं मिला?
कोई मलाल या टीस नहीं. ये देश की ओर से मिला सम्मान है. जूरी ने हमें चुना है. ऐसे में कोई मायने नहीं रखता कौन दे रहा है. 

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद क्या फिल्मों को लेकर चॉयस बदलेगी?
अभी तो मैं 6-7 फिल्में कर चुका हूं. कॉन्फिडेंस भी बढ़ गया है, जिम्मेदारी भी बढ़ गई है. किरदारों को लेकर थोड़ा चूजी हो जाऊंगा. मनोरंजन के साथ मीनिंगफुल बात करने की हमेशा कोशिश करता हूं और करता रहूंगा.



हालांकि वे यह कहना नहीं भूलते कि यह राष्ट्रीय पुरस्कार तो शुरुआत है, ऐसे मौकों के लिए कई बार दिल्ली आते रहेंगे. वाकई जिस तरह का उनका काम है तो ढेर सारे मौके मिलेंगे ही.

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