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न कोई हीरो, न हीरोइन... फिल्म 'आजाद भारत' में दिखेगा महिला रेजिमेंट का वो रूप जो पहले कभी नहीं देखा

"यह फिल्म सिर्फ नेताजी या नीरा आर्या की नहीं है बल्कि, इसमें छज्जूराम जी, भगत सिंह जी और कई बहादुर महिला योद्धाओं जैसे सरस्वती राजामणि जी और दुर्गाजी की कहानी भी है, जिन्होंने देश के लिए सब कुछ त्याग दिया था."

न कोई हीरो, न हीरोइन... फिल्म 'आजाद भारत' में दिखेगा महिला रेजिमेंट का वो रूप जो पहले कभी नहीं देखा
यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित काल्पनिक कहानी है- रूपा अय्यर

देशभक्ति वाली फिल्मों का नाम सुनते ही हमारे मन में बॉर्डर की लड़ाई या किसी बड़े लीडर की कहानी आने लगती है. लेकिन इस बार डायरेक्टर रूपा अय्यर कुछ ऐसा लेकर आ रही हैं, जो हमें इतिहास के उन पन्नों पर ले जाएगा जिन्हें अक्सर भुला दिया गया. उनकी आने वाली फिल्म 'आजाद भारत' (Azad Bharat) इन्हीं अनसुने नायकों और खासकर महिला योद्धाओं की बहादुरी की दास्तां है. इस फिल्म के बारे में हाल ही में अय्यर ने आईएएनएस से खास बातचीत की है, जिसमें उन्होंने इस फिल्म से जुड़ी खास बातें साझा की है. 

 स्कूल के दिनों से था नेताजी से लगाव

निर्देशक रूपा अय्यर ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "स्कूल के दिनों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में पढ़कर उनके लिए दिल में एक विशेष जगह बनी रहती है. बाद में आईएनए की कई कहानियां और संदेश पढ़ने से मेरी रुचि और भी ज्यादा बढ़ गई थी. जब मैंने नीरा आर्या के बारे में जाना, तो उनकी कहानी अलग और बहुत प्रभावशाली लगी. मैं ऑनलाइन कुछ सार्थक चीज ढूंढ रही थी और वहीं से यह सफर शुरू हुआ."

कैसे शुरू हुआ यह सफर?

निर्देशक ने बताया कि उनकी मुलाकात नेताजी की परपोती राजश्री चौधरी से हुई थी और बाद में आईएनए की बहुत सी कहानियां मेरे सामने खुलीं. उन्होंने कहा, "राजश्री चौधरी से मुलाकात के बाद मुझे आईएनए से जुड़े हुए माधवन जी, मीनाक्षी अम्मन जी और लक्ष्मी जी की असली कहानियों के बारे में पता चला. उस समय मुझे समझ आया कि आज की पीढ़ी के लिए हमारे अनसुने नायकों की कहानियां वापस लानी चाहिए."

सिर्फ नेताजी नहीं, महिला ब्रिगेड की भी है कहानी

निर्देशक ने कहा, "यह फिल्म सिर्फ नेताजी या नीरा आर्या की नहीं है बल्कि, इसमें छज्जूराम जी, भगत सिंह जी और कई बहादुर महिला योद्धाओं जैसे सरस्वती राजामणि जी और दुर्गाजी की कहानी भी है, जिन्होंने देश के लिए सब कुछ त्याग दिया था."

उन्होंने आगे कहा, "मैं इनकी कहानियों को लोगों के सामने लाना चाहती थी. ये कहानी लिखते समय यह मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए थे. यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित काल्पनिक कहानी है. आईएनए की पूरी यात्रा को एक फिल्म में दिखाना मुश्किल है. यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी है, जो उस भावना को जीवंत करने की कोशिश करती है."

इस फिल्म में रूपा ने निर्देशन के साथ अभिनय भी किया है. उन्होंने फिल्म को लेकर कहा, "नेताजी पर कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन हमने झांसी रेजिमेंट और महिला योद्धाओं पर फोकस किया है. हमने महिलाओं की कठिन ट्रेनिंग, लड़ाई सीखना और बिना किसी विशेष मदद के युद्ध लड़ना दिखाया है."

कोई हीरो-हीरोइन नहीं, सब देशभक्त हैं

फिल्म में कास्टिंग को लेकर रूपा ने कहा कि यह किस्मत का खेल था. नेताजी के रोल के लिए श्रेयस तलपड़े की शक्ल, बॉडी लैंग्वेज और अंदाज पूरी तरह मैच करते हैं. सरस्वती राजामणि के लिए ग्लैमर नहीं, बल्कि असली मौजूदगी चाहिए थी. फिल्म में कोई हीरो-हीरोइन नहीं, सिर्फ देशभक्त हैं. हर किरदार का बराबर योगदान है.

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