जब कई साल से गोदी मीडिया विपक्ष को रोकने में लगा ही हुआ है तब फिर प्रशासन क्यों विपक्ष को रोकने के लिए इतनी मेहनत करता रहा. जिस पुलिस और कानून व्यवस्था को काम करने देने के नाम पर विपक्ष को रोका गया उसका कुछ रिकार्ड शुरू में ही बता देता हूं. बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर मामले में कौन सी कानून व्यवस्था काम कर रही थी आप फिर से पूरी स्टोरी सर्च कर सकते हैं. गोरखपुर में मनीष गुप्ता की हत्या के संबंध में भी मुआवज़े और नौकरी का ऐलान हो गया लेकिन अभी तक पुलिस ने छह पुलिस वालों को गिरफ्तार नहीं किया है. पिछले साल उसी गोरखपुर की पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर और दो सिपाहियों ने सर्राफा व्यापारियों से 35 लाख का सोना चांदी लूट लिया था. तीन पुलिस वाले गिरफ्तार हो गए थे. पिछले एक साल से महोबा का पूर्व एसपी आईपीएस मणिलाल पाटिदार फरार है. उस पर बिजनेसमैन इंद्रकांत त्रिपाठी की हत्या का आरोप है. इसके बाद भी गोदी मीडिया के कारण मुमकिन है कई लोगों को विपक्ष का इस तरह से रोका जाना ग़लत नहीं लगेगा, ऐसे लोगों को अब ग़लत लगता ही नहीं है. आज गांधी होते और चंपारण जा रहे होते तो गोदी मीडिया के ये एंकर गांधी को भी आतंकवादी करार देते और कहते कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से आकर चंपारण राजनीतिक पर्यटन करने जा रहे हैं. किसानों के पास गांधी चलकर नहीं गए होते तो आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण मोड़ नहीं आता. अगर वल्लभ भाई पटेल बारदोली सत्याग्रह में किसानों के बीच नहीं गए होते तो वहां की महिला किसानों ने उन्हें सरदार की उपाधि नहीं दी होती. गोदी मीडिया ने आपकी नज़रों में लोकतंत्र की हत्या की प्रक्रिया पूरी कर दी है.
जिस तरह से पुलिस ने राज्य सभा के सांसद दीपेंद्र हुड्डा को धक्का दिया है उसमें आपको विपक्ष का पर्यटन दिखा या प्रशासन का पतन यह धक्का दीपेंद्र हुड्डा को नहीं, देखने वालों को दिया गया है ताकि आप समझ लें कि विपक्ष मंज़ूर नहीं है. ठीक इसी तरह पिछले साल हाथरस में तृणमूल के सांसद डेरेक ओ ब्रायन को धक्का दिया गया था. तृणमूल के सांसद हाथरस की पीड़िता के घर जाना चाहते थे जिसके शव का अंतिम संस्कार पुलिस की सुरक्षा में कर दिया गया था. पीड़िता के शव को उसके घर के आंगन में ले जाने की इजाज़त नहीं दी गई थी. हाथरस पहुंचने के क्रम में यूपी पुलिस ने राहुल गांधी को गिरा दिया था.
क्या यह किसी भी तरह से राजनीतिक पर्यटन का दृश्य कहा जा सकता है? उस वक्त राहुल गांधी और प्रियंका को रोकने के लिए धारा 188 लगी थी और आपदा प्रबंधन एक्ट का सहारा लिया गया था. इसी तरह से प्रियंका गांधी को लखीमपुर खीरी जाने से रोका जाने लगा. पिछले साल जो हाथरस था इस साल लखीमपुर खीरी है. पुलिस के साथ उनकी यह बहस बता रही है कि पुलिस की ताकत का इस्तेमाल किस काम के लिए होने जा रहा है. कानून के नाम पर क़ाग़ज़ी लिखा पढ़ी के बहाने किसी को ज़िंदगी भर के लिए फंसा देने वाली पुलिस विपक्ष को रोकने के लिए बिना लिखत पढ़त के आ गई. प्रियंका गांधी और बसपा महासचिव सतीश मिश्रा पुलिस से आदेश की कापी मांगते रहे उन्हें कापी नहीं दी गई. प्रियंका गांधी पैदल चलती रहीं और बार बार रोकी जाती रहीं और अंत में सीतापुर में रोक ली गईं. गोदी मीडिया इस पूरी प्रक्रिया को हल्का करता रहा और आप नागरिक होने की अपनी जवाबदेही से मुक्त होते रहे. एक बोगस तर्क को स्वीकार करते रहे कि विपक्ष राजनीतिक पर्यटन कर रहा है. दरअसल पर्यटन ये लोग कर रहे थे. जब विदेशी सांसदों को भारी सुरक्षा के बीच श्रीनगर में घुमाया गया था. कभी इसका पता कीजिएगा, किसी रहस्य से कम नहीं लगेगा. 2019 के अगस्त में श्रीनगर एयरपोर्ट से विपक्ष को दिल्ली वापस भेज दिया गया था. वे देसी होकर कश्मीर नहीं जा सके, ये विदेशी होकर कश्मीर घूम रहे थे. जब भी आपके भीतर विपक्ष मारा जाएगा, विदेशी घूमने आ जाएगा. कश्मीर में विपक्ष के नेता साल साल भर नज़रबंद किए गए और सरकार की तरफ से झूठ बोला जाता रहा. यूपी में इस मामले में झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं है. सुबह सुबह अखिलेश यादव के घर के बाहर की एक तस्वीर बता रही है कि विपक्ष किसकी कृपा पर है. यह कोई सामान्य दृश्य नहीं है. पहली बार विपक्ष यहां नहीं रोका गया है. घर के बाहर ट्रक लगा दिया गया है. इसे देखते ही आपको यह याद आना चाहिए. बड़े बड़े कंटेनर जब पिछली सर्दियों में किसानों को रोकने के लिए लगाए गए थे. कम से कम यह बड़ी बड़ी नुकीली कीलें तो याद आनी ही चाहिए या फिर कंटीले तार जिनके सहारे किसानों को दिल्ली में घुसने से रोका गया. सपा नेता अखिलेश यादव गिरफ्तार कर लिए गए. भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण को भी रोका गया लेकिन वे लखीमपुर खीरी पहुंच गए. टोल के नाके पर दौड़ते भागते जयंत चौधरी को आप पर्यटन करते नहीं देख रहे बल्कि वही करते हुए देख रहे हैं जो एक नेता को करना चाहिए. जहां किसानों की हत्या हुई है वहां जाना चाहिए. पैदल जाना चाहिए या नंगे पांव जाना चाहिए. यह पर्यटन नहीं है बल्कि राजनीति में होने का यही मतलब है.आप ही कहते हैं कि राजनेता घर में बैठे हैं और जब वे घर से बाहर आते हैं तो घर में नज़रबंद कर दिए जाते हैं तब आप कहते हैं ये पर्यटन करते हैं. है न कमाल. इसके लिए गोदी मीडिया को दीजिए धन्यवाद. आपके भीतर और देश में विपक्ष को खत्म करने की प्रक्रिया को वैधता मिल चुकी है. इस खुशी के मौके पर आप 110 लीटर पेट्रोल भराते रहिए. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को भी ढाई बजे रात रोक दिया गया.
तो इस तरह से विपक्ष के नेता रविवार रात और सोमवार दिन भर रोके जाते रहे.वे लखनऊ से लखीमपुर खीरी नहीं पहुंच सके. आज सुबह किसान एकता मोर्चा के ने ट्वीट किया जिसमें लिखा था- Good Morning India! Slept well? ठीक से नींद आई? यहां देखिए लखीमपुर खीरी के किसानौं ने रात कैसे गुज़ारी? मार दिए गए किसानों के शवों की रक्षा करते हुए ताकि राज्य इन्हें छीन कर इनका अंतिम संस्कार न कर दे.
लखीमपुर किसान नरसंहार, पहरा विपक्ष पर ही नहीं, सूचनाओं पर भी लगा है. गोदी मीडिया इस पूरी घटना को किसान बनाम बीजेपी के रूप में खड़ा करने में लगा है. एक बड़े हिस्से को समझा दिया गया है कि ये किसान नहीं हैं. जो ऐसा नहीं मानते हैं वे यह सवाल तक नहीं करते कि जो किसान नहीं हैं वो किसानों के मुद्दे के लिए क्यों दस महीने आंदोलन करेंगे और जान देंगे? जिस दौर में विपक्ष का विपक्ष होकर कहीं पहुंचना असंभव हो, उस दौर में किसान की जगह नकली किसान बन कर कोई कैसे दस महीने से आंदोलन कर सकता है? अगर ये किसान नहीं हैं तो फिर सरकार ने 22 जनवरी से पहले किससे बात की थी?
अमर उजाला लिखता है कि किसानों को केंद्रीय मंत्री के बेटे की गाड़ी ने कुचला, संघर्ष 8 मरे. दैनिक जागरण लिखता है कि लखीमपुर में किसानों का उपद्रव, 8 मरे. जिन किसानों को कुचल दिया उनके बारे में यूपी का सबसे बड़ा अखबार उपद्रवी लिखता है. दैनिक जागरण के लिए अगर मगर कुछ नहीं, सीधा उपद्रवी.
तय किया जा रहा है कि आप इस घटना को कैसे और कितना देखेंगे. गोदी मीडिया के ज़रिए विपक्ष और आंदोलन के खिलाफ माहौल बनाया जाता जिसका फायदा उठाते हुए प्रशासन विपक्ष को नज़रबंद करने लगता है. इंटरनेट बंद करने लगता है. किसी की भी मौत दुखद है. जिन चार लोगों की मौत बाद में हुई जो काफिले के साथ उनकी मौत किसी भी लिहाज़ से कम दुखद नहीं है लेकिन किसानों पर गाड़़ी चढ़ाने की घटना को बाद की घटना से बराबर नहीं किया जा सकता है.
मारे गए चार किसानों में से तीन 32 साल, 20 साल और 24 साल के हैं. एक किसान की उम्र 60 साल है. दलजीत सिंह, गुरविंदर सिंह बहराइच के हैं जो लखीमपुर खीरी गए थे. लवप्रीत सिंह और नछत्तर सिंह खीरी के ही रहने वाले हैं. कुछ किसान घायल भी हुए हैं. रात भर किसान, किसानों के शव के साथ जागते रहे. उन्हें लगा था कि प्रशासन ज़बरन अंतिम संस्कार करा देगा. हाथरस में पुलिस ने इसी तरह बलात्कार की पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार आधी रात में कर दिया था और पार्थिव शरीर को घर के आंगन तक में नहीं ले जाने दिया गया था. किसानों की मांग थी कि हत्या का मुकदमा दर्ज हो और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे अभय मिश्रा को गिरफ्तार किया जाए. किसान नेता राकेश टिकैत और पुलिस के बीच बातचीत भी हुई है जिसके बाद किसान अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो गए. राकेश टिकैत और एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज मामले की जांच करेंगे और किसानों की एक कमेटी होगी जो प्रशासन से इस मामले में संपर्क में रहेगी. मृतक किसानों को 45 लाख मुआवज़ा दिया जाएगा. परिवार के एक सदस्य को योग्यता के अनुसार नौकरी दी जाएगी. घायलों को दस लाख का मुआवज़ा दिया जाएगा. किसानों ने इस जगह का धरना समाप्त किया और अंतिम संस्कार की कार्रवाई शुरू हो सकी.
FIR में 15 लोगों के नाम हैं. इनमें केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा का भी नाम है. क्या उनके मंत्री रहते निष्पक्ष जांच हो सकेगी? क्या पिता के मंत्री रहते बेटे के बारे में सही से जांच हो सकती है? यूपी की पुलिस केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे अभय मिश्रा को गिरफ्तार करेगी?
एक जीप को किसानों ने जला दिया. और भी गाड़ियां जली हैं. बताया गया कि इसी जीप से किसानों को कुचल दिया गया और इसमें मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा भी मौजूद थे. मंत्री और उनके बेटे का कहना है कि अभय मिश्रा अपनी जीप में नहीं थे. जीप उनका ड्राईवर चला रहा था. ड्राइवर की भी हत्या हो चुकी है. मौत हो चुकी है. मिश्रा का कहना है कि इस गाड़ी में अगर उनका बेटा होता तो गुस्साए किसान उसे ज़िंदा नहीं छोड़ते. कार ड्राइवर चला रहा था और उन्हें बताया गया है कि पत्थर चलाने के कारण ड्राइवर ने नियंत्रण खो दिया. अजय मिश्रा के हलफनामे में थार जीप का ज़िक्र है और नंबर भी यही है.
एक सवाल है. अगर जीप में सवार सभी की मौत हो गई है तो मंत्री और उनके बेटे को किसने बताया कि किसानों ने पत्थरबाजी की है? उन्होंने वीडियो दिखाने की बात की थी तो वो वीडियो सामने नहीं आया है. न ही वो प्रत्यक्षदर्शी जिसके अनुसार किसानों ने पत्थर चलाए. गोली चलाने की घटना पर भी स्पष्टीकरण की ज़रूरत है. दो वीडियो हैं, बहुत छोटे वीडियो हैं जिसे ठीक से समझ पाना आसान नहीं. इसे रोक रोककर देखा जाए तो अंदाज़ा मिलता है कि उस वक्त क्या हालत थी.
वीडियो में तेजी से कारों का काफिला गुज़रता है और आप बाद की दो सफेद कारों को देख पाते हैं. यह भी देख सकते हैं कि सड़क के किनारे किसान खड़े हैं और कारें गुज़र रही हैं. यह पता नहीं चलता कि कार ने किसानों को टक्कर मारी है या नहीं. अब एक दूसरे वीडियो को देखें तो इसमें काले रंग की एक जीप दिखाई देती है जो थार हो सकती है. उसके गुज़रने के बाद काले रंग की एक और बड़ी कार दिख रही है. किसान सड़क के किनारे ज़रूर खड़े हैं लेकिन इन दो वीडियो में हिंसक नहीं हैं. कार का रास्ता नहीं रोक रहे हैं. हम जानते हैं कि सोशल मीडिया से मिले इन दो वीडियो से ही सारी बातें स्थापित नहीं होती हैं और यह जांच का विषय है. यू ट्यूब पर गांव सवेरा नाम से चैनल चलाने वाले स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया ने एक प्रत्यक्षदर्शी से बात की है.
मंत्री अजय मिश्रा ने एक बयान जारी किया है. उसमें भी वही बातें दोहराई गईं हैं कि किसान तलवार, पत्थर और डंडों से लैस थे. उन्होंने तलवार और डंडे से हमला कर दिया और ड्राइवर हरिओम मिश्रा, बीजेपी के मंडल मंत्री श्याम सुंदर, बूथ अध्यक्ष शुभम मिश्रा की हत्या कर दी. क्या यह पुलिस और मंत्री की थ्योरी है? अगर तलवारों से हत्या हो रही थी तब पुलिस क्या कर रही थी? मंत्री के लिखित बयान में किसानों के बारे में एक शब्द का ज़िक्र नहीं है. शुभम के परिवार वालों ने शिकायत दर्ज कराई है कि उनका बेटा दंगल में भाग लेने गया था. उसे तेजेंद्र सिंह विर्क और अन्य लोगों ने तलवार और लाठी से मारा है. इस राजनीति में कितने ही लोगों की मौत हो गई. नेता आगे बढ़ जाएंगे लेकिन जिनके यहां मौत हुई है वो उम्र भर सिसकते रहेंगे.
शुभम की हत्या का आरोप जिस तेजिंदर सिंह विर्क पर लगाया गया है उनके सर में गंभीर चोटें आई हैं. ट्रिब्यून की संवाददाता सुमेधा शर्मा ने ट्वीट किया है कि तेजिंदर सिंह विर्क को रुद्रपुर के डाक्टरों की सलाह के बाद मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है. हमारे सहयोगी कमाल ख़ान ने घायल किसानों से बात की. कमाल खान ने भारतीय सेना में काम करने वाले मंदीप सिंह से भी बात की है. मंदीप के पिता किसानी करते थे और उनके की मौत हो गई.
25 सितंबर को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी ने संपूर्णानगर की जनसभा में बोल दिया कि "सुधर जाओ नहीं तो सामना करो आकर, हम सुधार देंगे. मैं सिर्फ सांसद और विधायक नहीं हूं, इससे पहले मैं क्या था ये भी जान लें लखीमपुर छोड़ना पड़ जाएगा." वैसे लोकतंत्र की मां भारत में किसी मंत्री का यह बयान काफी होना चाहिए कि प्रधानमंत्री के कर कमलों द्वारा वह बर्खास्त कर दिया जाए लेकिन मंत्री जी पहले क्या रहे होंगे इसका अंदाज़ा मंत्री जी के एक वायरल वीडियो से हो जाता है जिसमें वे कार का शीशा नीचा कर किसानों को ठेंगा दिखा रहे हैं. सड़क की दूसरी तरफ किसान उन्हें काले झंडे दिखा रहे हैं. क्या लोकंतत्र की मां भारत के किसी मंत्री को ऐसा करना शोभनीय है? नहीं है तो इन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाना चाहिए.
पीलीभीत से बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र लिखा है कि किसानों को निर्दयतापूर्वक कुचलने की जो घटना हुई है उससे सारे देश में रोष है. किसान हमारे नागरिक हैं उनके साथ संयमपूर्व बर्ताव होना चाहिए. बीजेपी की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के नेता केसी त्यागी ने गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के इस भाषण को उकसाऊ बताया है. कहा है कि जिस कार्यक्रम में यह भाषण दिया गया उसमें मंत्री को काले झंडे दिखाए गए थे. बाद में काला झंडा दिखाने वाले किसानों के यहां छापे पड़े और केस हुआ. क्या यह तनाव पैदा करना नहीं है, काले झंडा दिखाना कौन सा बड़ा अपराध है कि इस पर छापे होंगे और केस होगा.
25 सितंबर 2021 को केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के कार्यक्रम में काले झंडे दिखाए गए थे. उसके बाद जिन लोगों ने काले झंडे दिखाए उनके घर पर पुलिस ने छापे डाले और केस दर्ज किए. LIU ने 8 दिन पहले ही चेतावनी दी थी लेकिन जिला प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की. LIU की रिपोर्ट के बाद भी जिला प्रशासन क्या करती रही? अजय मिश्रा ने एक सभा में यह भाषण दिया था कि "पलिया ही नहीं लखीमपुर खीरी तक छोड़ना पड़ जाएगा"... उन्होंने मंच से कहा था कि विरोध करने वालों को मैं सुधार दूंगा ... यह किसी जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री का भाषण नहीं हो सकता. अगर मंत्री महोदय विवेकपूर्ण तरीके से काम करते तो इस घटना से बचा जा सकता था.
किसानों के खिलाफ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के कथित विवादित बयान पर केसी त्यागी ने कहा कि सरकार में बड़े पदों पर बैठे लोगों को समाज में अंतर्विरोध को घटाने का काम करना चाहिए, भड़काने का नहीं. अच्छी बात है कि किसी ने ग़लत को ग़लत कहा लेकिन केसी त्यागी को पता होना चाहिए कि मोदी मंत्री मंडल में एक मंत्री हैं जिनका गोली मारने के नारे लगाते हुए वीडियो सामने आया था. मंत्री जी राज्यमंत्री से केबिनेट मंत्री हो गए.यही नहीं घटना के बाद मंत्री अजय मिश्रा ने बयान दिया है कि इलाके में किसानों के बीच बब्बर खालसा जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं. अगर ऐसा है तब फिर यूपी सरकार ने मुआवज़े और सरकारी नौकरी का ऐलान क्यों किया?
दस महीने से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान कई बार किसानों को उकसाया गया लेकिन उन्होंने शांति का रास्ता नहीं छोड़ा लखीमपुर खीरी की घटना के बाद भी पुलिस की बातचीत के बाद किसानों ने शांति को रास्ता दे दिया. लेकिन किसान आंदोलन को लेकर आतंकवाद का भूत खड़ा करने का यह अभियान थमा नहीं है.एक महीना पहले करनाल के तत्कालीन एसडीएम आयुष सिन्हा अपने सिपाहियों को निर्देश दे रहे थे कि किसानों का सर फोड़ दें. अब हरियाणा के मुख्यमंत्री का एक वीडियो आया है. वे बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि कैसे किसान बनकर किसानों पर लाठी चलानी है.
मुख्यमंत्री ही अपने संगठन के लोगों को डंडे चलाने की सीख दे रहे हैं. अगर इस तरह का वीडियो किसी किसान का मिल जाता तो गोदी मीडिया क्या हाल करता किसानों का. इस एक वीडियो के आधार पर जनता को ही किसानों के खिलाफ भड़का देता. किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है कि मुख्यमंत्री को बर्खास्त किया जाए. लोकतंत्र की मां भारत के एक मुख्यमंत्री का यह बयान लोकतंत्र की मां भारत के बेटों को सुनने में ठीक तो नहीं लगना चाहिए. ये लोकतंत्र की मां भारत के एक पत्रकार का सवाल है. इस घटना में एक पत्रकार की भी मौत हुई है. 35 साल के रमन कश्यप किसानों का प्रदर्शन कवर कर रहे थे. रमन कश्यम साधना न्यूज़ के लिए काम करते थे.
कानून व्यवस्था के नाम पर छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को उतरने की इजाज़त नहीं दी गई. मुख्यमंत्री होते हुए भी दोनों यूपी नहीं जा सके.पिछले साल इसी वक्त हाथरस की बलात्कार पीड़िता से मिलने को लेकर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. 3 अक्टूबर के दिन प्रियंका गांधी ने किसी तरह से पीड़िता के परिवार से मुलाकात कर ली. ठीक एक साल बाद वे इस कमरे में बंद हैं और सफाई कर रही हैं. उनके सहयोगी ने ही यह वीडिया बनाया होगा. विपक्ष की राजनीति पर्यटन कही जाएगी लेकिन राजनीति की यही प्रक्रिया है जब नेता विपक्ष का महत्व समझते हैं और सत्ता की तासीर. विपक्ष ही झुकने की विनम्रता देता है. अगर विपक्ष की यह प्रक्रिया ख़त्म हो जाएगी तो सत्ता में बैठे लोग निरंकुश हो जाएंगे. प्रियंका गांधी भले ही किसानों तक नहीं पहुंच पाईं. विपक्ष के नेताओं को इस बार भी रोका गया. सब पूछते रहे कि रोकने का कारण बताएं. गिरफ्तार कर लें. जवाब नहीं मिला.
मूल बात है कि किसानों के साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है? उन्हें लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री हों या फिर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हों इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं? क्या यह सत्ता का पर्यटन है? किसी को देश से ही निकालने की बात हो रही है तो किसी को लखीमपुर खीरी से निकालने की बात हो रही है. पूरे देश को मोहल्ला बना दिया गया है.