This Article is From Jun 16, 2022

विरोध में भड़के युवा, बिहार में BJP दफ्तरों पर हमला

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Ravish Kumar

एक तो इतनी गर्मी है, ऊपर से अग्निपथ आ गया है. देश के कई ज़िलों में अग्निपथ के खिलाफ़ युवा इस भयंकर गर्मी में लथपथ सड़कों पर उतर आए हैं. कहीं हिंसा तो कहीं से लाठीचार्ज की ख़बरें हैं. क्या अब भी इन प्रदर्शनों को गोदी मीडिया की शब्दावली में कुछ लोगों का प्रदर्शन कहा जा सकता है? जैसा कि किसानों के आंदोलन को आज तक कुछ किसानों का आंदोलन कहा जाता है. क्या सरकार को कृषि कानूनों की तरह अग्निपथ योजना वापस लेनी पड़ेगी? जिस तरह से हिंसा की ख़बरें आ रही हैं, चिन्ता में डालने वाली हैं. सरकार की हर बात ठीक से समझ जाने वाले युवा इस बात को ठीक से क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि चार साल की सेना की नौकरी उनके लिए ठीक होगी? भूतपूर्व होने के लिए लोग चालीस-चालीस साल काम करते हैं, एक ही जगह काम करते हैं, तब जाकर भूतपूर्व होते हैं, अग्निपथ में फायदा है कि आप केवल चार साल में भूतपूर्व नहीं होंगे बल्कि उसके बाद जीवन में कई बार भूतपूर्व होने का सुख मिलेगा. युवाओं के लिए इतना सब कुछ ठीक से सोचा गया है तब भी युवा प्रदर्शन कर रहे हैं. यह ठीक नहीं लगता है. 

बिहार के नवादा में नौजवानों ने बीजेपी के दफ्तर में ही आग लगा दी है. अगर यही हिंसा उन लोगों ने की होती तो अब तक उनके घरों पर बुलडोज़र चल चुका होता, क्या बीजेपी के दफ्तर को जलाने वाले नौजवान इस बात से बेखबर हैं, इतने आक्रोश में हैं कि बिना हिंसा के प्रदर्शन नहीं कर सकते, नवादा से बीजेपी की विधायक अरुणा देवी की गाड़ी का क्या कसूर है, जिसे चोट पहुंचाई गई है. यही नहीं कैमूर में रेल गाड़ी में आग लगा दी गई है. छपरा में भी नौजवानों ने रेल गाड़ी में आग लगा दी है. यहां पर भीड़ ने बीजेपी के विधायक के घर पर भी हमला किया है नौजवान विधायक के घर की छत पर चढ़ गए और बीजेपी का झंडा नीचे फेंक दिया.

गोपालगंज में भी ट्रेन फूंक दी गई है. आंदोलनकारियों ने गोरखपुर पाटलिपुत्र एक्सप्रेस ट्रेन को सिधवलिया रेलवे स्टेशन पर रोक कर आग लगा दी. गनीमत है कि ऐसा करने वालों को मीडिया ने उपद्रवी और बलवाई और दंगाई नहीं लिखा है. ट्विटर पर कोई दंगाई लिखने की जल्दी में नहीं लग रहा ताकि बैलेंस बन जाए. जिस तरह से उन लोगों के समय लिखा जाने लगा था. क्या ट्रेन जलाकर युवाओं को लगता है कि आक्रोश का यही सही तरीका है? क्या रेल टैक्स पेयर की संपत्ति नहीं है? आरा के रेलवे स्टेशल पर तो जमकर पत्थर बाज़ी हुई है. इस तरह से ट्रैक से गिट्टियां उठाकर चलाई गई हैं. प्लेटफार्म को तोड़ कर युवाओं को क्या मिला है? बिहार में युवाओं पर काबू पाने के लिए कई जगहों पर पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी है. सवाल सेना में भर्ती का है और सज़ा रेल, रेल यात्री को मिले, यह ठीक नहीं, रेल पथ और रेल कोच को नुकसान पहुंचना सरासर ग़लत है. क्या इन युवाओं को इतना भरोसा है कि हिंसा के बाद भी सरकार हर्जाना वसूली के केस नहीं करेगी, घर पर बुलडोज़र नहीं चलेगा. 

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बक्सर,जहानाबाद, चतरा, गोपालगंज, नालंदा मुंगेर,मोतिहारी, छपरा सहित बिहार के कई ज़िलों में सेना की भर्ती की तैयारी करने वाले भड़क उठे हैं. इन सभी को हिंसा से बचना चाहिए था. यहां लाउड स्पीकर से अधिकारी समझा रहे हैं कि युवाओं को जो भी कहना है, लिखित ज्ञापन दें. क्या सरकार इन ज्ञापनों को पढ़ती भी है? यूपी के कई ज़िलों से प्रदर्शन और हिंसा की ख़बरें हैं. अलीगढ़ में सोमना एनएच हाईवे पर युवाओं के द्वारा रोडवेज बस में जमकर तोड़फोड़ की गई. युवा पुरानी भर्ती प्रक्रिया को लेकर भी आशंकित हैं कि पूरी होगी या नहीं, क्या उसे भी अग्निवीर योजना के हिसाब से लागू किया जाएगा? बुलंदशहर में पुलिस ने बेहद हल्के बल प्रयोग से संकेत दिया है कि प्रदर्शन अनुशासित रहे और हिंसा न हो. इसके अलावा आगरा उन्नाव, फिरोज़ाबाद सहित कई ज़िलों में अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन हुआ है. हरियाणा के रोहतक और पलवल में भी प्रदर्शन हुए हैं. पलवल में प्रदर्शनकारियों ने डीसी ऑफिस पर पथराव कर दिया. पुलिसकर्मी घायल हो गए, पुलिस की गाड़ियां फूंक डाली गई हैं. पुलिस को अपनी रक्षा में लाठीचार्ज करना पड़ा है और फायरिंग की भी ख़बर है. हरियाणा के रेवाड़ी में इस तरह से लाठीचार्ज हुआ है, युवाओं को भेड़ बकरियों की तरह हांकने वाला वर्दी में नहीं दिख रहा है, कौन है जो वर्दी में नहीं है और इतनी ज़ोर से मार रहा है, वैसे रेवाड़ी में वर्दी में भी पुलिस युवाओं को दौड़ाती नज़र आई. इसे देखकर सितंबर 2013 में रेवाड़ी की वो रैली याद आ गई जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि बचपन में वे सेना में जाना चाहते थे, बचपन के उनके सपने को ये नौजवान पूरा करना चाहते हैं लेकिन पुलिस इस तरह से लाठियों से मार रही है. इसके अलावा जम्मू, राजस्थान और पंजाब के कई ज़िलों में भी प्रदर्शन हुआ है.

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हम इन प्रदर्शनों को खारिज नहीं कर रहे, लेकिन इस हिंसा का क्या मतलब है, क्या इसलिए कि उन्हें कोई दंगाई नहीं कहेगा, उनके लिए गोदी मीडिया बुलडोज़र चलाने की मांग को लेकर बहस नहीं करेगा? आप फर्क देख पा रहे हैं कि कारण भले अलग हो, गुस्सा तो एक है, पत्थर तो एक है, आगजनी भी एक समान है, मगर एक आंदोलनकारी है, एक उपद्रवी है, एक दंगाई है और एक दंगाई नहीं है. आप इन घटनाओं की केवल सपाट व्याख्या नहीं कर सकते, सवाल तो बनता ही है कि पिछले आठ साल में रोज़गार को लेकर ऐसे कितने ही प्रदर्शन हुए, लेकिन हवा क्यों हो गए? हमारा सवाल उन युवाओं से हैं, जिनके एक बड़े वर्ग ने जिस तरह से रिटार्यड अंकिलों के साथ मिलकर व्हाट्स ग्रुप और सोशल मीडिया में हर तरह के लोकतांत्रिक प्रदर्शनों के दमन पर आनंद उठाया है, उसे सही ठहराया है, उन्हें ऐसा किस आधार पर लगता है कि गोदी मीडिया और व्हाट्स एप ग्रुप में रिश्तेदार और रिटायर्ड अंकिल सपोर्ट करेंगे? लोकतांत्रिक आंदोलन को सपोर्ट करने वाला समाज बचा ही कहां हैं, वह तो बुलडोज़र से घर गिराने का सपोर्ट करने वाला समाज हो गया है. 

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युवाओं को समझना चाहिए कि हिंसा का रास्ता छोड़ना ही पड़ेगा. यह ज़रा नहीं, भयंकर हिंसा है, इतनी हिंसा काफी है कि सरकारें इनके प्रदर्शन पर विपक्ष की सुनियोजित साज़िश का लेबल चिपका दें. इतनी धूप में प्रदर्शन कर रहे युवाओं के लिए इससे बुरा कुछ नहीं होगा. गनीमत है कि ED ने राहुल गांधी को उलझा रखा है वर्ना गोदी मीडिया अभी तक इसे मोदी सरकार के विरुद्ध कांग्रेस की सुनियोजित साज़िश करार दे दिया होता. सरकार को सुनाने से पहले युवा एक बार व्हाट्सएप ग्रुप में रिटायर्ड अंकिलों के पोस्ट चेक कर लें. पता चल जाएगा कि उनके इस प्रदर्शन में समाज साथ नहीं है.

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कीलें बिछा दी गईं थी किसान आंदोलन के आगे. तब भी इस लेबल से छुटकारा नहीं मिला कि यह कुछ किसानों का आंदोलन है. एक साल लग गए किसान आंदोलन को अपनी पहचान बनाने में  700 किसानों की अलग-अलग कारणों से जान चली गई, सर्दी, गर्मी, बरसात में कांपते, जलते, भीगते रहे तब जाकर सरकार ने गंभीरता से लिया और कृषि कानूनों को वापस लिया. प्रदर्शन करने वाले युवा जब यूट्यूब में प्राइम टाइम के एपिसोड को बार-बार देखेंगे तब जाकर बात समझ आएगी कि धरना प्रदर्शनों की साख समाप्त हो चुकी है और इसमें उनका भी सहयोग रहा है. इसलिए हर हाल में युवाओं को हिंसा से बचना चाहिए. रेल और रोड जाम से बचना ही चाहिए. 

वन रैंक वन पेंशन,नो रैंक नो पेंशन. अग्निपथ की योजना आने वाले समय में सेना को पेंशन के दबाव से हल्का करती जाएगी. लाखों बार कहते रहे कि सांसदों को सांसदी और विधायकी की भी पेंशन मिलती है. किसी-किसी को दो-दो तो किसी-किसी को चार-चार पेंशन है. अन्याय नहीं घोर अन्याय है. युवा नाराज़ हैं कि एक झटके में सेना में जवानों की नौकरी 15 साल से चार साल की कर दी गई. मगर सांसदों और विधायकों की पेंशन जारी है. उसे बोझ नहीं माना जाता. 

अग्निपथ योजना को लेकर सेना की तैयारी करने वालों के मन में कई सवाल हैं. भाजपा सांसद वरुण गांधी ने अपने ट्विटर पर नाराज़ युवाओं से कारण पूछा, जो जवाब आया है वरुण ने उसे पत्र में बदल कर ट्विटर के माध्यम से सरकार को प्रेषित कर दिया है. रेल पथ और कोलतार पथ पर अग्निपथ का विरोध कर रहे युवाओं का कहना है कि जब 15 साल तक सेना में नौकरी के बाद रिटायर होने पर कॉरपोरेट जॉब भी नहीं मिलती, तब चार साल वालों को कैसे दे देंगे? लोग बहुत ग़रीब घरों से आते हैं, अग्निवीर की सैलरी बहुत कम है. ये बात तो सही है, PIB ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार पहले साल में महीने की सैलरी 21 हज़ार हाथ मे आएगी. हर साल दो ढाई हज़ार ही बढ़ेगी. दूसरे साल में 23100 मिलेगी. चौथे वर्ष में 28000 मिलेगी. युवाओं का कहना है कि ट्रेनिंग पर जो खर्चा होगा वो व्यर्थ जाएगा क्योंकि 75 प्रतिशत अग्निवीर तो निकाल दिए जाएंगे. हर साल 75 प्रतिशत बेरोज़गार होंगे युवाओं में अंसतोष बढ़ जाएगा. 

30-30 साल की उम्र में क्रिकेट खिलाड़ी बिजली की गति की तरह क्रिज़ पर भागते रहते हैं, कोई उनकी उम्र और क्षमता पर शक नहीं करता, फिर सेना को फुर्तीला बनाने के लिए 21 साल ही अंतिम सीमा है ,इसे क्यों बेस्ट बताया जा रहा है? क्या 21 साल के बाद जवानों में बहादुरी का जज़्बा ख़त्म हो जाता है?

NCERT की किताब में परम वीर चक्र विजेताओं की उम्र देखी जा सकती है. सूचक ने औसत निकाला है कि 21 परमवीर चक्र विजेताओं की औसत उम्र 30 साल थी जब उन्हें परमवीर चक्र दिया गया था. इस लिस्ट में 21 में से 11 विजेताओं की उम्र 30 या 30 से ज़्यादा थी. 21 साल या उससे कम की उम्र के दो परम वीर चक्र विजेता हैं. 41 साल की उम्र भी परम वीर चक्र मिला है और 42 साल की उम्र में भी. बाना सिंह जी को तो 38 साल की उम्र में परमवीर चक्र मिला है. परम वीर चक्र इस देश में बहादुरी का सर्वश्रेष्ठ सम्मान है.

मेरठ से लेकर गहमर तक, झुंझुनू से लेकर बक्सर तक, अलीगढ़ से लेकर महेंद्रगढ़ तक, कई राज्यों के कई ज़िलों में अग्निपथ के खिलाफ युवा सड़क पर उतर आए हैं. इन्हीं ज़िलों में युवा सेना में भर्ती की तैयारी में दघिचि ऋषि की तरह हड्डी हड्‍डी गला देते हैं. 

आरा के इस मैदान में सुबह सुबह 200 नौजवानों की टोली भर्ती की तैयारी में लगी थी. प्रदर्शन भी हो रहे हैं मगर तैयारी भी जारी है. सवाल है कि क्या युवा अग्निवीर के लिए होने वाली 46000 भर्तियों का बहिष्कार करेंगे? ऐसा तो अभी तक किसी ने नहीं कहा है लेकिन जब आप इन युवाओं की लगन को देखेंगे तभी समझ पाएंगे कि चार साल की नौकरी की इस क्रांतिकारी योजना ने इनके सपनों को ध्वस्त कर दिया है. देश भर में इसी तरह से नौजवान तैयारी करते हैं. राजस्थान के सीकर और झुंझुनू जाकर देखिए तो पता चलेगा कि सेना में भर्ती होने का सपना केवल नौकरी का सपना नहीं है. बहुत सारे युवा पुरानी निकली हुई भर्ती को लेकर भी सवाल कर रहे हैं कि उनकी तैयारी में कई साल से लगे थे, अब उन भर्तियों का क्या होगा? 

North Atlantic Treaty Organisation (NATO) की वेबसाइट पर 2017 की एक रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट के अनुसार NATO के 22 सदस्यों की सेना के सभी जवानों की औसत उम्र 38 साल से ज़्यादा है.जो सैनिक मोर्चे पर तैनात हैं, उनकी औसत उम्र 35 साल से अधिक है. भारत में औसत उम्र 26 साल से कम करने की बात हो रही है.

अमरीकी सेना की वेबसाइट पर लिखा है कि सक्रिय सेना की किसी भी ब्रांच में शामिल होने के लिए 17 साल का होना ज़रूरी है. थल सेना कि उम्र 35 साल है. नेवी और वायु सेना की उम्र 39 साल है. स्पेस फोर्स में 39 साल की उम्र है. यह स्पष्ट नहीं हो रहा कि प्रवेश करने की अधिकतम आयु 39 साल है या सेना में बने रहने की अधिकतम आयु 39 साल है.

ब्रिटेन में सेना में भर्ती होने के लिए न्यूनतम आयु 16 साल है और अधिकतम आयु 36 साल है. यूक्रेन युद्ध के कारण रूस ने तो अधिकतम आयु सीमा ही समाप्त कर दी है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग सेना में शामिल हो सकें. 40 साल से अधिक के उम्र वाले भी सेना में शामिल हो सकते हैं, पुतिन ने हाल ही में ऐसे कानून पर दस्तख़त किया है. इसके पहले रूस में सेना में शामिल होने की न्यूनतम आयु सीमा 18 और 40 साल तक सेना में रह सकते थे.

देश के कई राज्यों में भड़के आंदोलन अगर एक तस्वीर है तो दूसरी तस्वीर यह भी है. जिससे पता चलता है कि अग्निपथ योजना को लेकर राजनीतिक नफा-नुकसान के प्रति प्रधानमंत्री कितने आश्वस्त हैं. आज प्रधानमंत्री हिमाचल प्रदेश में थे. धर्मशाला में रोड शो कर रहे थे. हिमाचल प्रदेश से भी लोग सेना में जाते हैं लेकिन यहां प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बता रही है कि आने वाले दिनों में जो नौजवान प्रदर्शन कर रहे हैं, वे अग्निपथ योजना की खूबियों को समझ जाएंगे. वही तो कहा करते हैं कि मोदी जी ने किया है तो कुछ सोच कर किया है. इसी आधार पर नोटबंदी का समर्थन किया तो अब अग्निपथ का समर्थन क्यों नहीं कर सकते हैं. आज रक्षा मंत्री ने हर तरह के मुश्किल इलाकों में चलने वाली गाड़ी चला रहे थे. अपने साथ जवानों को बिठा कर बारामूला से बड़ाखाना पहुंचे. क्या यह संकेत दिया जा रहा है कि सरकार अग्निपथ पर आगे बढ़ चुकी है, उसे अपनी इस योजना पर भरोसा है और युवाओं पर भी कि जल्दी गुस्सा शांत होगा और वे इस योजना की भर्ती में शामिल होंगे. बिहार में जदयु ने युवाओं से बात करने के लिए कहा है. 

किसान आंदोलन की तरह ही सरकार को कुछ करना होगा. तब सरकार ने तय किया था कि मंत्री से लेकर सांसद हर ज़िले में प्रेस कांफ्रेंस करेंगे और कृषि कानूनों के फायदे गिनाएंगे

हालांकि, आज ग्वालियर में भी अग्निपथ योजना का विरोध हुआ है लेकिन कृषि कानूनों के समय किसान सम्मेलन शुरू हो गया था जिसमें उन किसानों को भी लाया जाता था जो किसी न किसी योजना के लाभार्थी रहे हैं. उन्हें कृषि कानूनों के फायदे बताए गए. क्या इस बार भी बीजेपी अपने सांसदों को और सरकार अपने मंत्रियों को उन ज़िलों में भेजेगी जहां के युवा सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं? ताकि नौजवानों का गुस्सा शांत हो. 

सरकार की तरफ से सूत्रों के हवालों से सवालों के उत्तर भेजे भी जाने लगे हैं. इसमें सरकार ने बताया है कि यह बात सही नहीं है कि अग्निपथ योजना से भविष्य असुरक्षित होगा. जादुई सूत्रों के अनुसार चार साल बाद जो जो उद्यमी बनना चाहते हैं उनके लिए वित्तीय पैकेज और बैंक से कर्ज की योजना है. जो आगे पढ़ना चाहते हैं उन्हें 12 कक्षा के बराबर सर्टिफिकेट दिया जाएगा और आगे की पढ़ाई के लिए ब्रिजिंग कोर्स होगा जो नौकरी करना चाहते हैं, उन्हें सीएपीएफ यानी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों तथा राज्य पुलिस में भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी. अन्य क्षेत्रों में भी उनके नौकरियों के कई अवसर खोले जा रहे हैं.

क्या यह जवाब काफी है कि अग्निवीर की भर्ती पुरानी भर्ती की तुलना में ज्यादा होगी? भर्ती की संख्या का सवाल तो है लेकिन युवाओं का मूल सवाल है कि चार साल के लिए भर्ती क्यों हो रही है? वे चार साल बाद निकाले जाने के लिए तैयार नहीं है? सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी एक पोस्टर जारी कर अग्निपथ की खूबियां बताई हैं. 

इसमें समझा गया है कि चार साल के अनुशासित जीवन के बाद 24 साल की उम्र का व्यक्ति अन्य की तुलना में नौकरी पाने के लिए हमेशा एक बेहतर विकल्प होगा. हमारा सवाल है तो क्या सेना की भर्ती को स्किल डेवलपमेंट सेंटर के तौर पर लिया जाए? तीसरा प्वाइंट तो ज़ोरदार है. मेरा दावा है कि इसे सुनते ही आगबबूला छात्र बगुलाभगत हो जाएंगे. तीसरे प्वांइट  में कहा गया है कि चार में से 1 को पक्की नौकरी मिलेगी. करियर में Absorption का चांस क्या कम है? पता नहीं हिन्दी के पर्चे में Absorption क्यों लिखा है, लेकिन इसका मतलब यही है कि 4 में से 1 को पक्की नौकरी मिलेगी, ये बहुत है. चौथा प्वाइंट भी शानदार है. इसमें तो उल्टा सवाल पूछा गया है कि कितने लोगों के पास 21 से 24 साल के बीच 12 लाख की पूंजी जमा होती है? इसके बाद समझने के लिए कुछ नहीं रह जाता. वैसे सूचना प्रसारण मंत्रालय के ट्विटर पर जाकर आप और भी प्वाइंट देख सकते हैं और समझने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं.

एक सवाल तो यह भी है कि आप में से कितने लोग 24 साल की आयु में सेटल हो जाते हैं? यह सवाल क्यों है, समझ नहीं आया, अगर सरकार यह सवाल युवाओं से पूछ रही है तो क्या इसका जवाब यह हो सकता है कि 24 साल की उम्र में अगर कोई सेटल नहीं होता है तो क्या आप उसे चार साल बाद 24 साल की उम्र में निकाल देंगे? यही वो तर्क है जिसे व्हाट्स एप ग्रुप में रिटायर्ड अंकिल तुरंत स्वीकार कर लेंगे, थोड़ा टाइम लगेगा लेकिन युवा भी मान जाएंगे.

उद्योगों की महान संस्था FICCI ने भी ट्विट कर सरकार की इस नई योजना का स्वागत किया है. FICCI ने कहा है कि इस योजना से उद्योगों के लिए अनुशासन और कौशल से लैस युवा मिलेंगे. कोई नहीं पूछ रहा कि 2015 से चल रहा स्किल इंडिया अभियान कहां गया, उससे कौशल युक्त युवा उद्योगों को नहीं मिला जो अब सेना के रास्ते से अनुशासित और कौशल युक्त युवा का बहाना बनाया जा रहा है? 

सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि पिछले दो वर्षों से पूर्व सैन्य अधिकारियों के साथ विस्तार से चर्चा की गई. यह प्रस्ताव मिलिट्री ऑफिसर विभाग में मिलिट्री ऑफिसरों द्वारा तैयार किया गया यह विभाग सरकार ने ही गठित किया है. कई पूर्व सैन्य अधिकारियों ने इस योजना को स्वीकार किया है तथा सराहा है. सरकार ने हल्के में लिया होता तो इसके लॉन्च पर रक्षा मंत्री के साथ-साथ सेना के तीनों प्रमुख नहीं आते. इतनी विस्तृत प्रेस कांफ्रेंस बहुत ही कम होती है. सेना के तीनों प्रमुखों का साथ आना बता रहा है कि सरकार अग्निवीर योजना से पीछे नहीं हटेगी.

राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी ने अग्निपथ योजना वापस लेने की माँग की है और युवा पंचायत का एलान किया है. राजद नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अग्निपथ योजना के विरोध में ट्विट किया है. राहुल ने लिखा है कि न कोई रैंक, न कोई पेंशन,न 2 साल से कोई direct भर्ती, न 4 साल के बाद स्थिर भविष्य, न सरकार का सेना के प्रति सम्मान,देश के बेरोज़गार युवाओं की आवाज़ सुनिए, इन्हे 'अग्निपथ' पर चला कर इनके संयम की 'अग्निपरीक्षा' मत लीजिए, प्रधानमंत्री जी.'

क्या विपक्ष एक बार फिर जल्दी कर रहा है? आगे का तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस वक्त के आक्रोश या प्रदर्शन को नीतियों से नाराज़गी तक ही समझना चाहिए. इससे ज़्यादा नहीं. अगर राहुल गांधी चेतावनी देते हैं कि प्रधानमंत्री युवाओं की अग्निपरीक्षा ले रहे हैं तो याद रखा जाना चाहिए कि अपवाद को छोड़ दें तो जब भी रोज़गार का मुद्दा गरम हुआ है, उसके बाद के चुनाव में बीजेपी को ही वोट मिला है. अगर अग्निपरीक्षा है तो प्रधानमंत्री मोदी ऐसी कई अग्निपरीक्षाओं में फर्स्ट डिविज़न से पास हुए हैं. जिस वक्त कई ज़िलों से हिंसा की तस्वीरें आ रही थीं, एक तस्वीर यह भी आ रही थी कि प्रधानमंत्री हिमाचल में रोड शो कर रहे हैं और लोग फूल माला बरसा रहे हैं. 

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