This Article is From Mar 28, 2025

MP में नामकरण नीति का महायज्ञ: बेरोज़गारों की रीब्रांडिंग!

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अनुराग द्वारी

मध्य प्रदेश सरकार के नामकरण प्रेम ने अब एक नया मोड़ ले लिया है! पहले सड़कों के नाम बदले, फिर स्टेशनों के, फिर जिलों के और अब बेरोज़गारों का भी ब्रांडिंग कर दिया गया है! अब ये बेचारे बेरोज़गार नहीं कहलाएंगे, बल्कि ‘आकांक्षी युवा' होंगे! सरकार ने यह घोषणा ऐसे की, मानो बेरोज़गारी कोई पुराना गद्दा था, जिसे नया कवर चढ़ाकर फिर से नया बना दिया गया हो!

नौकरी नहीं, नाम बदलने की गारंटी!

भोपाल के प्रकाश सेन ने बीएससी कंप्यूटर साइंस किया था, सोचा था कि गूगल-फेसबुक में कोडिंग करेंगे, लेकिन सरकार की आकांक्षा देखिए, उन्हें चाय बनाने की ट्रेनिंग मिल गई! अब वो कोडिंग की जगह टी-स्टॉल पर "आर्डर प्रोसेस" कर रहे हैं.

इधर, आर्यन श्रीवास्तव ने बीएससी एग्रीकल्चर की थी, सोचा था कि खेतों में वैज्ञानिक क्रांति लाएंगे, लेकिन नौकरी के नाम पर बस ‘संभावनाओं के महासागर' में तैर रहे हैं. सरकारी नौकरी का फॉर्म भरा, तो ‘पेपर लीक' स्पेशल ऑफर मिल गया!

शैलेन्द्र मिश्रा तो 30 हजार फॉर्म भरने में फूंक चुके हैं! एक 10x10 के कमरे में किताबें, चूल्हा, सपने—All-in-One सेटअप! और सोनाली पटेल 2019 से पुलिस भर्ती का पीछा कर रही हैं, मगर रिजल्ट उनसे लुका-छुपी खेल रहा है!

संख्याओं का खेल: बेरोजगारी कम नहीं हुई, बस नाम बदल गया!

जुलाई में सरकार ने बताया कि 25 लाख 82 हजार बेरोज़गार हैं, फिर दिसंबर में कहा 26 लाख 17 हजार और अब कहती है कि बेरोज़गार नहीं, बल्कि 29 लाख 36 हजार ‘आकांक्षी युवा' हैं! यानी बेरोजगारी बढ़ी नहीं... सिर्फ नाम बदल गया!

2020-2024 तक 2709 रोजगार मेले हुए, 3 लाख 22 हजार 839 को ऑफर लेटर मिले, लेकिन कितनों ने जॉइन किया? सरकार को नहीं पता!

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सरकार का तर्क:

मध्यप्रदेश के कौशल विकास मंत्री गौतम टेटवाल का कहना है—"अगर बेटा अपने पिता की दुकान पर काम करता है और रोजगार पोर्टल पर रजिस्टर है, तो वह बेरोज़गार नहीं हुआ!"

मतलब बेरोजगारी का हल यह है कि जो भी घर पर बैठा हो, उसे कोई काम पकड़वा दो—भले ही वह पड़ोस के कुत्ते को घुमाने की ज़िम्मेदारी ही क्यों न हो!

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नाम बदलने से हकीकत नहीं बदलती!

किसी रेलवे स्टेशन का नाम बदल देने से वहां ट्रेनें जल्दी नहीं चलतीं, वैसे ही बेरोज़गार को आकांक्षी कहने से नौकरी नहीं आती! लेकिन अब सवाल उठता है—अगला नामकरण किसका होगा? गरीब ‘सक्षम नागरिक' और भिखारी ‘सड़क के रोज़गार शोधार्थी या सड़क के स्टार्टअप फाउंडर' तो नहीं कहलाने लगेंगे?

लेखक परिचयः अनुराग द्वारी NDTV इंडिया में स्‍थानीय संपादक (न्यूज़) हैं...
(अस्वीकरण: ये लेखक के निजी विचार है. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.)

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