This Article is From Aug 11, 2021

तालिबान आपकी बात क्यों मानेगा?

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Sanjay Ahirwal

अफ़ग़ानिस्तान धीरे धीरे तालिबान के क़ब्ज़े में जा रहा है और इसके कारण जो देश सबसे ज़्यादा परेशानी में है, वह है भारत. तालिबान के रिश्ते हमेशा से पाकिस्तान से बेहद गहरे रहे हैं. ISI और पाकिस्तानी सेना हमेशा से तालिबान की पूरी मदद करती आई है. शायद यही वजह है कि तालिबान ने भारत के साथ रिश्तों को कभी तवज्जो नहीं दी. यहां तक कि सन 1999 के IC-814 के हाईजैक के समय तालिबान ने कांधार एयरपोर्ट पर आतंकवादियों की ही पूरी मदद की थी. पहले उन्हें हथियार सप्लाई करने में, फिर सुरक्षित पाकिस्तान भगवाने में.

तालिबान के भारत-विरोधी आतंकवादी गुट जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से भी घनिष्ठ संबंध हैं. इस गुटों की सारी आतंकवादी ट्रेनिंग अफ़ग़ानिस्तान में ही करवाई जाती है. और भारत को डर है कि अगर वह देश पूरी तरह से तालिबान के क़ब्ज़े में चला गया, तो वहां काम कर रहे सैकड़ों भारतीयों का जीवन ख़तरे में पड़ जाएगा. ये भारतीय अफ़ग़ानिस्तान में सरकार की तरफ़ से चल रही योजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिनमें रोड बनाना, अस्पताल बनाना, डैम बनाना जैसी परियोजनाएं शामिल हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीयों को लेकर असुरक्षा की भावना इतनी है कि विदेशमंत्री एस. जयशंकर पिछले दो महीनों में कई राजधानियों का चक्कर लगा चुके हैं, जिन में ईरान, कतर, रूस, उज़बेकिस्तान और कज़ाक़िस्तान शामिल हैं.

तालिबान यूं तो इस वक्त अफ़ग़ानिस्तान के अंदर अपनी पहुंच और स्थिति मज़बूत करने में लगा है. हर रोज़ नए इलाक़े अपने सैन्य क़ब्ज़े में ले रहा है, लेकिन साथ-साथ उसने साफ़ कर दिया है कि उसके लिए पाकिस्तान और चीन हमेशा दोस्त रहेंगे. वहां रह रहे चीन के लोगों और उनके द्वारा कार्यान्वित परियोजनाओं पर आंच नहीं आएगी.

तालिबान का शासन पूरी तरह से कट्टर धर्म पर आधारित है. इसी गुट ने बामियान की विशालकाय बुद्ध मुर्तियों को तुड़वा दिया था. वे मूर्तियां विश्व धरोहर थीं. सभी देश कहते रह गए कि मूर्तियां न तोड़ी जाएं, पर तालिबान ने किसी की न सुनी. ये होती है धर्मांन्धता. वे इस्लाम धर्म के अपने समझे कट्टर विचारों में बिल्कुल अंधे हो चुके हैं और किसी की सुनने को तैयार नहीं. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान का नाम भी तो है इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान.

लेकिन भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है. चलो, यहां भी बाबरी मस्जिद भीड़ के उन्माद का शिकार बनी, लेकिन फिर भी हम मानते रहे कि यहां हर भारतीय, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, एकदम सुरक्षित रह सकता है. क़ानून, पुलिस, कोर्ट तो सबके लिए बराबर हैं. ऐसा यहां का संविधान कहता है. तो यहां कैसे राजधानी दिल्ली में संसद भवन से पांच किलोमीटर की दूरी पर खुलेआम मुस्लिम विरोधी नारे लग रहे हैं.

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'नेशनल दस्तक' के पत्रकार अनमोल प्रीतम को भीड़ जंतर मंतर पर घेरकर ज़बरदस्ती 'जय श्रीराम' के नारे लगाने के लिए मजबूर करती है, "बोलो, नहीं तो देश से बाहर जाओ..." वह तो प्रीतम की बहादुरी की दाद दीजिए कि उसने घुटने नहीं टेके और कहा, "अपने मन से कहूंगा, लेकिन तुम्हारे दबाव में आकर तो बिल्कुल नहीं बोलूंगा..." संसद से पांच किलोमीटर की दूरी पर अगर हिन्दुओं के साथ यह बर्ताव हो रहा है, तो ऐसी भीड़ के सामने मुसलमानों का क्या हाल होगा, वह सब समझ सकते हैं.

जो खुलेआम पुलिस की मौजूदगी में जंतर मंतर पर हुआ, उसे देख पत्रकार ह्रदयेश जोशी ने ट्विटर पर लिखा, "भीड़ मुझे घेर लेगी और मेरे सिर पर तमंचा रख देगी तो शायद मैं भी कहूंगा "जय श्री राम", पर वह आवाज़ मेरी न होगी, तब राम भी वह नहीं होगा, जो मरते वक्त गांधी के मुंह से निकला था. इस देश का हर मुसलमान मेरा भाई-बहन है और तुम मुझे उनके खिलाफ खड़ा करने के लिए राम का इस्तेमाल नहीं कर सकते."

यह सब कितना डरावना और भयावह है, इसका अंदाज़ा आपको तब ही होगा, अगर आप अल्पसंख्यक समाज से हों. संदेश सब तरफ़ जा रहा है. पुलिस चुप है! अदालतें चुप हैं. सबकी चुप्पी और सहमति है, जो हो रहा है, होने दो. पूरी शह दी जा रही है.

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पूर्व पत्रकार, लेखक और फ़िल्म निर्देशक विनोद कापडी कहते हैं, "यह न अफ़ग़ानिस्तान है… न तालिबान… यह राजधानी दिल्ली है… भारत की संसद से कुछ दूर संसद मार्ग थाने का इलाक़ा, जहां खुलेआम आपत्तिजनक नारे लग रहे हैं."

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने जब पुलिस अधिकारियों से जानना चाहा कि खुलेआम ऐसा सांप्रदायिक ज़हर उगल रहे लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, तो इलाक़े के DCP ने कहा कि आपको दिक़्क़त है, तो रपट लिखाइए, हमारा काम नहीं है कि भाषण दे रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करते फिरें!

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यह हाल है दिल्ली का. नूंह मेवात जैसे इलाक़ों में जो हो रहा है, उस पर तो नज़र देर से पड़ती है. उत्तर प्रदेश के अंदरूनी इलाक़ों का भी यही हाल है. और आज सोशल मीडिया के ज़माने में सब वायरल हो रहा है. सब जगह तस्वीरें देखी जा रही हैं.

अब पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन अब भी कुछ लोग उनके समर्थन में पुलिस थाने के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं.

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देख तो तालिबान भी रहा होगा कि सिर्फ़ धर्म के नाम पर भारत के अंदर क्या हो रहा है? वह भी उसके अपने भारतीय नागरिकों के साथ. तो फिर किस मुंह से भारत अफ़ग़ानिस्तान में अपने नागरिकों को बचाने की गुहार करेगा. वह भी एक ऐसे गुट से, जिसकी भारत के ख़िलाफ़ नफ़रत इतनी गहरी है कि वह रॉयटर के पुलित्ज़र प्राइज़ जीते कश्मीरी फ़ोटोग्राफ़र दानिश सिद्दीक़ी को भी मारने से बाज नहीं आता.

तालिबान समझने की कोशिश नहीं करेगा कि UP, हरियाणा, दिल्ली में हो रहा हिन्दुत्व धार्मिक उन्माद राजनीतिक है, और इसका सीधा जुड़ाव कई राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से है. तालिबान के लिए तो इतना काफ़ी है कि अगर भारत में धर्म के नाम पर ज़्यादतियां हो रही हैं, तो अफ़ग़ानिस्तान में उसे ऐसा करने से कौन सी ताक़त रोकेगी. भई, पत्थर मारने का हक़ भी तो उसे ही होता है, जिसने कोई पाप न किया हो!

प्रोफ़ेसर संजय अहिरवाल गुड़गांव की एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म और मास कम्युनिकेशन में डीन के पद पर कार्यरत हैं. इससे पहले वह 25 साल तक पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं. शुरू में 'इंडिया टुडे' की वीडियो न्यूज़ मैगज़ीन 'न्यूज़ट्रैक' में और फिर सन 1995 से NDTV में. संजय NDTV इंडिया के संपादक और NDTV वर्ल्डवाइड में कार्यकारी संपादक भी रह चुके हैं. पत्रकारिता में उनकी पहचान एक रिपोर्टर की रही और उन्होंने कारगिल सहित इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और लेबनान में युद्ध कवर किए. उनके लेख कई पत्रिकाओं और पोर्टल में छपते रहते हैं.

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