
पुराने दौर की फिल्मों में कुछ ऐसा जादू था जो आज भी लोगों को बांध कर रखता है. खासकर ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा की मासूमियत और दिल छू लेने वाले किस्से आज भी दिलों में जिंदा हैं. आज के दौर में जब फिल्मों का सौ करोड़ क्लब आम बात हो गया है, तब सोचिए, 1956 में जब एक फिल्म ने ढाई करोड़ की कमाई की थी, तो इसे कितनी बड़ी कामयाबी माना गया होगा. हम बात कर रहे हैं गुरुदत्त प्रोड्यूस और राज खोसला निर्देशित फिल्म सीआईडी की, जिसने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रचा बल्कि वहीदा रहमान को बॉलीवुड में शानदार एंट्री भी दिलाई.
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जब ‘सीआईडी' बनी क्राइम थ्रिलर का बादशाह
30 जुलाई 1956 को रिलीज हुई फिल्म सीआईडी उस दौर में रोमांच और मिस्ट्री का बेहतरीन कॉम्बिनेशन लेकर आई. फिल्म में देव आनंद ने एक पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाया, जो एक मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में जुटा होता है. साथ में थीं एक्ट्रेस शकीला और वहीदा रहमान, जिनकी आंखों की अदाएं और स्क्रीन प्रेजेंस ने दर्शकों को दीवाना बना दिया.
वहीदा रहमान की धमाकेदार एंट्री
सीआईडी वहीदा रहमान की पहली हिंदी फिल्म थी, हालांकि इससे पहले वो एक तेलुगु फिल्म में काम कर चुकी थीं. लेकिन हिंदी सिनेमा में उनका सफर यहीं से शुरू हुआ. गुरु दत्त को वहीदा का टैलेंट इतना पसंद आया कि उन्होंने अगली ही फिल्म प्यासा में भी उन्हें साइन कर लिया और फिर वहीदा बन गईं उस दौर की सबसे पॉपुलर एक्ट्रेस बन गईं.
जब हर गली में गूंजे ‘सीआईडी' के गाने
फिल्म की कहानी तो मजबूत थी ही, लेकिन जो बात इसे अमर बना गई वो था इसका म्यूजिक. ओ.पी. नैयर के धुनों और मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गानों ने चार चांद लगा दिए. 'आंखों ही आंखों में इशारा हो गया', 'लेके पहला पहला प्यार', 'बूझ मेरा क्या नाम रे', 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' और 'ये है बॉम्बे मेरी जान' जैसे गाने आज भी क्लासिक माने जाते हैं.
55 लाख की फिल्म ने कमा डाले थे 2.5 करोड़!
उस दौर में जब फिल्में लाखों में बनती थीं, सीआईडी ने सिर्फ दर्शकों के दिल नहीं जीते बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी झंडे गाड़ दिए. महज 55 लाख की लागत से बनी ये फिल्म करीब ढाई करोड़ रुपये का कलेक्शन कर गई जो 1956 के हिसाब से किसी ब्लॉकबस्टर से कम नहीं था.