This Article is From Nov 08, 2022

नोटबंदी के छह साल, भ्रष्टाचार का वही हाल

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Ravish Kumar

आज ही के दिन यानी 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू की गई थी. आम तौर पर अपने हर बड़े काम के वार्षिक समारोह मनाने वाली सरकार नोटबंदी के अगले ही साल उसे भुला चुकी थी. आज के अख़बारों में नोटबंदी जैसे महान फैसले को लेकर कोई विज्ञापन नहीं छपा है. मगर नोटबंदी के अगले साल बीजेपी ने काला धन विरोधी दिवस मनाया था. अचानक लिया गया यह फैसला इतना भयावह था कि लोगों के हाथ से जमा पूंजी उड़ गई. उनके दुख को कम करने के लिए प्रचार किया गया कि बड़े लोगों का काला धन नष्ट हो रहा है. ग़रीब और आम लोगों ने राहत की सांस ली कि उनका थोड़ा चला गया तो क्या हुआ, मगर अमीर लोगों का काला धन नष्ट हो रहा है. इस फैसले का बीजेपी को राजनीतिक लाभ भी मिला, 2017 के यूपी चुनाव में ज़बरदस्त सफ़लता मिली. नोटबंदी को लेकर जनता को जो तबाही झेलनी पड़ी, उसका कथा जीत के जश्न में भुला दी गई. सरकार कभी नोटबंदी का जश्न नहीं मनाती है. मनाएगी तो बताना पड़ेगा कि यह फैसला क्यों लिया और नतीजा क्या निकला? भारत के इतिहास में नोटबंदी का फैसला अभी तक एक ऐसे रहस्य की तरह है, जिसके बारे में किसी को साफ-साफ नहीं पता.

यह सारी तस्वीरें नोटबंदी के समय की हैं. कौन नहीं था जिसके सर पर यह फैसला पहाड़ के टुकड़े की तरह नहीं गिरा था. नोटबंदी एक तरह की आर्थिक तालाबंदी थी. उस समय के अखबारों की रिपोर्टिंग निकाल कर देखिए. जनता की परेशानी की खबरें कम थीं या पीछे के पन्नों पर थीं, नोटबंदी की महीमा वाले बयानों से अखबार भरे थे. देश की इस जनता को नोटबंदी को लेकर सही सूचना नहीं दी गई और न ही जनता की परेशान को पहले पन्ने पर जगह मिली. उम्मीद है कोई एकदिन नोटबंदी के समय अखबारों और गोदी मीडिया के चैनलों की रिपोर्टिंग का अध्ययन करेगा और इन सवालों को परखेगा. इस बीच नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई चल रही है. इस साल 12 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और भारतीय रिज़र्व से एक सवाल पूछा कि क्या आपने नोटबंदी के मकसद को हासिल कर लिया?  सरकार की तरफ से सोलिसिट जनरल ने कहा कि यह सवाल अकादमिक है. तब जस्टिस ए एस बोपन्ना ने कहा है कि जो हुआ उसे तो वापस नहीं किया जा सकता लेकिन क्या भविष्य में ऐसी शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है, हम इस सवाल को अनदेखा नहीं कर सकते. नोटबंदी के फैसले को लेकर 58 याचिकाएं दायर की गई हैं.

इस मामले में वकील श्याम दिवान और पी चिदंबरम ने कहा कि 1946 और 1978 में जो नोटबंदी की गई थी वो संसद के कानून के तहत की गई थी जिस पर बहस भी हुई थी लेकिन 2016 की नोटबंदी केवल एक नोटिफिकेशन के ज़रिए लागू कर दी गई. चिदंबरम ने कोर्ट ने भारतीय रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 15.44 लाख करोड़ की मुद्रा को विमुद्रीकरण किया गया. नोटबंदी की गई. केवल 16000 करोड़ मूल्य की मुद्रा वापस नहीं आई. नोटबंदी के दौरान .0027 प्रतिशत जाली नोट ही ज़ब्त की जा सकी. यह सब भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट है लेकिन नोटबंदी को सही ठहराने के लिए भूत खड़ा किया गया है कि हर किसी के हाथ में जाली नोट पहुंच गया है. चिदंबरम ने कहा कि चूहा पकड़ने के लिए पहाड़ गिरा दिया गया. अब तो 2000 रुपये के जाली नोट पकड़े जाने लगे हैं. 9 नवंबर को अगली सुनवाई होनी है. अदालत भी जानना चाहती है कि क्या सरकार ने इतना बड़ा कदम उठाते समय सोचा था कि इसके परिणाम क्या होंगे? 

जब बैंकों के आगे लाइनें लंबी हो गई हैं, लोग रात रात भर लाइनों में लगे रहे तब आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने एक बयान दिया था.  15 नवंबर 2016 के इस बयान में शक्तिकांत दास ने कहा कि बैंकों और ATM के बाहर लाइनें इसलिए लंबी हैं कि अलग अलग जगहों पर एक ही तरह के लोग बार बार जा रहे हैं.  यह तर्क कमाल का था कि एक ही तरह के लोग यहां से वहां बैंकों के बाहर लाइन में लग रहे हैं इसलिए भीड़ है. शक्तिकांत दास अब भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर हैं. क्या वे सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के फैसले का बचाव नहीं करेंगे? इस सवाल का जवाब आप खुद भी सोच सकते हैं. नोटबंदी के फैसले की प्रक्रिया क्या थी, किसकी राय हां में थी, और किसकी ना में. रिज़र्व बैंक की राय हां में थी या पहले ना में थी. इन सब सवालों पर स्पष्ट जवाब नहीं है. याचिका दायर करने के कई साल बीत जाने के बाद अब सुनवाई ज़ोर पकड़ रही है. हम नोटबंदी की स्मृतियों से बहुत दूर निकल आए हैं मगर उसका आर्थिक असर कितना भयावह था, उस पर जवाब तो आना ही चाहिए. क्यों अब सरकार इस दिन को उत्सव के रूप में नहीं मनाती जिस तरह से नोटबंदी के अगले साल मनाया गया था. 

नोटबंदी के एक साल बाद 8 नवंबर 2017 को बीजेपी जोश में थी, धूम धाम से काला धन विरोधी दिवस मना रही थी. मोदी सरकार के मंत्रियों को अलग-अलग राज्यों में प्रेस कांफ्रेंस के लिए भेजा गया था. हस्ताक्षर अभियान चलाए गए थे. उस साल अमित शाह का ट्विट था- "काला-धन विरोधी दिवस" मोदी जी के साहसिक नेतृत्व और देश से कालेधन और भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए ऐतिहासिक फैसले "नोटबंदी" को समर्पित है. बीजेपी के नेताओं के ट्विटर हैंडल पर जाकर इन पोस्टरों और तस्वीरों को आप देख सकते हैं,जगह जगह विचार गोष्ठियों का आयोजन हुआ था. मध्यप्रदेश में बीजेपी ने कई जगहों पर मशाल जुलूस निकाले थे. बीजेपी के नेता, समर्थक तरह तरह के पोस्टर के ज़रिए इसके फायदों का प्रचार कर रहे थे कि नोटबंदी ने यह कर दिया, वह कर दिया. कई प्रकार के पोस्टर औऱ चार्ट बनाए थे जिसमें दावा किया गया कि कि नोटबंदी के कारण लोग मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल करने लगे हैं. डिज़िटल लेन-देन बढ़ गई है जिसका मतलब हुआ कि काला धन समाप्त हो गया है. कैश का चलन बहुत कम हो गया है. ऐसे पोस्टरों में दावा किया गया कि नोटबंदी से ही आतकवाद और नक्सवाल की कमर टूट गई है. टैक्सपेयर्स की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.  

2017 में काला धन विरोधी दिवस मनाया गया, क्या वह एक ही साल के लिए था, क्या बीजेपी को भी अब इसके फायदों में यकीन नहीं है, इसलिए वह इससे किनारा ही कर लेती है? अभी-अभी भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई है कि नोटबंदी के समय की तुलना में इस समय नगदी मुद्रा चलन में 71 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो गई है. मिंट की रिपोर्ट है कि 21 अक्तूबर 2022 को लोगों के हाथ में जो नगदी थी उसका मूल्य करीब 31 लाख करोड़ का था. रिजर्व बैंक के डेटा के अनुसार 4 नवंबर 2016 को 17.7 लाख करोड़ की नगदी चलन में थी.यह तब हुआ है जब इसी के साथ-साथ डिजिटल लेन-देन की संख्या भी काफी बढ़ी है. ज़ाहिर है कैश को खत्म करने का नोटबंदी का मकसद फेल हो गया है. नगदी मुद्रा के चलन को काला धन से जोड़ा गया तो क्या अब माना जाए कि इस समय काला धन का चलन बढ़ गया है? 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने साफ साफ कहा था कि देश में कैश का अत्यधिक सर्कुलेशन का एक सीधा सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है. क्या प्रधानमंत्री अब भी इसमें यकीन करते हैं तो बताएं कि कैश का चलन नोटबंदी के समय से 71 प्रतिशत कैसे बढ़ गया ? कांग्रेस सवाल पूछ रही है.  “आज देश की मुद्राव्यवस्था का हाल यह है की देश में कुल सिक्कों और नोटों की मूल्य में 500 और 1,000 रुपये वाले नोटों का हिस्सा लगभग 80 से 90 प्रतिशत तक पहुँच गया है. देश में कैश का अत्यधिक सर्कुलेशन का एक सीधा सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है. भ्रष्टाचार से अर्जित कैश का कारोबार महँगाई पर बड़ा असर पैदा करता है. इसकी मार गरीबों को झेलनी पड़ती है.” “उस वक्त ऑर्गनिजेड लूट हुई थी .हमारी अर्थव्यवस्था को बरबाद करने की . कैश सर्कुलेशन 72 फीसदी बढ़ गया है पिछले 6 साल से . 2021 में स्विस बैंक ने कहा 14 साल में भारतीयों का सबसे अधिक है.  बोला गया करप्शन से लड़ाई लड़ेंगे अब और बढ़ गया है . फेक करेंसी भी बढ़ गई है .जम्मू कश्मीर में टेरर फंडिंग भी बढ़ गई है .बाजार से 2000 के गुलाबी नोट गायब हो गए . वो किनके पास गए ? 

नोटबंदी के समय किए गए दावों को लेकर अनेक सवाल हैं. सरकार की तरफ से जो जो दावे के किए जाते हैं, उनके बारे में पूछा जा सकता है कि इसके लिए नोटबंदी ही क्यों ज़रूरी थी? इनमें से कौन सा ऐसा लक्ष्य है जो केवल नोटबंदी से पूरा हो सकता है?कोई जवाब नहीं देता कि उस समय जो कहा गया उसका आधार क्या था? आखिर नगदी के चलन में खास अंतर तो आया नहीं है. हम कब तक तक 500 के नोटों के चलन का डेटा छोड़ कर 2000 के नोटों के चलन घटने के सहारे हेडलाइन बनाते रहेंगे? मूल बात है कि नगदी का चलन नोटबंदी के समय से बढ़ा है. थोड़ा बहुत नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा.

मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 के नोटों के चलन में कमी आ रही है.भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि 31 मार्च 2022 तक जितने भी नोटों का मूल्य चलन में हैं, उसका 87.1 प्रतिशत हिस्सा 500 और 2000 के नोटों का है. यह भी 31 मार्च 2021 की तुलना में बढ़ ही गया है. तब 85.7 प्रतिशत था. क्या ये बहुत बड़ी कमी है? रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट में है कि 2020 में  कुल नोटों की मूल्य में 500 के नोटों का चलन 60.8 प्रतिशत था जो 2022 में बढ़कर 73.3 प्रतिशत हो गया. आपने अभी सुना कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश में कुल सिक्कों और नोटों की मूल्य में 500 और 1,000 रुपये वाले नोटों का हिस्सा लगभग 80 से 90 प्रतिशत तक पहुँच गया है. देश में कैश का अत्यधिक सर्कुलेशन का एक सीधा सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है. तो क्या फर्क आया? बड़े नोटों की हिस्सेदारी तो करीब करीब उतनी ही है. 

किसी को पता नहीं था कि नोटबंदी आने वाली है. नोटबंदी लागू होते ही वह समय तमाम अफवाहों से भर गया. कहा गया कि अमीरों के बिस्तर में दबे हुए नोट ग़ायब हो गए तो अफवाह उड़ने लगी कि गरीब लाइन में लगा ही रहा, अमीरों ने अपने नोट आसानी से बदल लिए. सरकार ही नहीं, इसकी सच्चाई को लेकर समाज भी चुप हो गया है. बैंकों के भीतर जिन अफसरों ने उस सच को देखा, वे भी चुप हो गए. इसलिए नोटबंदी का फैसला रहस्य की तरह लगता है. इस खेल से किसकी जेब कटी और किसकी जेब भर गई, आपके लिए जानना ज़रूरी है. 8 नवबंर 2016 की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया था, उसकी कॉपी पढ़िए.उसमें उन्होंने नहीं कहा था कि नोटबंदी से करदाताओं की संख्या बढ़ेगी. लेकिन नोटबंदी के अगले साल इसे लेकर दावे किए गए करदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई है. यह ट्विट तो शिवराज सिंह चौहान का ही है. 10 नवंबर 2017 के रोज़ अपने इस ट्विट में मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि नोटबंदी से होम लोन कम हो गया है. असल में किसी को पता नहीं था कि यह क्या फैसला है, इक्या बचाव करना है, तो जिसे जो मन आ रहा था, उससे जोड़कर नोटबंदी के फायदे बताने लगा.

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अगर नोटबंदी से होम लोन सस्ता होता है तो इस समय होम लोन महंगा हो रहा है. क्या शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री से मांग करेंगे कि जनता को महंगे होम लोन से राहत देने के लिए फिर से नोटबंदी हो?जो नहीं कहा गया, उसका भी दावा किया गया ताकि नोटबंदी को महान बताया जा सके. अब तो कोई नाम भी नहीं लेता है. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में आतंकवाद, काला धन, जाली नोटों का ज़िक्र किया था. यह हिस्सा सुना रहा हूं ताकि आपकी नज़र में यह बात रहे कि प्रधानमंत्री ने कौन कौन से मुख्य लक्ष्यों को सामने रखा था. 

आज मध्य रात्रि यानि 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानि ये मुद्राएँ कानूनन अमान्य होंगी. 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों के जरिये लेन देन की व्यवस्था आज मध्य रात्रि से उपलब्ध नहीं होगी. भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोट के कारोबार में लिप्त देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों के पास मौजूद 500 एवं 1,000 रुपये के पुराने नोट अब केवल कागज़ के एक टुकड़े के समान रह जायेंगे. ऐसे नागरिक जो संपत्ति, मेहनत और इमानदारी से कमा रहें हैं, उनके हितों की और उनके हक़ की पूरी रक्षा की जायेगी. ध्यान रहे की 100 रुपये, 50 रुपये, 20 रुपये, 10 रुपये, 5 रुपये, 2 रुपये और 1 रूपया का नोट और सभी सिक्के नियमित हैं और लेन देन के लिए उपयोग हो सकते हैं. उस पर कोई रोक नहीं है. हमारा यह कदम देश में भ्रष्टाचार, काला धन एवं जाली नोट के खिलाफ हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, सामान्य नागरिक जो लड़ाई लड़ रहा है, उसको इससे ताकत मिलने वाली है. 

8 नवंबर को यही बताया गया कि नोटबंदी का मकसद है काला धन समाप्त करना, भ्रष्टाचार मिटाना और जाली नोटों का चलन खत्म करना. उस समय भी जाली नोटों के प्रतिशत को चुनौती दी गई, कि क्या इतने नोट जाली हैं जिसका भूत खड़ा किया गया और जाली नोट तो अब भी पकड़े जाते हैं. इसकी रिपोर्ट तो समय समय पर आती रहती है
(ग्राफिक्स इन हिन्दुस्तान की खबर इन) suchak 
यह खबर इसी 4 अक्तूबर की है, हिन्दुस्तान अखबार में छपी है. गुजरात के सूरत में मुंबई और गुजरात पुलिस ने 317 करोड़ रुपये के जाली नोट बरामद किए थे.इस रकम में 67 करोड़ रुपये के चलन से बाहर हो चुके 500 और 1000 रुपये नोट भी शामिल हैं. आरोपियों ने काले धन को सफेद करने के लिए ट्रस्ट, कंपनी और आयोग के नाम पर लोगों से ठगी की थी. पुलिस ने इन जाली नोटों को छापने वाले प्रिंटर को पकड़ने के लिए 2 अतिरिक्त टीमें गठित की हैं.

जाली नोट अभी भी पकड़े जा रहे हैं. इसी साल मई में भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई थी कि 500 के जाली नोटों की संख्या में 102 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2000 के जाली नोटों की संख्या में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जाली नोट के बाद भ्रष्टाचार पर आते हैं. अगर नोटबंदी से भ्रष्टातार खत्म हुआ होता तो इसके पांच साल आज़ादी के 75 वीं सालगिरह पर प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार से लड़ने का आहवान नहीं करना पड़ता. प्रधानमंत्री ने देश को नहीं बताया कि नोटबंदी अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई थी तो उसका नतीजा क्या निकला. क्यों उन्हें इस साल 15 अगस्त को कहना पड़ा कि भारत की दो बड़ी चुनौतियां हैं जिसमें से भ्रष्टाचार एक है. कहते हैं कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खा रहा है. लेकिन क्या उन्हें याद नहीं कि इस दीमक को तो नोटबंदी से मिट जाना था. प्रधानमंत्री 15 अगस्त के भाषण में कहते कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हम एक निर्णायक कालखंड में कदम रख रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री को याद नहीं कि नोटबंदी को भी उन्होंने निर्णायक लड़ाई कहा था, तो फिर हुआ क्या? हम इस 15 अगस्त और 8 नवंबर 2016 के भाषण का अंश दिखा रहे हैं ताकि आपको पता चले कि भ्रष्टाचार तो नहीं ही मिटा है, भाषण भी नहीं बदला है. प्रधानमंत्री तब भी इसे यज्ञ बताकर जनता का साथ मांग रहे थे, अब भी मांग रहे हैं. 

“भाईयो और बहनों, अब भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मैं साफ देख रहा हूं कि हम एक निर्णायक कालखंड में कदम रख रहे हैं. बड़े-बड़े भी बच नहीं पाएंगे. इस मिजाज के साथ भ्रष्‍टाचार के खिलाफ एक निर्णायक कालखंड में अब हिन्‍दुस्‍तान कदम रख रहा है. और मैं लाल किले की प्राचीर से बड़ी जिम्मेवारी के साथ कह रहा हूं. और इसलिए, भाईयों-बहनों भ्रष्‍टाचार दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है. मुझे इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी है, लड़ाई को तेज करना है, निर्णायक मोड़ पर इसे लेकर के ही जाना है. तब मेरे 130 करोड़ देशवासी, आप मुझे आर्शिवाद दीजिए, आप मेरा साथ दीजिए, मैं आज आप से साथ मांगने आया हूं, आपका सहयोग मांगने आया हूं ताकि मैं इस लड़ाई को लड़ पाऊं. “

“ऐसे करोड़ों भारतवासी जिनके रग रग में ईमानदारी दौड़ती है उनका मानना है कि भ्रष्टाचार, काले धन, बेनामी संपत्ति, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक होनी चाहिए.” “अतः भ्रष्टाचार, काला धन, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ जंग में हम लोग थोड़ी सी कठिनाई वह भी कुछ दिनों के लिए तो झेल ही सकते हैं. मेरा पूरा विश्वास है की देश का प्रत्येक नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ शुचिता के इस महायज्ञ में मिल कर खड़ा होगा.”

भ्रष्टाचार से लड़ाई के नाम पर आम लोगों पर यह फैसला थोप दिया गया. आम लोगों को लाइन में लगाया गया. उनकी जमा पूंजी नष्ट हो गई. महिलाओं के पास जो अपने पैसे थे वे पुरुषों ने ले लिए और नष्ट भी हो गए. सदमे से कितने लोगों की जान चली गई. भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग विपक्षी राज्यों में ही होती है, जांच एजेंसियां विपक्षी राज्यों में ही सक्रिय नज़र आती हैं, ऐसा लगता है कि बीजेपी शासित राज्यों में भ्रष्टाचार वाकई मिट गया है, वहां ईमानदारी की गंगा बह रही है, वहां की राजनीति और चुनाव से धन बल का प्रकोप मिट चुका है. बस विपक्षी राज्यों में दूर करना बाकी रह गया है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का डेटा कहता है कि भ्रष्टाचार की धारणा को लेकर भारत की रैकिंग खराब ही हुई है

सरकार इस डेटा को स्वीकार नहीं करती है लेकिन जब स्वच्छता को लेकर शहरों की रैंकिंग बना दी है, राज्यों के सतत विकास लक्ष्य SDG की रैकिंग बना दी है तब फिर भ्रष्टाचार की धारणा को लेकर कोई रैकिंग का सिस्टम क्यों नहीं बनाया गया? नोटबंदी की कहानी तरह तरह के दावों की कहानी है. एक फैसले को सही और महान बताते के लिए उस समय कुछ भी दावे किए जा रहे थे.

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24 July 2018 के फाइनेंशियल एक्सप्रेस से लेकर बिजनेस स्टैर्ड सहित कई जगहों पर यह खबर छपी है.मोदी सरकार के मंत्री दावा कर रहे हैं कि स्वीस बैंक में भारतीयों का जमा पैसा घट गया है. मोदी सरकार के दौर में 80 प्रतिशत कम हो गया है. पीयूष गोयल यह बात सदन में कहते हैं. स्वीस बैंक में काला धन है, कितना धन है, न इसका पचा चला और न वहां से कोई काला धन आया. पीयूष गोयल ने कहा कि स्वीस बैंक में जमा हर पैसा काला धन नहीं है. यह बयान अरुण जेटली का भी है. लेकिन 2014 के पहले तो इस तरह से बात नहीं कही जाती थी. 

हमने पीयूष गोयल के बयान का यह हिस्सा इसलिए भी दिखाया कि हम बताना चाहते हैं कि इन मामलों में कैसे कैसे बयान दिए जा रहे थे. उस समय तो आपको लगता होगा कि वाह क्या बात है, कमाल हो रहा है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ है. 24 जुलाई 2018 के बयान के ठीक सात दिन पहले वित्त राज्य मंत्री शिव प्रसाद शुक्ला लोकसभा में ही क्या जवाब देते हैं, वो भी जान लीजिए. अभी आपने देखा कि 24 जुलाई 2018 के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में उनका बयान छपा है कि मोदी राज में स्वीस बैंक में भारतीयों का जमा पैसा 80 प्रतिशत कम हुआ है लेकिन उसी साल और इस बयान के ठीक 7 दिन पहले वित्त राज्य मंत्री शिव प्रसाद शुक्ला लोकसभा में एक जवाब देते हैं.

यह उसी जवाब की कॉपी की तस्वीर है. 15 सांसदों ने सरकार ने पूछा था कि क्या 2016 में स्वीस बैंक में भारतीयों के जमा पैसे में 45 प्रतिशत की कमी आई है? तब वित्त राज्य मंत्री कहते हैं कि भारत सरकार के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है. वित्त राज्य मंत्री मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताते हैं कि किस साल कितना पैसा जमा था. लेकिन एक हफ्ते बाद कार्यकारी वित्त मंत्री के रूप में पीयूष गोयल तो पूरी जानकारी देते हैं कि 80 प्रतिशत की कमी आ गई है. यह जानकारी उनके पास कहां से आई, क्योंकि उनके राज्य मंत्री का जवाब है कि सरकार के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है.

इसी साल 26 जुलाई को लोकसभा में सांसद विंसेंट पाला ने सवाल किया कि पिछले दस वर्षों में स्वीस बैंक में कितना काला धन जमा है तो सरकार जवाब देती है कि कोई जानकारी नहीं है. लेकिन आपको चुनावों में कितनी बार बताया गया कि स्वीस बैंक में काला धन जमा है. क्या यह जानकारी तब नहीं थी, या झूठ बोल कर जनता को भरमाने के लिए स्वीस बैंक में काला धन का भूत खड़ा किया? उस समय नोटबंदी को ऐसा मास्टर स्ट्रोक बताया गया कि लोगों को लगा कि कोई कमाल का फैसला है, सवाल मत करो चुप ही रहो. जैसा कहा जाता है, वैसा करते रहो. 

नोटबंदी के अगले ही दिन 9  नवंबर को राहुल गांधी ने ट्विट किया कि मिस्टर मोदी ने एक बार  फिर साबित कर दिया कि आम लोगों, किसानों और छोटे दुकानदारों, गृहणियों की कितनी कम परवाह करते हैं. आम लोगों को अराजकता में झोंक दिया जबकि  काला धन के असली खिलाड़ी अपने धन को सोना चांदी और मकानों में लगा कर विदेशों में बैठे होंगे. शानदार मिस्टर मोदी. राहुल गांधी नोटबंदी की आलोचना में सड़क पर उतर गए, बैंकों के बाहर कतारों में लगे लोगों से मिलने लगे.9 नवंबर 2016 को राहुल ने एक सवाल पूछा था कि एक हज़ार का नोट हटा कर 2000 का नोट लाने से काले धन का संग्रह मुश्किल कैसे हो जाएगा? राहुल के सवाल सटीक थे मगर उनकी विश्वसनीयता उस वक्त इतनी कमज़ोर थी कि उन्हें ट्रोल किया जाने लगा. जनता ने राहुल के सवालों को ठुकरा दिया और मोदी पर विश्वास किया. 8 नवंबर 2018 को नोटबंदी के चार साल पूरे होने पर कांग्रेस ने विश्वासघात दिवस मनाया था. 

राहुल इन दिनों पदयात्रा कर रहे हैं. उनकी पदयात्रा के 62 दिन हो गए हैं. राहुल ने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना की यात्रा पूरी कर ली है और अब वे महाराष्ट्र में प्रवेश करने वाले हैं. जब भी 8 नवंबर का दिन आता है राहुल गांधी का ट्विट भी आता है. वे नोटबंदी को लेकर अपनी आलोचना पर अब भी कायम हैं. आज राहुल ने ट्विट किया है कि काला धन नहीं आया, बस ग़रीबी आई. इक़ॉनमी केशलेस नहीं, कमज़ोर हुई है. राजा ने नोटबंदी में 50 दिन का झांसा देकर अर्थ्व्यवस्था का deMo-lition कर दिया. आपको याद होगा कि नोटबंदी के समय प्रधानमंत्री ने देश से 50 दिन का समय मांगा था, लेकिन अब वे बताते भी नहीं कि यह फैसला क्यों लिया, इससे देश को क्या हासिल हुआ और देश ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई. राहुल गांधी ने आजसअपवे पुराने बयानों का वीडियो ट्विट किया है कि तब उन्होंने क्या कहा था 

इसी तरह का वीडियो सरकार भी ट्विट कर सकती थी. नोटबंदी का फ़ायदा बताते हुए और तमाम सवालों के जवाब देते हुए. अब तो पचास दिन भी बीत गए हैं. न जाने कितने पचास दिन बीत गए हैं. 
(वीओवीटी आउट मोदी जी का बाइट इन) PT November 8 2021 and 12 october 2022 
'मैंने देश से सिर्फ पचास दिन मांगे है, 30 दिसंबर तक का वक्त दीजिए. उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, गलत इरादे निकल जाए, कोई कमी रह जाए तो जिस चौराहे पर खड़ा करेंगे खड़ा होकर, देश जो सजा देगा उसे भुगतने के लिए तैयार हूं.'

आखिर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी नोटबंदी को लेकर उत्साहित क्यों नज़र नहीं आती है? इस फैसले का साथ देश ने दिया ही, सबको लगा कि आज़ादी की लड़ाई जैसी कोई लड़ाई है, साथ देते हैं मगर मिला क्या? इस नौटबंदी से कौन सा ऐसा मकसद पूरा हुआ जो केवल नोटबंदी से ही हासिल हो सकता था, दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था? हर बड़े मकसद को आप चुनौती दे  सकते हैं, पूछ सकते हैं कि नोटबंदी ही क्यों ज़रूरी थी? 

50 दिनों तक आम लोग बैंकों के बाहर लाइन में लगे रहे. नोट नहीं बदले जाने के सदमे से बीमार होता रहा और मरता रहा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के दौरान 150 से अधिक लोग मर गए. वीणा देवी के पति सब्ज़ी बेचते थे. लाइन में लगे रहे और सदमे से गुज़र गए. वीणा देवी अकेली हो गईं. ऐसे अनेक लोगों के काम धंधे छूट गए. जीडीपी को गहरा धक्का पहुंचा और कई धंधे बंद हो गए. नोटबंदी के बाद CMIE की रिपोर्ट ने बताया था कि जनवरी से अप्रैल के बीच 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. सबसे ज़्यादा मार पड़ी औरतों पर. जिनके पास घर खर्च से बचाए गए बरसों की पूंजी थी. उनका पैसा उजागर हो गया और नष्ट भी. आम जनता की क्रय शक्ति ख़त्म हो गई. नोटबंदी के वक्त जो लोग भारत से बाहर थे उनके पास भी बड़ी मात्रा में नोट नष्ट हो गए. सरकार ने कुछ दिनों के लिए रिज़र्व बैंक में पैसा बदलवाने की योजना बनाई लेकिन वहां NRI से ज़्यादा आम लोग पहुंच गए. राजस्थान से आए एक बुजुर्ग रोने लगे कि दस हज़ार रुपया उनकी पूंजी है, नष्ट हो जाएगी. इसी तरह कई लोगों का पैसा बर्बाद हो गया. लोगों के पास खाने तक के पैसे नहीं बचे थे. सारे सवाल प्रधानमंत्री की चुनावी सफलता की आड़ में पीछे धकेल दिए जाते हैं. शायद हम इस दौर में कभी न जान पाएं कि इसके पीछे किस तरह की मंशा थी, जो जनता के सामने रखी गई उसका हाल तो आपने देख ही लिया.

कम से कम यही सवाल पूछा जा सकता है नोटबंदी के अगले साल प्रधानमंत्री ने 7 नवंबर 2017 को 14 ट्विट किए.  ट्विट के साथ नोटबंदी के फायदे बताने वाला कोई न कोई पोस्टर था.जब इतना फायदा ही हुआ था तो इस साल क्यों भुला दिया गया वह भी तब जब इस साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की अपील की थी. क्या अब नोटबंदी भ्रष्टाचार से लड़ने का निर्णायक हथियार नहीं है? आखिर गोदी मीडिया कब तक बेरोज़गारी को जनता के बीच से गायब रख पाएगा. टीवी के पर्दे से इस समस्या को हटा देने से यह समस्या दूर नहीं हो जाती है. हमने 7 नवंबर के प्राइम टाइम में दिखाया था कि हरियाणा में ग्रुप सी और डी की आरंभिक परीक्षा के लिए दस लाख से ज्यादा नौजवानों ने आवेदन किया था

बसों के भीतर और ऊपर छत पर सवार किसी तरह परीक्षा केंद्रों तक पहुंच रहे छात्रों की इन तस्वीरों को कैसे ग़ायब कर दिया जाता है, यह उसी दौर में संभव हो रहा है जब कई सारे न्यूज़ चैनल आ गए हैं. जिस दौर में बेरोज़गारी चरम पर है, उसी दौर पर इस पर कोई चर्चा नहीं है.  सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकॉनमी का नया आंकड़ा आया है. 5 नवंबर 2020 को गांवों में बेरोज़गारी की दर बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गई. यह बहुत ज़्यादा है. शहरों में 7.93 प्रतिशत हो गई. अक्तूबर महीने के 5 तारीख की तुलना में इस आंकड़े को देखें तो एक महीने में बेरोज़गारी की दर बढ़ीा है. अप्रैल और मई 2020 में बेरोज़गारी की दर के बराबर इस समय बेरोज़गारी दर हो गई है.   

यह सब सवाल कौन करेगा, जो नहीं करता है उन चैनलों के पत्रकारों का हर तरफ स्वागत है. यह भी एक तरह से बायस है, पूर्वाग्रह,सरकार से सवाल ही न पूछो, हिमाचल में बहुत से पत्रकार दिल्ली से गए हैं. आप उनका कवरेज़ देखिए कि कौन पत्रकार बेरोज़गारी को लेकर सवाल कर रहा है? मूल मुद्दे पर कोई बात नहीं करेगा. माहौल दिखाने के नाम पर इन सवालों को गायब कर दिया जाएगा. इसी संदर्भ में बताना चाहता हूं कि केरल में एक घटना हुई है. केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस से दो पत्रकारों को बाहर करवा दिया. कैराली टीवी और मीडिया वन के पत्रकार को बाहर कर दिया गया. राज्यपाल कोची में प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे. 

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान ने मीडिया वन के पत्रकार से कहा कि शाह बानो केस में जो उनका स्टैंड था, उसका बदला ले रहे हैं. उनके खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. पूरा गोदी मीडिया विपक्ष के खिलाफ अभियान चला रहा है, क्या राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान सवाल करना चाहेंगे? कैराली टीवी के बारे में कहा कि यह तो मीडिया भी नहीं है. राजनीतिक लोग हैं. उन्होंने प्रेस कांफ्रेेस से पहले कहा कि उम्मीद है यहां कोई कैराली टीवी और मीडिया वन से कोई नही है. जैसे ही मीडिया वन के पत्रकार ने कहा कि वह मौजूद हैं तो राज्यपाल ने बाहर जाने के लिए कह दिया. इसके विरोध में आज पत्रकारों ने राजभवन तक मार्च किया. 

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गोदी मीडिया ही अब स्वतंत्र मीडिया है. वह हर तरह की जवाबदेही से स्वतंत्र है. उससे कोई नहीं पूछता कि आप विपक्ष को क्यों नहीं दिखाते, जनता के मुद्दों को क्यों नहीं दिखाते. सरकार से सवाल क्यों नहीं करते. यह सब आपको भी पता है. इसका असर बीस साल बाद पता चलेगा. 

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