56वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएफएफआई) में गुरुवार को 'शोले के 50 साल: क्यों शोले आज भी दिलों में बसती है' का सेशन हुआ. इस सेशन में फिल्ममेकर रमेश सिप्पी ने फिल्म के सफर और उसकी खासियतों पर बात की. रमेश सिप्पी ने बताया कि शोले में गब्बर सिंह का किरदार किस तरह अमजद खान के लिए फिट बैठा. उन्होंने कहा, "अमजद खान खुद एक खोज थे, और मैं पहले उन्हें किसी नाटक में देख चुका था, लेकिन उनके बारे में भूल गया था. जब पटकथा लेखक सलीम-जावेद ने उनका नाम सुझाया, तो मुझे यह बिल्कुल सही विकल्प लगा."
रमेश सिप्पी ने कहा, ''इसके पीछे एक और वजह भी थी, क्योंकि डैनी डेन्जोंगपा, जो गब्बर का रोल निभाने वाले थे, उस समय अफगानिस्तान में शूटिंग कर रहे थे और वापस नहीं आ सकते थे. डैनी की अनुपस्थिति ने अमजद खान को गब्बर के रूप में मंच प्रदान किया और उनके यूपी स्टाइल का लहजा इस किरदार के लिए बिल्कुल उपयुक्त साबित हुआ. यह मौका अमजद के लिए भाग्य जैसा था और इस रोल ने उन्हें बॉलीवुड में अमर कर दिया.''
उन्होंने बताया कि शोले के लिए लोकेशन चुनना भी एक चुनौतीपूर्ण काम था. बेंगलुरु से करीब 50 किलोमीटर दूर चट्टानों और वीरान इलाकों वाली एक जगह को चुना, जो पहले डाकुओं से जुड़ी फिल्मों में सामान्य रूप से नहीं देखी गई थी. इस नई लोकेशन ने फिल्म को एक अलग माहौल दिया, जो दर्शकों के लिए अब भी यादगार है.
धर्मेंद्र के बारे में बात करते हुए रमेश सिप्पी भावुक हो उठे. उन्हें याद करते हुए कहा कि 'शोले' के छह बड़े कलाकारों में से तीन अब इस दुनिया में नहीं हैं, जिनमें संजीव कुमार, अमजद खान और धर्मेंद्र शामिल हैं. उन्होंने कहा, ''बॉलीवुड में उनकी कमी हमेशा महसूस होगी. धर्मेंद्र अपने सहज और मिलनसार स्वभाव के कारण हर किसी के दिल में बसते थे. उनके जाने से जो खालीपन आया है, उसे शब्दों में बताना मुश्किल है.''
फिल्म 'शोले' 1975 में रिलीज हुई थी. यह बॉलीवुड की सबसे यादगार फिल्मों में से एक मानी जाती है. इसमें अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमजद खान, जया बच्चन और हेमा मालिनी मुख्य भूमिकाओं में थे.
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