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This Article is From Jan 18, 2018

शराब की एक बोतल के लिए कहानी लिख देते थे मंटो, आज बॉलीवुड है उन पर फिदा

उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो को दुनिया को अलविदा कहे हुए आज 63 साल हो चुके हैं.

शराब की एक बोतल के लिए कहानी लिख देते थे मंटो, आज बॉलीवुड है उन पर फिदा
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उर्दू लेकर सआदत हसन मंटो पर बॉलीवुड फिदा
मंटो की जिदगी की कुछ दिलचस्प बातें
उनपर हाल ही में एक शॉर्ट फिल्म भी बनी
नई दिल्ली: उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो को दुनिया को अलविदा कहे हुए आज 63 साल हो चुके हैं. लेकिन आज भी वे अपने पाठकों की यादों में ताजा हैं, और बदलते समाज के साथ मंटो की प्रासंगिकता और बढ़ ही रही है. तभी तो बॉलीवुड आज मंटो को लेकर इतना काम कर रहा है जितना पहले कभी नहीं किया गया है. मंटो का जन्म 11 मई, 1912 को लुधियाना के एक बैरिस्टर के परिवार में हुआ था. मंटो कश्मीरी मूल के थे और उन्हें अपने कश्मीरी होने पर बहुत गर्व भी थी. उन्होंने पढ़ने की शुरुआत रूसी साहित्य से की और उसके बाद तो वे लिखने और पढ़ने की ओर खिंचते ही चले गए. 

उन्होंने 22 कहानी संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटकों की पांच सीरीज, रेखाचित्र के अलावा निबंध भी लिखे. उन्होंने तत्कालीन हिंदी सिनेमा में काम किया और अशोक कुमार उनके खास दोस्त भी थे. मंटो को विभाजन पर लिखी गई अपनी कहानियों के लिए खास तौर से पहचाना जाता है. मंटो के ऊपर छह बार अश्लीलता के आरोप लगे लेकिन उन्हें कभी भी सजा नहीं सुनाई गई. ये मुकदमे 'बू', 'काली शलवार','ऊपर-नीचे', 'दरमियां', 'ठंडा गोश्त', 'धुआं' पर मुकदमे चले. उनका निधन 18 जनवरी, 1955 को हुआ था. उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातेः

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मंटो की जिदगी की कुछ दिलचस्प बातें
मंटो एक जबरदस्त राइटर थे लेकिन शराब की लत ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा था. उनकी शराब की लत का फायदा एडिटर लोग उठाते थे और उन्हें एक शराब की बोतल का लालच देकर कहानी लिखवा लेते थे. दिलचस्प बात यह है कि उनके नॉटी नेचर की वजह से लोग उन्हें टॉमी बुलाते थे और वे मैट्रिक में उर्दू में दो बार फेल भी हुए थे. मंटो कोई भी कहानी लिखने से पहले 786 लिखा करते थे. दिलचस्प यह है कि सोहराब मोदी की “मिर्जा गालिब” की कहानी मंटो ने ही लिखी थी. “मिर्जा गालिब” को 1954 के नेशनल फिल्म अवार्ड से नवाजा गया था.

मंटो पर फिदा बॉलीवुड
इन दिनों बॉलीवुड में मंटो को लेकर काफी सुगबुगाहट है. राहत काजमी ने मंटो की चार कहानियों ''खोल दो", ''ठंडा गोश्त", ''आखिरी सैल्यूट" और ''गुरमुख सिंह की वसीयत" को लेकर ‘मंटोस्तान’ नाम से फिल्म बनाई है. दूसरी ओर, डायरेक्टर नंदिता दास मंटो की जिंदगी को परदे पर उतराने की जुगत में लग गई हैं. नंदिता मंटो की 1946 से 1952 की सात साल की लाइफ को दिखाएंगी. नंदिता मंटो की किस्सागोई की फैन हैं.

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यही नहीं, मंटो की शादी से जुड़े उनके संस्मरण पर हाल ही में एक शॉर्ट फिल्म भी बनी है. जिसे श्रीवास नायडू ने डायरेक्ट किया है और रवि बुले भी फिल्म के प्रोड्यूसर हैं. इसमें मंटो की शादी से जुड़े दिलचस्प प्रसंग दिखाए गए हैं. मंटो ने खुद को लेकर एक हसरत जताई थी, “यह संभव है सआदत हसन (एक आदमी) मर जाए लेकिन मंटो (लेखक) कभी नहीं मरेगा.” और यह बात वाकई सच है.

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