सुशील महापात्रा की कलम से : मेरा पुराना जनलोकपाल बिल वापस दे दो केजरीवाल

सुशील महापात्रा की कलम से : मेरा पुराना जनलोकपाल बिल वापस दे दो केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली:

5 अप्रैल 2011 दिल्ली के जंतर-मंतर की जमीन पर एक 73 साल का बूढ़ा व्यक्ति अनशन पर बैठता है। जनलोकपाल बिल की मांग करता है। देश से भ्रष्टाचार ख़त्म करने की बात करता है। फिर क्या? पूरे देश से लोग जंतर-मंतर पर पहुंचते है। जंतर-मंतर की जमीन एक रणभूमि की तरह दिखाई देती है। कभी नेता पहुंचते हैं तो कभी एक्टिविस्ट। मीडिया का कैमरे मैदान पर ऐसे डटते हैं जैसे देश में और कुछ हो ही नहीं रहा हो। सरकार के रवैये से देश उद्वेलित और आक्रोशित हो उठता है। अनशन स्थल पर मौसम की फिक्र किए बगैर लाखों की तादाद में लोग डेरा जमाते हैं।

संसद में गूंजी अन्ना के आंदोलन की गूंज
सरकार की हालत पतली होने लगती है। बड़े-बड़े मंत्रियों के बीच मीटिंग शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे यह आंदोलन साधारण से इतना विशेष हो जाता है कि संसद में इसकी गूंज सुनाई देने लगती है। लोग जानने को दौड़ पड़ते हैं कि ये बूढ़ा अन्ना हज़ारे कौन है। 73 साल की उम्र जहां लोग घर में बैठना पसंद करते हैं वहीं अन्ना हज़ारे डंडा लेकर सरकार के खिलाफ खड़े हुए नज़र आते हैं। अन्ना  हज़ारे के इस आंदोलन को आगे ले जाने के लिए अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश, संतोष हेगड़े, मेधा पाटेकर जैसे लोग मंच पर बैठे नजर आते हैं।

आक्रामक केजरीवाल शांत अन्ना हज़ारे पर भारी पड़ते हैं
आक्रामक केजरीवाल शांत अन्ना हज़ारे के दाहिने हाथ के रूप में लोगों को नजर आते हैं और धीरे-धीरे उनपर ही भारी पड़ते लगते हैं। फिर समय सब कुछ बदल देता है। आक्रामक केजरीवाल शांत अन्ना हज़ारे के ऊपर भारी पड़ते हैं। अन्ना हज़ारे के द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन को केजरीवाल हथिया लेते हैं।

धीरे-धीरे केजरीवाल को पहचानने लगे लोग
अब लोग अन्ना हज़ारे को नहीं बल्कि केजरीवाल को पहचाने लगते हैं। केजरीवाल के सुर से सुर मिलाकर गाना गाते हैं। केजरीवाल के कहने पर नाचते हैं, झूमते हैं, प्रोटेस्ट करना शुरू कर देते है.. क्योंकि केजरीवाल के इस आंदोलन में लोगों को जनलोकपाल बिल नजर आता है, एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज नज़र आता है।

राजनेताओं से दूर रहने वाले केजरीवाल राजनीति में आ जाते हैं
केजरीवाल इस जनलोकपाल के लिए ऐसे कई काम कर जाते हैं जो शुरुआत में वह करना नहीं चाहते थे। राजनेताओं को इस आंदोलन से दूर रखने वाले केजरीवाल खुद पोलिटिकल पार्टी बना लेते हैं। 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन होता है। फिर टोपी पर लिखा हुआ "मैं अन्ना" "मैं आम आदमी" से बदल जाता है। आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ती है, 28 सीट मिलती है। कांग्रेस के साथ मिलकर आम आदमी पार्टी सरकार बनाती है। फिर एक दिन जनलोकपाल बिल दिल्ली विधानसभा में पारित न होने की वजह से आम आदमी पार्टी सरकार छोड़कर चली जाती है।

जब पलटे थे केजरीवाल
कुछ दिनों के बाद केजरीवाल को अपने गलती का एहसास होता है। लोगों से माफी मांगते हैं और दरियादिल लोग केजरीवाल को माफ़ करते हुए अगले चुनाव में 67 सीट उपहार के रूप में दे देते हैं।

सवालों के घेरों में है दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल बिल :
यह क्या जिस जनलोकपाल को लेकर इतना कुछ हुआ आज वही जनलोकपाल कहां जा रहा है। दिल्ली सरकार के द्वारा विधानसभा में पेश किए गए जनलोकपाल के प्रारूप को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। जो पार्टी जनलोकपाल की वजह से बनी, जिस पार्टी का सबसे बड़ा एजेंडा था एक मजबूत जनलोकपाल लाना, आज उसी जनलोकपाल पर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी  सवालों के घेरों में है।

प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव इस बिल को लेकर सवाल उठा रहे हैं
कभी अरविंद के साथ सुर से सुर मिलाने वाले प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव इस बिल को लेकर सवाल उठा रहे हैं और प्रोटेस्ट करना शुरू कर दिया हैं।

लोकपाल की नियुक्ति को लेकर सवाल :
केजरीवाल ने अपने धरने के दौरान केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए लोकपाल बिल को खारिज कर दिया था। अरविंद का कहना था कि केंद्र ने जो लोकपाल बिल किया है उससे करप्शन रुकने वाला नहीं है। अरविंद ने सबसे बड़ा सवाल लोकपाल की नियुक्ति को लेकर उठाया था। केजरीवाल चाहते थे कि लोकपाल की नियुक्ति के पैनल में नेताओं का दबदबा न रहे।

लोकपाल की नियुक्ति में नेताओँ का दबदबा
आम आदमी पार्टी के द्वारा पेश किए गए जनलोकपाल बिल में लोकपाल की नियुक्ति चार सदस्यों के द्वारा किए जाने की बात है। ये जो चार सदस्य होंगे वे हैं  खुद मुख्यमंत्री, विधानसभा के स्पीकर, विपक्ष के नेता और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस। इसका मतलब इस पैनल में सरकार के दो सदस्य होंगे मुख्यमंत्री और स्पीकर और कुल मिलकर तीन नेता होंगे।

लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया को लेकर सवाल :
लोकपाल को हटाने के प्रावधान को लेकर भी सवाल उठाया जा रहा है। दिल्ली सरकार के जनलोकपाल बिल में यह बताया गया है कि लोकपाल को हटाने के लिए विधानसभा में एक प्रस्ताव लाया जाएगा और जब यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होगा तो लोकपाल को हटाया जाएगा।

लोकपाल हटाने में भी नेताओं का हाथ
इसका मतलब यही हुआ कि लोकपाल को चुनने और हटाने में नेताओं का ही हाथ होगा। दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 67 सदस्य हैं। दो तिहाई का मतलब 47 वोट चाहिए।  आम आदमी पार्टी जब भी चाहे लोकपाल को हटा सकती है। जब की 2013 में कांग्रेस के द्वारा बनाए गए लोकपाल में यह प्रावधान था कि जब सुप्रीम कोर्ट लोकपाल को किसी तरह से दोषी पाएगा तब उसे हटाया जा सकता है।

स्वतंत्र जांच एजेंसी और गलत शिकायत करने वाले पर सजा को लेकर सवाल :
केजरीवाल के जनलोकपाल में स्वतंत्र जांच एजेंसी का प्रावधान नहीं है। दूसरे विभागों से अफसर लेकर काम चलाया जाएगा, जब की पुराने बिल में यह बताया गया था कि एक स्वतंत्र जांच एजेंसी की जरूरत है जो निष्पक्ष जांच कर सकेगी।

शिकायतकर्ताओँ के लिए आफत होगा बिल
प्रशांत भूषण का यह भी कहना है कि पुराने जनलोकपाल बिल के प्रस्ताव में यह कहा गया था कि अगर शिकायतकर्ता गलत शिकायत करता है और दोषी पाया जाता है तो उसको आर्थिक दंड दिया जाएगा। जबकि दिल्ली सरकार के बिल में गलत शिकायत करने पर एक साल की जेल या एक लाख का जुर्माना और जरूरत पड़ने पर दोनों भी हो सकता है। प्रशांत भूषण का कहना है कि इसका उलटा असर होगा। जेल जाने के डर से हो सकता है कि शिकायतकर्ता शिकायत ही न करे।

क्या फिर पलटेंगे केजरीवाल
हर आदमी अपनी गलती से सीखता है और अरविंद केजरीवाल एक ऐसे नेता हैं जो अपनी हर गलती से सीखते हैं। अगर सच में इस बिल में कई कमियां होंगी तो उम्मीद की जा सकती है कि अरविंद केजरीवाल पहले की तरह फिर एक बार लोगों के सामने आएंगे और माफ़ी मांगते हुए एक नया बिल पेश करेंगे।

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