बेहतर है सब समय रहते हेडलाइन का खेल समझ जाएं वर्ना इस हेडलाइन के पीछे की डेडलाइन सबके लिए ख़तरनाक साबित होगी. मान लीजिए आपके 100 रुपये में से 20 परसेंट डूब गए. एक साल बाद इस बाकी बचे 80 रुपये का 20 या 21 परसेंट वापस आ गया तो क्या इसे लाभ कह सकते हैं? जितना डूबा था उतना भी तो वापस नहीं आया. अगर इसे लाभ कहने की ज़िद पर आ ही गए हैं तो लगे हाथ नुकसान को मुनाफा घोषित कर दीजिए. कम से कम हिन्दी प्रदेशों में ज़्यादातर लोग मान लेंगे क्योंकि यहां लाखों बच्चे दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में गणित में फेल हो जाते हैं. जो पास होते हैं उसमें भी ज़्यादातर खींच खांच कर नंबर लाते हैं. गणित का ऐसा आतंक है कि ट्यूशन से लेकर कोचिंग तक पर मां-बाप लाखों रुपये खर्च कर देते हैं. हिन्दी के अखबार अप्रैल से जून 2021 की जीडीपी 20 प्रतिशत बताते हुए दमदार प्रदर्शन कह रहे हैं. उम्मीद है इसके लिए भी धन्यवाद मोदी जी का पोस्टर लगने लगेगा. भारत में दो तरह के परसेंटेंज होते हैं. ‘one is' mathematical percentage and दी other is political percentage. do you get my point.
अपनी इस नवीनतम थ्योरी का प्रदर्शन करने के लिए दो महानुभावों के ट्वीट का सहारा ले रहा हूं. एक कौशिक बसु हैं जो विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनमिक्स से पढ़े हैं. मैसेचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके हैं. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. अश्विनी वैष्णव रेल और IT मंत्री हैं. वे भी उसी देश से बड़ी वाली पढ़ाई पढ़कर आए हैं. आईआईटी से पढ़े हैं. आईएएस रहे हैं. पेन्सिल्विनिया यूनिवर्सिटी के वार्टन स्कूल से बिज़नेस की पढ़ाई करके आए हैं.
कौशिक बासु कहते हैं कि भारत की जीडीपी 20 प्रतिशत नहीं बढ़ी है. अगर आप अप्रैल-जून 2019 की जीडीपी से तुलना करें तो भारत की जीडीपी का विकास दर -9.2 प्रतिशत है. हम अभी भी माइनस में है.
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ट्वीट कर रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था ने बाउंसबैक किया है. 20 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया है.
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का कहना है कि पहली तिमाही के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी 2019-20 के स्तर पर नहीं पहुंची है. महामारी से पहले के स्तर पर पहुंचने के लिए अभी और मंज़िलें तय करनी होंगी. पी चिदंबरम भी हार्वर्ड से पढ़े हैं. चिदंबरम ने ट्वीट किया है कि 2021-22 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी 32,38,828 करोड़ की है जो 2019-20 से अभी भी कम है जब जीडीपी 35,66,788 करोड़ की थी.
2020 में आपने पहली बार ज़ीरो से भी नीचे जाकर माइनस 24.4 की जीडीपी देखी. GDP उस जगह पर पहुंच गई जिसे पौराणिक ग्रंथों में पाताल लोक कहा जाता है और साहित्यिक रचनाओं में रसातल. पिछले पौने दो साल में आपने व्यक्तिगत रूप से जो गंवाया है उसकी वापसी कभी नहीं होगी. चीज़ों के दाम कम हो जाएंगे तभी नहीं आपका बैंक बैलेंस पहले के जैसा नहीं होगा.कई रिपोर्ट हैं कि तालाबंदी के इन पौने दो वर्षों में लोगों ने बैंकों में जमा पूंजी खर्च की है.कुछ लोगों के हाथ में ज़रूर पैसे आए हैं इसलिए इस साल के पहले हिस्से में मर्सिडीज़ की सेल पिछले साल से डबल हो गई. लेकिन आम लोग सोना गिरवी रखकर घर चला रहे हैं.
जिस तरह से कुछ लोग पावर इंजन को धक्का दे रहे हैं उसी तरह करोड़ों लोग हर दिन भारत की अर्थव्यवस्था को धक्का देने के लिए 200 रुपये किलो सरसों तेल,1000 का गैस सिलेंडर और 100 रुपये लीटर पेट्रोल और डीज़ल खरीद रहे हैं. जिस अर्थव्यवस्था में 80 करोड़ लोग गरीब हों, 50 फीसदी से भी अधिक, उस अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत जीडीपी होने के जश्न में शामिल होने से पहले थोड़ा रुक कर देखना चाहिए कि जीडीपी आपको धक्का दे रही है या आप जीडीपी को धक्का दे रहे हैं. धक्का देने वाले इन मेहनतकशों के पांव देख लीजिए. नंगे पैर कई मजदूर नुकीली बजरी पर वैगन को धक्का लगाने के लिए मजबूर हुए.
दुनिया के देशों के बीच खुशी की रेटिंग होती है. 2021 की हैपिनेस रिपोर्ट में भारत 149 देशों में 139 वें नंबर पर है. अगर संयुक्त राष्ट्र इस रेटिंग में सांप्रदायिकता के सुख को जोड़ दे तो भारत फिनलैंड को हटा कर पहले नंबर पर आ जाएगा. यह बिल्कुल सही है कि लोग हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस के सांप्रदायिक सुख में आकंठ डूबे हुए हैं लेकिन यह सही नहीं है कि वे आर्थिक रूप से भी सुखी हैं. कितनों को नौकरी मिली है, कितनों की चली गई है इसका डेटा सरकार नहीं देती है. जीडीपी के हिसाब-किताब को समझने वाले लोग हंस रहे हैं. वो इस बात पर भी हंस रहे होंगे कि जनता वाकई इस पर यकीन कर रही है.
मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि ट्विटर पर #Indiabouncesback ट्वीट करने वालों में वे महिलाएं नहीं हैं जो पानी में सब्ज़ी उबाल रही हैं क्योंकि 200 रुपये किलो सरसों तेल नहीं ख़रीद सकती हैं क्योंकि इनकी और इनके पति की कमाई बंद हो गई है.उबली हुई सब्ज़ी में दो बूंद तेल मिलाकर तेल के स्वाद को याद किया जा रहा है. इन तस्वीरों में आपको उज्ज्वला योजना का सिलेंडर नज़र नहीं आ रहा है. मिट्टी के चूल्हों पर खाना पक रहा है. सरसों तेल का न तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से रिश्ता है और न आयात से. जमाखोरी का शक होता है लेकिन जांच एजेंसिया विपक्षी नेताओं के पीछे व्यस्त नज़र आती हैं. ज़ां द्रेज़ और अनमोल सोमांची का एक पेपर है कि प्रथम तालाबंदी के समय लोगों के खाने में पौष्टिकता कम हो गई है. एक और रिपोर्ट है कि 7 करोड़ से अधिक लोग गरीबी में धकेल दिए गए.
आज से एक लाख करोड़ वर्ष पहले की एक बात बताता हूं. तब न धरती पर टीवी था और न अखबार छपता था. हर शख्स केवल सच कहता था. उस काल में बहुत दूर एक देश में प्याज़ महंगा हो गया. उस देश की वित्त मंत्री ने कहा कि वे प्याज नहीं खाती हैं. उस देश की जनता तब से लेकर आज तक इंतज़ार कर रही है कि क्या वित्त मंत्री सरसों तेल भी नहीं खाती हैं, सोया और मूंगफली तेल भी नहीं खाती हैं. एक और दूर देश के राजा ने कहा था कि पेट्रोल के दाम कम हुए हैं क्योंकि उनका नसीब अच्छा है. वैसे ये दोनों घटनाएं इसी देश की हैं लेकिन मैं इन्हें पंचतंत्र का टच देने की कोशिश कर रहा था. आज कल हर कथा इसी शैली में कही जा रही है ताकि लोग गर्व कर सकें.
जीडीपी का कथित तौर पर 20 प्रतिशत होने की इस खुशी के मौके पर घरेलू गैस का सिलेंडर 25 रुपये महंगा हो गया. भारत के कई शहरों में घरेलू गैस का सिलेंडर 1000 से अधिक का मिल रहा है. सिर्फ 2021 में गैस का सिलेंडर 190 रुपये महंगा हुआ है. अपनी ख़ुशी को संभालिए, अभी चार महीने और बचे हैं. भारत के कई शहरों में कामर्शियल सिलेंडर करीब करीब 1800 रुपये का हो गया है.
सूर्य पाल समोसा का दाम नहीं बढ़ा पा रहे हैं. उनकी कमाई पांच हज़ार से तीन हज़ार हो गई है. गैस और सरसों तेल के दाम बढ़ गए हैं. ग्राहक के पास आर्थिक क्षमता नहीं है कि वह आठ या दस रुपये का एक समोसा ख़रीद सके. क्या सूर्य पाल भी #Indiabouncesback ट्वीट कर रहे होंगे? हमारे सहयोगी प्रभात ने सोनभद्र से एक रिपोर्ट भेजी है. प्रभात को इलाके के हरिहर गैस एजेंसी के रमेश ने बताया कि उनके पास उज्ज्वला योजना के 9000 ग्राहक हैं लेकिन 20-25 प्रतिशत लाभार्थी ही सिलेंडर भरा पा रही हैं. कई हज़ार लोग सिलेंडर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
क्या गैस सिलेंडर की कीमत बाज़ार से तय होती है? क्या सभी प्रकार के गैस सिलेंडर की कीमत बज़ार से तय होती है? आम धारणा यही है कि बाज़ार से तय होती है लेकिन संसद में सरकार के जवाबों से ऐसा नहीं लगता है. इसी 9 अगस्त को आम आदमी पार्टी के सांसद भागवत मान ने एक सवाल पूछा कि क्या LPG से सब्सिडी खत्म कर दी गई है? कीमतें बाज़ार से तय होने लगी हैं तो इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जुड़ी हुई है.लेकिन सरकार उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी वाले घरेलू LPG में घटाती बढ़ाती रहती है.
यही नहीं सब्सिडी बंद करने के बाद भी उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के सिलेंडर की कीमत बढ़ती रही. दिसंबर 2019 की CAG रिपोर्ट है कि 35 प्रतिशत लाभार्थी कीमत के कारण वापस लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने लगे. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि जनरल सिलेंडर वालों की तुलना में उज्ज्वला के लाभार्थी पचास प्रतिशत कम सिलेंडर भरा रहे थे. डाउन टू अर्थ ने जनवरी 2019 की एक रिपोर्ट में लिखा है कि उज्ज्वला के तहत 1 करोड़ से अधिक लाभार्थियों ने सिलेंडर दोबारा नहीं भराया.
भारत की जनता गैस सिलेंडर खरीदने की आर्थिक ताकत नहीं रखती है. उसकी आर्थिक शक्ति कमज़ोर ही होती जा रही है. इस वक्त जब सिलेंडर 1000 हो गया है तब क्या हालत होगी आप सोच नहीं सकते
संतोष आज बेगुसराय के ग्रामीण झेत्र की एक गैस एजेंसी में गए थे. यहां पर उनकी मुलाकात उज्ज्वला योजना के कई लाभार्थियों से हुई. यहां पर उज्ज्वला और सामान्य सिलेंडर दोनों की कीमत एक ही है, 964 रुपये. घर पहुंचाने पर इसी सिलेंडर का दाम 1020 रुपया हो जाता है. यहां पर संतोष की मुलाकात उज्ज्वला के कई ग्राहकों से हुई. इनमें से कुछ ने पांच साल पहले कनेक्शन लिया था और कुछ ने तीन साल पहले. लोगों ने बताया कि शुरू में एक या दो बार सब्सिडी का पैसा आया लेकिन उसके बाद से नहीं आया. शिकायत करने के बाद भी पैसा नहीं आया. जब गैस का दाम कम था तो लेते थे लेकिन दाम बढ़ने के साथ गैस लेना कम कर दिया. कुछ लोगों ने संतोष को बताया कि दो साल और एक साल से गैस का सिलेंडर लेना बंद कर दिया है. इसके बाद संतोष मुसहरी टोले के कुछ घरों में गए. वहां जाकर उज्ज्वला का अंधेरा ही दिखा. कुछ घरों में खाना पकाने के लिए लकड़ी चीरी जा रही थी. चीरी हुई लकड़ी वापस रसोई घरों में जमा होने लगी है. गैस के सिलेंडर पर मकड़ी के जाले लगे हैं. कहीं पर बोरे से ढंक दिया गया है. गैस के चूल्हे पर घर का सामान रखा जाने लगा है. मिट्टी के चूल्ले पर खाना बन रहा है.
सीताराम गैस एजेंसी ने संतोष को बताया कि उज्ज्वला के ही नहीं सामान्य ग्राहकों ने भी गैस का सिलेंडर लेना बंद कर दिया है. सीताराम गैस एजेंसी का कहना है कि उज्ज्वला गैस योजना के 2200 कनेक्शन हैं इनमें से 20 प्रतिशत लोग सिलेंडर नहीं भरा रहे हैं. जनरल कनेक्शन के भी 15 प्रतिशत लोग सिलेंडर नहीं भरा रहे हैं. दिल्ली के लोग 883 और बेगूसराय के ग़रीब लोग 1020 रुपये दे रहे हैं. गैस सिलेंडर पहुंचाने वाले वेंडर ने बताया कि कई बार लोगों को डराते हैं तब लेते हैं कि अगर सिलेंडर नहीं लोगे तो वापस हो जाएगा. कनेक्शन बंद हो जाएगा.
2020 की प्रथम तालाबंदी के समय बड़ा भारी ऐलान किया गया कि उज्ज्वला योजना के तहत आठ करोड़ ग्राहकों को तीन महीने तक तीन सिलेंडर मुफ्त में दिए जाएंगे. क्या तीन महीने के भीतर आठ करोड़ लाभार्थियों को तीन सिलेंडर दिए गए? या उससे ज़्यादा वक्त लगा? 8 सितंबर 2020 की PIB की प्रेस रिलीज़ से पता चलता है कि मई तक 8.52 करोड़ सिलेंडर, जून में 3.27 करोड़ सिलेंडर, जुलाई में 1.05 करोड़ सिलेंडर और अगस्त में .89 करोड़ सिलेंडर और सितंबर में .15 करोड़ सिलेंडर दिए गए.
इससे पता चलता है कि अप्रैल में लांच इस योजना को हर महीने अपने सभी टारगेट के पास नहीं पहुंचाया जा सका. योजना थी कि 8 करोड़ लाभार्थियों को तीन सिलेंडर मिलेंगे, तो 24 करोड़ सिलेंडर होने चाहिए लेकिन सितंबर तक 13.88 करोड़ सिलेंडर ही दिए गए. सरकार बताए कि इस घोषणा के तहत 24 करोड़ सिलेंडर का टारगेट कब पूरा हआ?
कुल मिलाकर शुरू के तीन महीने में इस योजना को सभी लाभार्थियों तक नहीं पहुंचाया जा सका. सरकार ने कंपनियों से कहा था कि लाभार्थिेयों के खाते में सीधे पैसा भेज दें. नियम है कि पहली किस्त आएगी, उससे सिलेंडर खरीदना होगा तब जाकर दूसरी किस्त आएगी. फिर क्यों कई लाभार्थी कहते मिलते हैं कि उन्हें पैसा नहीं मिला और गैस एजेंसी कह रही है कि लाभार्थी ने सिलेंडर नहीं खरीदा. कंपनियों को बताना चाहिए कि उन्होंने कितने लाभार्थियों के खाते में तीनों किस्त के पैसे जमा किए हैं.
पिछले साल सब्सिडी का सिलेंडर 581 रुपये का था, अब वो भी 900-1000 का हो गया है क्योंकि सरकार ने LPG पर सब्सिडी बंद कर दी है. कई सवाल हैं जिनके जवाब आसानी से नहीं मिलते. क्या ऐसा हो सकता है कि इस योजना के तहत सब्सिडी को रोटेट किया जाता हो. यानी कुछ को इस बार दो, कुछ को अगली बार दो, कुछ को यहां दो, कुछ को वहां दो.
उज्ज्वला के तहत लगातार गैस नहीं भराने वालों की संख्या काफी बड़ी है. जिसके कारण इस बात में भी है कि सिलेंडर तो आ गया लेकिन 2016 से लेकर 2021 के बीच उनकी आर्थिक शक्ति इतनी नहीं बढ़ी कि वे ख़रीद सकें. सरकार ने कनेक्शन तो दे दिया लेकिन हर महीने भराना इनके लिए मुश्किल हो गया. इस बार के बजट में उज्जवला योजना के तहत एक करोड़ नए कनेक्शन देने की घोषणा हुई लेकिन इसके लिए बजट में कोई पैसा नहीं दिया गया.
चुनावी राज्य में इस योजना का महत्व इतना हो जाता है कि एक बार प्रधानमंत्री लांच करते हैं तो उनके बाद मुख्यमंत्री भी करते हैं. इस दस अगस्त को प्रधानमंत्री ने यूपी के महोबा में उज्ज्वला 2.0 लांच किया. जहां चुनाव होने वाले हैं.इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे. 15 दिन बाद 25 अगस्त को प्रधानमंत्री के कर कमलों द्वारा लांच हो चुकी उज्ज्वला 2.0 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने कर कमलों द्वारा लांच किया. लखनऊ से लांच करते हुए कहा कभी एक सिलेंडर के लिए लाठियां मिलती थीं अब मुफ्त में मिलता है.
एक ही योजना को बार-बार लांच करने से लाभ यह होता है कि हेडलाइन छपती रहती है. उज्जवला के तहत कनेक्शन मुफ्त में मिलता है लेकिन सिलेंडर मुफ्त में नहीं मिलता है. मार्च 2021 में संसद की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट में मंत्रालय ने संसदीय समिति के सामने जो जवाब दिया है उसे हूबहू पढ़ रहा हूं.
''महोदय कनेक्शन देने का ख़र्चा पहले 1600 रुपए था, अगर अब उस हिसाब से चलें तो एक करोड़ कनेक्शन में 1600 करोड़ खर्च आएगा. इसमें ऑयल मार्केटिंग कंपनियां खर्चा करती हैं और फिर रि-इम्बर्स सरकार करती है. इस प्रकार से तुरंत पैसे की आवश्यकता नहीं होती है यानी पहले तीन या छह महीने में पैसे की आवश्यकता नहीं होगी.''
एक ट्रेंड और है. लांच के समय की हेडलाइन योजना के लागू होते होते फुटनोट्स में बदल जाती है. इसे पकड़ने के लिए वाकई आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी और बहुत सारे दस्तावेज़ देखने होंगे और लोगों से बात करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि बुद्धिजीवियों को सरकार का झूठ पकड़ना चाहिए लेकिन जो झूठ पकड़ने में लगे हैं उन्हें झूठे मामलों में पकड़वाया जा रहा है. सरकार सवाल करने वाले अखबारों और चैनलों के विज्ञापन बंद कर देती है. पत्रकार सिद्दीक कप्पन क्या अनगिनत साल तक जेल में रहेंगे? एक मामला और है. सरकार कई मामलों में आंकड़े नहीं देती है. अलग-अलग बयान देती है. इन सबको पकड़ने के लिए प्रचुर संसाधन होने चाहिए. जो हमारे पास भी नहीं हैं. गैस कनेक्शन के बाद हम गैस के चूल्हे की बात करते हैं.
2019 की अपनी रिपोर्ट में CAG ने कहा है कि उज्ज्वला के ग्राहकों के गैस सिलेंडर नहीं भरवाने से गैस एजेंसियों के 1235 करोड़ डूब सकते हैं. गैस सिलेंडर भराने के समय ही चूल्हे का पैसा काटने का मौका मिलता है. जब लाभार्थी गैस भरना बंद कर देता है तो एजेंसियों को वह पैसा वापस नहीं मिलता है.
उज्ज्वला की कहानी भारत के लोगों के और गरीब होने की कहानी है. मुफ्त कनेक्शन देने के बाद भी बड़ी संख्या में लाभार्थी दोबारा सिलेंडर भराने की क्षमता नहीं रखते हैं. सीएजी ने अपनी 2019 रिपोर्ट में एक और धांधली की तरफ इशारा किया है. 14 लाख लाभार्थी एक महीने में तीन से 41 सिलेंडर भरा रहे थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसका इस्तेमाल व्यावसायिक कार्यों में हो रहा हो. इस इस्तेमाल पर नज़र रखनी होगी और रोकना होगा.
इस समय जब कमर्शियल सिलेंडर 1800 और उससे अधिक महंगा हो गया है तो मुमकिन है कि उज्ज्वला योजना के लाभार्थी अपनी गरीबी से बचने के लिए अपना सिलेंडर दुकानदारों को दे दें. वे सरसों तेल नहीं खरीद पा रहे हैं. गैस का सिलेंडर वैसे ही नहीं खरीद सकते हैं. कम से कम उस पैसे से तेल तो आ जाएगा. खाना लकड़ी पर पक जाएगा.
क्या प्रधानमंत्री मोदी ने गैस के सिलेंडर, सरसों तेल के दाम, पेट्रोल और डीज़ल के दाम पर कुछ कहा है? क्या प्रधानमंत्री मोदी ने तालिबान को आतंकवादी कहा है? विदेश मंत्रालय के राजदूत ने तालिबान के प्रतिनिधि से मुलाकात की है. ऐसी ही एक मुलाकात की खबर पर खंडन करने की होड़ मची थी, इस बार ये जानकारी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर है. गोदी मीडिया और आईटी सेल तालिबान से बातचीत का स्वागत कर रहा है या नहीं. मुझे भी बताइएगा.