चॉकलेटी सूरत और अनोखे डांसिंग स्टाइल के कारण बॉलीवुड में अलग जगह बनाने वाले जितेंद्र अब भले ही अभिनय की दुनिया में एक्टिव न हों, लेकिन 70 से लेकर 90 के दशक तक उन्होंने बॉलीवुड से लेकर साउथ तक के फिल्मों में जमकर सफलता बटोरी थी. 1971 में उस समय की स्टार आशा पारेख के साथ उनकी फिल्म ‘कारवां' ने कई रिकार्ड तोड़ दिये थे. इस फिल्म की टिकट ऑल टाइम हिट शोले से भी ज्यादा बिके थे. हालांकि आगे चलकर उनका फिल्म मेकर बनने का फैसला किया जो उन्हें ज्यादा रास नहीं आया.
फिल्म मेकिंग में जितेंद्र ने आजमाया हाथ
अपने करियर में दो सौ से ज्यादा फिल्मों के काम करने वाले जितेंद्र की सौ फिल्में सफल रही हैं. हालांकि बाद में उन्हें कई बार असफलता का मुंह भी देखना पड़ा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जितेंद्र ने एक बार अपनी फिल्म को सिनेमाघर में बनाए रखने के लिए उसकी सारी टिकटें खुद ही खरीद ली थी. सालों तक बॉलीवुड पर राज करने के बाद उन्होंने फिल्में बनाने को फैसला किया. शुरुआती सफलता के बाद उन्हें एक इतने बड़े फ्लॉप का सामना करना पड़ा कि उन्होंने हमेशा के लिए फिल्म मेकिंग से तौबा कर ली.
टूट गया जितेंद्र का सपना
निर्देशक एचएस रवैल के बहुत बड़े फैन रहे जितेंद्र ने उनकी फिल्म ‘मेरे मेहबूब' देखकर उनके साथ काम करने का मन बना लिया था. इंडस्ट्री में अपनी धाक जमाने के बाद जितेंद्र ने फिल्म मेकर बनने का सोचा और अपना बैनर तिरूपति फिल्म्स शुरू किया. भाई प्रसन्न कपूर ने इस बैनर के तहत कई फिल्में बनाई, जो सफल भी साबित हुईं. लेकिन जब जितेंद्र ने मन बनाया कि वह ‘मेरे मेहबूब' जैसी कोई फिल्म बनाएंगे तो उन्होंने रवैल के साथ ‘दीदार- ए-यार' फिल्म बनाई. इसमें जितेंद्र, ऋषि कपूर, रेखा और अशोक कुमार नजर आए थे. उम्मीद के विपरीत फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गई. फिल्म को दर्शक नहीं मिले. दीदार-ए-यार फ्लॉप साबित हुई और जितेंद्र के सपने चूर-चूर हो गए .उन्हें इस फिल्म से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन वह नाउम्मीद हुए और इसके बाद उन्होंने कभी फिल्म नहीं बनाने की कसम खा ली.
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