स्लॉथ भालू: भारत का एक ऐसा जानवर जो दीमक और चींटियां खाकर जिंदा रहता है

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Hittarth Rawal

बचपन में, हम सब ने अपने बड़ों से भालुओं के बारे में कई कहानियां सुनी थीं. वे बताते थे कि कैसे सड़कों पर नाचते भालू मनोरंजन का साधन हुआ करते थे. उन कहानियों ने मेरे मन में भालुओं की एक अलग ही छवि बना दी थी, या तो वे किसी ट्रेनर द्वारा नचाए जा रहे होते थे या फिर चिड़ियाघर के पिंजरे में बंद रहते थे. लेकिन मेरा अनुभव इससे बिल्कुल अलग था. मुझे चोटो उदेपुर के खुले खेतों में एक भालू को स्वच्छंद रूप से घूमते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उसे घास के बीच धीरे-धीरे चलते और हवा में सूंघते देखकर, मुझे एहसास हुआ कि जंगल से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में यह आम दृश्य हो सकता है, लेकिन शहरीकरण के कारण ऐसे दृश्य दुर्लभ होते जा रहे हैं.

स्लॉथ भालू कहां पाए जाते हैं

स्लॉथ भालू (Melursus Ursinus) भारतीय उपमहाद्वीप का एक विशिष्ट प्राणी है.यह मुख्य रूप से भारत, श्रीलंका, नेपाल और भूटान में पाया जाता है. उत्तर अमेरिका या यूरोप के भूरे और काले भालुओं से अलग, स्लॉथ भालू गर्म और शुष्क क्षेत्रों के लिए अनुकूलित है. यह विभिन्न प्रकार के आवासों में जीवित रह सकता है, इनमें उष्णकटिबंधीय शुष्क वन, नम पर्णपाती वन और झाड़ीदार क्षेत्र शामिल हैं.

इस भालू की विशेषताएं इसे अन्य भालुओं से अलग बनाती हैं. यह मुख्य रूप से दीमक और चींटियों का भक्षण करता है और अपनी लंबी, घुमावदार नाखूनों की मदद से दीमकों के बिलों को खोदकर उन्हें खा जाता है. इसका लंबा, घना और झबरा फर और छाती पर 'V' या 'Y' आकार का सफेद निशान इसे अन्य प्रजातियों से अलग करता है. इसके होठों की अनूठी बनावट और ऊपर के दांतों की अनुपस्थिति इसे कीड़ों को आसानी से चूसकर खाने में मदद करती है. भले ही यह देखने में धीमा और भारी लगता है, लेकिन यह कुशल पर्वतारोही है. शहद की खोज में यह पेड़ों पर चढ़ जाता है. यह मुख्य रूप से रात्रिचर होता है. दिन की गर्मी से बचने के लिए रात के ठंडे में भोजन की तलाश करता है.

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Photo Credit: Ramesh Makavana

क्यों कम हो रहे हैं स्लॉथ भालू 

हालांकि, अपनी अनूठी विशेषताओं के बावजूद, स्लॉथ भालू कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. सबसे बड़ा खतरा उसके प्राकृतिक आवास का विनाश है. वनों की कटाई, कृषि विस्तार और शहरीकरण के कारण जंगलों का विखंडन हो रहा है. इससे ये भालू छोटे-छोटे बचे हुए जंगलों में सीमित होते जा रहे हैं. सिकुड़ते आवास के कारण मनुष्यों और भालुओं के बीच संघर्ष बढ़ रहा है. इससे कई बार खतरनाक टकराव हो जाते हैं.जब खतरा महसूस होता है, तो स्लॉथ भालू अत्यधिक आक्रामक हो सकता है. इस संघर्ष में मानव और भालू दोनों को नुकसान पहुंच सकता है.

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इसके अलावा, अवैध शिकार और वन्यजीव व्यापार भी इस प्रजाति के लिए खतरा बने हुए हैं. सदियों तक, भालू के शावकों को पकड़कर नाचने वाले भालू की प्रथा में बेचा जाता था, जहां उन्हें अमानवीय प्रशिक्षण तकनीकों का सामना करना पड़ता था. हालांकि इस प्रथा को संरक्षण प्रयासों से काफी हद तक समाप्त कर दिया गया है, फिर भी शरीर के अंगों और पित्त के लिए इनका अवैध शिकार जारी है.

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भारत में कितने हैं स्लॉथ भालू 

स्लॉथ भालू की वैश्विक जनसंख्या के बारे में सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. भारत इस प्रजाति का मुख्य आवास है, यहां छह से 11 हजार भालू होने का अनुमान है. स्लॉथ भालू को वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में असुरक्षित (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है. भारत में, इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत सबसे ऊंचे स्तर की सुरक्षा प्राप्त है. इससे इसके शिकार और व्यापार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है.इसके बाद भी कानून के अनुपालन में कई चुनौतियां बनी हुई हैं. संरक्षणवादी इसके लिए बेहतर प्रयास कर रहे हैं. कई संगठन इसके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. ये संगठन आवास संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना और बचाए गए भालुओं का पुनर्वास करते हैं. वन्यजीवों के प्रति जागरूकता और शिक्षा इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इससे आने वाली पीढ़ियां इन अद्वितीय जीवों की रक्षा करना सीख सकें.

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जंगल में स्वतंत्र रूप से घूमते हुए स्लॉथ भालू को देखना मेरे लिए एक दुर्लभ और प्रेरणादायक अनुभव था. इसने मुझे यह एहसास कराया कि हमें अपने प्राकृतिक धरोहरों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी निभानी होगी. यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि ये जीव भारत के जंगलों और मैदानों में स्वतंत्र रूप से घूमते रहें, न कि इतिहास की यादों में सिमटकर रह जाएं.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं.

(हितार्थ रावल ने भारतीय वन प्रबंधन संसथान, भोपाल से वन प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है. वो एनवायर्नमेंटल, सोशल एंड गवर्नेंस के क्षेत्र में काम करते हैं.)

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