This Article is From Jul 14, 2023

2024 के लिए 2004 की तरह सोनिया गांधी ने संभाला विपक्ष का मोर्चा

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Manoranjan Bharati

बेंगलुरु में 17-18 जुलाई को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में सोनिया गांधी भी मौजूद रहेंगी. 17 जुलाई को सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी नेताओं को डिनर पर भी बुलाया है. अभी तक सोनिया गांधी ने अपनी राजनीतिक गतिविधि को कम कर रखा था, मगर बेंगलुरु की बैठक के लिए वो पूरी तरह तैयार हैं. उनके इस बैठक में शामिल होने से यह भी तय हो गया कि मोर्चा के नेतृत्व के सवाल पर कांग्रेस गंभीर है और अपना दावा बनाए रखना चाहती है. 

अभी तक लग रहा था कि विपक्ष का नेतृत्व नीतीश कुमार या शरद पवार कर रहे हैं. जाहिर है विपक्षी दलों की पहली बैठक पटना में हुई. उससे पहले सभी नेता शरद पवार से मिलने मुंबई का चक्कर काट रहे थे. मगर सोनिया गांधी के आने से स्थिति साफ हो गई है. वजह है कि सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन हैं. 2004 और 2009 में सत्ता में यूपीए को ला चुकी हैं. उन्हें गठबंधन चलाने का अनुभव है.

2004 में सोनिया को उस वक्त सफलता मिली थी, जब उनके खिलाफ वाजपेयी और आडवाणी जैसे क़द्दावर नेता थे. सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में आए 10 साल भी नहीं हुए थे. हां... ये बात जरूर है कि इस बार उनके खिलाफ मोदी और शाह की जोड़ी है. उनके पास ना तो सलाहकार के तौर पर अहमद पटेल हैं. न ही राजनीति सूझबूझ रखने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत. मगर इस बार उनके पास शरद पवार, खरगे और नीतीश कुमार हैं.

सोनिया गांधी ने बैठक में शामिल होने के लिए बेंगलुरु को चुना है, जहां कांग्रेस की सरकार है. अपना मुख्यमंत्री है और बीजेपी को हरा कर सत्ता हासिल की है. पटना में जेडीयू-आरजेडी की सरकार है. जबकि कांग्रेस गठबंधन में है. कर्नाटक से गांधी परिवार का रिश्ता काफ़ी पुराना है. इंदिरा गांधी इमरजेंसी के बाद कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ी थीं. सोनिया गांधी ने भी राजनीति में शुरुआत बेल्लारी से पर्चा भर कर किया था. 

सोनिया गांधी का विपक्ष के उन नेताओं से भी रिश्ते काफी अच्छे हैं, जो राहुल गांधी के सामने अपने आप को असहज पाते हैं. जैसे ममता बनर्जी... लालू यादव भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी के ज़बरदस्त फैन हैं. शरद पवार से उनके राजनीतिक संबंध काफी मधुर हैं. क्योंकि एनसीपी बनाने के तुरंत बाद ही सोनिया ने पवार के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी, जब विलास राव देशमुख मुख्यमंत्री बने थे.

नीतीश कुमार ने भी पिछले साल सितंबर में विपक्षी एकता के लिए उनसे मुलाकात की थी. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सोनिया गांधी के बेंगलुरु की बैठक में शामिल होने पर कांग्रेस का विपक्ष को नेतृत्व करने का दावा मज़बूत हो जाएगा. कई नेता ये मान चुके हैं कि बिना कांग्रेस के विपक्ष का कोई मोर्चा संभव नहीं है. इस बात को लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव गठबंधन से अलग हो गए मगर ममता बनर्जी ने ना ना करते करते हां कर दी. अब सोनिया गांधी के आने से उन्हें भी राहत मिली होगी.

सोनिया गांधी ने हाल के दिनों में अपनी राजनीतिक गतिविधि भले ही कम कर दी हों, मगर उनकी एक गरिमा है. गठबंधन को चलाने का अनुभव है. नेतृत्व देने की क्षमता है. इसलिए अब सबकी निगाहें बेंगलुरु में होने 17-18 जुलाई को होने वाले बैठक पर है, जहां संभव है 2024 के लिए 24 दलों के इस मोर्चा का कोई नाम दिया जाए. अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी जैसा कोई नाम सामने आए नीतीश कुमार या शरद पवार जैसा संयोजक.

बेंगलुरु की इस बैठक में तीन वर्किंग ग्रुप बनाए जाने की भी संभावना है, जो गठबंधन के मुद्दे उनकी रणनीति, रैलियों की प्लानिंग और विपक्ष का एक ही उम्मीदवार मैदान में हो उसकी रूपरेखा तैयार करेगा.

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मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.