This Article is From Apr 13, 2022

सबका भारत या एकतरफा भारत - पार्ट 3

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Ravish Kumar

इसी साल जनवरी में इंडियन एक्सप्रेस में अपूर्व विश्वनाथ और असद रहमान की रिपोर्ट छपती है कि कानपुर में नागरिकता कानून के विरोध में आंदोलन के दौरान जो हिंसा हुई थी, उस हिंसा में शामिल लोगों पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने का आरोप लगता है. इस आरोप के कारण उन सभी को नोटिस भेजा जाता है कि आप पर जुर्माना लगाया जाता है. एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि सारे नोटिस एक ही समुदाय के लोगों को भेजे गए थे और उनमें से भी ज़्यादातर ग़रीब लोग थे.

महनूर चौधरी कबाड़ का काम करते हैं, फरवरी 2020 में यूपी सरकार ने उनकी दुकान सील कर दी थी. तब से उनकी कमाई भी बंद हो गई. महनूर चौधरी पर आरोप था कि दिसंबर 2019 में नागरिकता कानून के विरोध में जो हिंसा हुई थी उसमें कथित रूप से शामिल थे. उन्हें 21 लाख जुर्माना वसूली का नोटिस दिया गया था. इसी तरह रंगकर्मी दीपक को भी 60 लाख का नोटिस मिला था. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद यूपी में इस तरह से 274 नोटिसों को रद्द कर दिया गया था क्योंकि कोर्ट ने इन्हें गैर कानूनी माना था. कहने का मतलब है कि जिन फैसलों को सरकार दमखदम से सही बताती है वो कई बार कोर्ट की नज़र में गैर कानूनी भी होते हैं. 

सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बदले जुर्माने का नोटिस भेजने के लिए एक पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई है. एक ट्रिब्यूनल बनता है जहां दोष साबित किया जाता है, फिर नोटिस दिया जाता है. हम यह चर्चा मध्य प्रदेश के खरगोन में गिराए गए मकानों और दुकानों के संदर्भ में कर रहे हैं. अगर आप सुप्रीम कोर्ट में इस केस को लेकर हुई बहस और टिप्पणियों को देखेंगे और साथ ही मीडिया रिपोर्ट को देखेंगे तो पता चलेगा कि अक्सर हिंसा के बहाने एक समुदाय को टारगेट किया जा रहा है.

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कानपुर में 21 ऐसे लोगों को नोटिस भेजा गया था जो दिहाड़ी मज़दूर थे. अपना पक्ष रखने इलाहाबाद हाईकोर्ट तक नहीं जा सके. सबने प्रशासन को 13, 476 रुपये का जुर्माना भर दिया था. परवेज़ आरिफ टिटू की याचिका जब सुप्रीम कोर्ट के सामने आई तब अदालत की टिप्पणी से साफ हो गया था कि किस तरह एकतरफा फैसला लिया गया था. यहां तक कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर जुर्माना तय करने की एक पूरी प्रक्रिया बनाई गई है, वो प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट ने बनाई है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन प्रक्रियाओं का पालन तक नहीं किया गया है. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि इन मामलों में न्यायिक अधिकारी सुनवाई करेंगे तब प्रशासनिक अधिकारी ADM ने कैसे कार्रवाई का संचालन किया? आखिर सुप्रीम कोर्ट की बनाई हुई गाइडलाइन को अनदेखा करने के पीछे क्या मकसद रहा होगा, क्या प्रशासन से इतनी बड़ी चूक यूं ही हो जाती है? सुप्रीम कोर्ट बहुत नाराज़ हो गया. अदालत ने कहा कि इस तरह से जितने भी नोटिस जारी किए गए हैं, उन्हें एक झटके में खत्म किया जाए और लोगों के घर पर जाकर जुर्माने की राशि लौटा दी जाए. 16 मार्च 2022 के इंडियन एक्सप्रेस में इसी से संबंधित एक और खबर छपी है कि कानपुर प्रशासन ने 274 नोटिस वापस ले लिए हैं और जो जुर्माना वसूला गया था, उसे लौटा दिया गया है. अब नए बने कानून के हिसाब से कार्रवाई हो रही है. 

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तब सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कहा था कि इन मामलों में आप ही शिकायत करने वाले हैं, आप ही जज भी हैं और आप ही संपत्ति ज़ब्त कर रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने यूपी सरकार से कहा था कि आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अनदेखा नहीं कर सकते. अब नए नियमों के तहत फिर से इस मामले में कार्रवाई हो रही है लेकिन जिस तरह से कार्रवाई हुई है अगर अदालत तक नहीं पहुंचती तो कितना अन्याय हो जाता. जिस तरह से मध्य प्रदेश में संदेह के आधार पर घरों को ढहाया गया है और अब कहा जा रहा है कि अवैध रूप से अतिक्रमण था इसलिए इन्हें गिराया गया लेकिन क्या इसी कारण से ऐसा हुआ है. हिन्दू अखबार में इंदौर के डिविज़नल कमिश्नर पवन शर्मा का बयान छपा है. उन्होंने कहा है कि यह इसलिए किया गया क्योंकि सभी तो नहीं मगर कुछ आरोपी सांप्रदायिक दंगों में शामिल थे. जो इन संपत्तियों के मालिक भी हैं. राजस्व रिकार्ड के अनुसार, सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण कर बनाया है. जब पूछा गया कि कोर्ट का आदेश नहीं तब शर्मा ने कहा कि अगर अवैध ढांचा है तब हम ज़रूरी कार्रवाई कर सकते हैं. 

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खरगोन में सांप्रदायिक तनाव भड़काने में किनका हाथ था, घरों को किसने जलाया और क्या दंगाइयों को सजा देने के लिए मकान दुकान ढहा दिए गए तब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने इतनी जल्दी सबकी पहचान कर ली? दोष साबित हो गया? क्या दंगे में दूसरी तरफ से कोई नहीं था? प्रशासन के पास इस सवाल का जवाब दूसरा है कि जिन्होंने अतिक्रमण किया है, अवैध काम किया है उनके घर और दुकान तोड़े गए हैं. नफरत की इस राजनीति ने दोनों समुदायों को किस तरह एक-दूसरे के सामने खड़ा कर दिया है आप देख रहे हैं. सुरक्षित कोई नहीं है. इस झगड़े में आम लोग ही निशाने पर आए हैं और खास लोग राजनीति कर रहे हैं.

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झारखंड के कोडरमा का एक वीडियो सामने आता है, जिसमें नौजवान हैं जो भगवा झंडा लिए हुए हैं और एक धर्म विशेष के लोगों को गालियां दे रहे हैं. पुलिस मौजूद हैं. इस वीडियो की जांच होनी चाहिए, क्या ये लोग डीएम को भी गालियां दे रहे हैं? वहां पर मजिस्ट्रेट मौजूद हैं, पुलिस भी भारी संख्या में हैं लेकिन नारे की तरह गालियां दे रहे हैं. आज के युवा इस तरह से गाली दे रहे हैं. आठ लोग गिरफ्तार हुए हैं मगर इस तरह से गालियां देने का हौसला कहां से आया अगर सोच सकते हैं तो सोचिए नहीं तो कोई बात नहीं. 

गौ रक्षक-गौरक्षक कहते कहते समाज में हमने एक धर्म पुलिस बना दी है. अपराधी धर्म और गाय की आड़ में किसी की हत्या कर दे रहे हैं या धर्म या गाय के नाम पर अपराध को मान्यता मिलने लगी है. दिल्ली में गोकशी के संदेह के बाद कुछ गौरक्षक आए और उन्होंने गौशाला के केयरटेकर राजा राम को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई. क्या इसमें पुलिस की कोई भूमिका नही थी, तब फिर गौ रक्षक को ही पुलिस की मान्यता मिल जानी चाहिए ताकि पता तो चले कि पुलिस आई है.

गौ रक्षा के नाम पर राजाराम की हत्या हो गई. उस पर गाय की हत्या का आरोप लगा दिया गया जिसकी सफाई देने के लिए राजाराम ज़िंदा नहीं है. नियम कानून की परवाह ही नहीं है. आप साफ-साफ देख  सकते हैं कि कौन नियम कानून की परवाह नहीं कर सकता है. भारत के समाज में कई स्तरों पर झगड़े चल रहे हैं. संस्थाओं को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच झगड़े शुरू हो गए हैं. ममता बनर्जी, केसीआर और अब शरद पवार आरोप लगा रहे हैं कि केंद्रीय एजेंसियों को विपक्ष के खिलाफ लगा दिया गया है. यह अच्छा नहीं हो रहा है. 

केंद्र और राज्य के संबंध भी नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं. देश के कई विश्वविद्यालयों में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का सिस्टम लाया गया तो इसके विरोध में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पास हुआ है. तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष कह रहे हैं कि हिन्दी नहीं थोपने देंगे. उन्हें क्यों कहना पड़ रहा है. जांच एजेंसियों पर एकतरफा कार्रवाई करने के आरोप लग रहे हैं. यह सबका भारत है या एकतरफा भारत है?

27 शहरों में तापमान 41 डिग्री सेल्सियस से अधिक है, क्या अब गर्मी कुछ कम है जो हमारे नेता धार्मिक मुद्दों के सहारे माहौल में गर्मी पैदा करने में लगे हैं. इस गर्मी में भड़काऊ बातों से दूर ही रहें तो अच्छा रहेगा. आसमान को ही आग बरसाने दें, लाइव मिंट नाम के अखबार में दिलाशा सेठ, रवि दत्ता मिश्रा ने अपने लेख में बताया है कि कपड़ा इतना महंगा कभी नहीं हुआ. साढ़े आठ साल में सबसे महंगा कपड़ा इस वक्त बिक रहा है. जूते चप्पलों के दाम भी 8-9 साल में सबसे ज्यादा बढ़ गए हैं. 19 महीनों में अनाज कभी इतना महंगा नहीं हुआ. इतनी महंगाई देखकर किसी का भी माथा गर्म हो जाए लेकिन उस पर ठंडा पानी डालने के बजाए धर्म के नारों से माहौल गरमाया जा रहा है.

एक अखबार ने बताया है कि एक किलो नींबू के बदले आप पांच किलो अंगूर खरीद सकते हैं. इस तरह से तो हमने महंगाई को देखा ही नहीं था, ऐसे देखने पर वाकई महंगाई नज़र नहीं आती है.

मिडिल क्लास महंगाई से परेशान नहीं है, मतलब राजनीतिक रूप से परेशान नहीं है, वह आर्थिक परेशानी को निजी परेशानी मानता है. अभी तक मिडिल क्लास टैक्स से ही देश के विकास में योगदान दे रहा था लेकिन वह महंगे दाम देकर भी योगदान देने लगा है. मिडिल क्लास की इस कुर्बानी की याद में एक म्यूज़ियम बनना चाहिए. भारत में महंगाई 17 महीनों में सबसे अधिक है, 7 प्रतिशत के करीब है, लेकिन चिन्ता मत कीजिए. अमरीका वाले भी खुश नहीं हैं वहां तो चालीस साल में सबसे अधिक महंगाई है. 8.5 प्रतिशत है. अमरीका की हालत देखकर लगता है हम लोग ज्यादा ठीक है.

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