This Article is From Jun 07, 2024

PM नरेंद्र मोदी के पहले भाषण के क्या हैं बड़े मायने...?

विज्ञापन
Harish Chandra Burnwal

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता-जनार्दन ने जो जनादेश दिया है, उस पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. एक ओर कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से इस बार उन्हें दबाव में काम करना पड़ेगा और बड़े एवं कड़े फैसले लेने में उनके समक्ष कई मुश्किलें आ सकती हैं. दूसरी ओर यह भी तर्क दिया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव का यह रिजल्ट ऐतिहासिक है, क्योंकि 1962 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के बाद पहली बार यह प्रधानमंत्री मोदी की सरकार है, जिसने दो कार्यकाल पूरा होने के बाद लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है. यह सच है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने की सबको आशा थी, जिसमें वह नाकाम रही, लेकिन उसके नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत से कहीं अधिक 293 सीटें मिली हैं.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह गठबंधन चुनाव से पहले का है, यानी वैसा गठबंधन नहीं है, जैसा देश में पहले कई चुनावों में देखा जा चुका है, जब चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन बने. ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले इस गठबंधन की सरकार के स्थायित्व को कोई दिक्कत नहीं है. फिर भी सवाल उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को सरकार चलाने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों पर समझौता करना पड़ेगा, जैसा उनके पिछले दो कार्यकालों में कभी भी नहीं दिखा. इन बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी के थर्ड टर्म की सरकार क्या कमजोर सरकार साबित होगी? इन सवालों का जवाब आपको प्रधानमंत्री मोदी के उस पहले भाषण में मिलेगा, जो उन्होंने चुनाव परिणामों के आने के बाद दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में दिया.

गठबंधन कैसे काम करेगा

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में साफ कर दिया कि गठबंधन की यह सरकार कैसे काम करेगी. उन्होंने कहा, "केंद्र की NDA सरकार, सभी राज्य सरकारों के साथ, चाहें वे किसी भी दल की क्यों न हों... मिलकर काम करेगी..."

Advertisement
साफ है, उन्हें इस बात का भी अहसास है कि गठबंधन के दलों को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं हैं और इन दलों को एक साथ लेकर चलने के लिए गवर्नेंस का ऐसा एजेंडा होना चाहिए, जिस पर सभी दल सहमत हों.

उस गवर्नेंस के एजेंडे के बारे में उन्होंने कहा, "यह राष्ट्रनीति के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने का समय है... विकसित भारत के लिए हमें निरंतर बड़े फैसले लेने हैं, भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए उत्तम फैसले भी लेने हैं..."

Advertisement

लेकिन देश का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि क्षेत्रीय दलों की अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं होती हैं, जिन्हें एक सूत्र में लाना टेढ़ी खीर है, जिसके लिए अधिक परिश्रम और आउट ऑफ द बाक्स वाली नेतृत्व क्षमता चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी अपने लंबे राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के साथ गठबंधन की राजनीति में भी इस क्षमता का बखूबी परिचय देने में सक्षम हैं. गठबंधन सरकार में भी देश के लिए उनके समर्पण भाव को उनके भाषण के इस हिस्से से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा, "मैं देशवासियों के समक्ष दोहराना चाहता हूं, आप 10 घंटे काम करेंगे, तो मोदी 18 घंटे काम करेगा... आप दो कदम चलेंगे, तो मोदी चार कदम चलेगा... हम भारतीय मिलकर चलेंगे, देश को आगे बढ़ाएंगे..."

Advertisement

गठबंधन सरकार के तौर-तरीके

गठबंधन की राजनीति में सरकार में निर्णय लेने के तौर-तरीकों में परिवर्तन आना स्वाभाविक है, जो प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण से समझ में आ जाता है. लेकिन इस बदलाव से पिछले दस सालों से चली आ रही नीतियों और योजनाओं में क्या कोई परिवर्तन आ सकता है? इसको लेकर उठ रही आशंकाओं पर उन्होंने कहा, "आने वाला समय Green Era - हरित युग का है... आज भी हमारी सरकार की नीतियां प्रगति-प्रकृति और संस्कृति के समागम की हैं... हम Green Industrialisation पर निवेश बढ़ाएंगे... ग्रीन एनर्जी हो या ग्रीन मोबिलिटी... हम भारत को सबसे आगे ले जाएंगे... भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनाने के लिए NDA सरकार पूरी शक्ति से काम करेगी..."

Advertisement

गठबंधन सरकार का एजेंडा

इस चुनाव में नौकरी और रोजगार को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की गई, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को देखें, तो विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि की दिशा में उन्होंने इस ओर भी अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण में कहा, "हम अपने युवाओं को शिक्षा, रोजगार-स्वरोजगार हर क्षेत्र में सशक्त करते रहेंगे... किसानों के लिए बीज से बाजार तक आधुनिक नीतियों को बनाने का काम और प्राथमिकता पर होगा... दलहन से लेकर खाद्य तेल तक, हम हमारे किसानों को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करते रहेंगे..."

लेकिन देश में रोजगार और स्वरोजगार तभी पैदा होंगे, जब भारत दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बने और इसके लिए आवश्यक है कि वैश्विक कंपनियां बड़े पैमाने पर निवेश करें. तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि गठबंधन की सरकार के दौर में वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश करेंगी?

इस आशंका का भी जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत, ग्लोबल सप्लाई चेन को stability और diversity देना भी अपना दायित्व समझता है... इसलिए भारत आज विश्वबंधु के रूप में सबको गले लगा रहा है... मुझे विश्वास है, मजबूत भारत, मजबूत दुनिया का मजबूत स्तंभ सिद्ध होगा..."

गठबंधन सरकार का मतलब मजबूत लोकतंत्र

इस चुनाव के दौरान भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रिया पर इन्डी गठबंधन और उसके वैश्विक इकोसिस्टम ने न सिर्फ जमकर सवाल उठाए, बल्कि उसे बदनाम भी किया. लेकिन चुनाव परिणामों ने जिस तरह से चुनाव आयोग और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की निष्पक्षता को साबित किया, उस पर विपक्ष के किसी भी नेता ने एक भी बयान नहीं दिया. इन्डी गठबंधन के किसी भी नेता ने चुनाव आयोग को शाबासी नहीं दी, लेकिन प्रधानमंत्री ने इस भाषण में साफ कर दिया कि भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत और निष्पक्ष है. उन्होंने कहा, "मैं आज देश के चुनाव आयोग का भी अभिनंदन करूंगा... चुनाव आयोग ने दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव इतनी कुशलता के साथ संपन्न कराया... करीब 100 करोड़ मतदाता... 11 लाख पोलिंग स्टेशन... डेढ़ करोड़ मतदान कर्मी... 55 लाख वोटिंग मशीनें... हर कर्मचारी ने इतनी प्रचंड गर्मी में अपने दायित्व को बखूबी निभाया..." उन्होंने आगे कहा, "चुनाव के इस पूरे सिस्टम और चुनाव प्रक्रिया की क्रेडिबिलिटी पर हर भारतीय को गर्व है... इस स्केल पर चुनाव का... इस efficiency के साथ चुनाव का दुनिया में कहीं कोई उदाहरण नहीं है... मैं देशवासियों को कहूंगा, मैं influencers को कहूंगा और मैं opinion makers को कहूंगा कि भारत के लोकतंत्र में यह चुनावी प्रक्रिया की ताकत है, efficiency है... यह अपने आप में बहुत गौरव का विषय है और भारत की पहचान को चार चांद लगाने वाली बात है... और ऐसे जो भी लोग हैं, जो दुनिया में अपनी बात पहुंचा सकते हैं, उन सबसे मैं आग्रह करूंगा कि भारत के लोकतंत्र के इस सामर्थ्य को विश्व में हमें बड़े गर्व के साथ प्रस्तुत करना चाहिए..."

गठबंधन सरकार की चुनौती एक अवसर

अठारहवीं लोकसभा में गठबंधन सरकार चलाने की जो चुनौती देश की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के सामने रखी है, उसे लेकर सवाल इसलिए खड़े किए जा रहे हैं, क्योंकि 23 साल से लगातार सरकार चलाने के दौरान यह पहला मौका है, जब नरेंद्र मोदी ऐसी भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसके पास पूर्ण बहुमत नहीं है. लेकिन नरेंद्र मोदी पर 2014 में भी यह सवाल उठाया गया था कि एक मुख्यमंत्री कैसे प्रधानमंत्री बनने पर देश की विदेश नीति और आर्थिक नीति को दिशा देगा, जिसके पास देश चलाने का कोई अनुभव नहीं है. लेकिन 2014 से 2024 तक के दौर में भारत की विदेश नीति और आर्थिक नीति सभी सरकारों से न सिर्फ बेहतर और ताकतवर रही, बल्कि भारत के लिए लाभकारी और हितकारी भी साबित हुई. ऐसे में गठबंधन सरकार की चुनौती भी नरेंद्र मोदी के लिए गठबंधन की सरकारों के लिए एक बड़ी लकीर खींचने का अवसर बनकर आई है.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.