मनीष कुमार की कलम से : कांग्रेस और नीतीश, कैसा होगा यह नया समीकरण

मनीष कुमार की कलम से : कांग्रेस और नीतीश, कैसा होगा यह नया समीकरण

पटना:

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल परेशान है। उनकी परेशानी का कारण बीजेपी नहीं, बल्कि उनके दो सहयोगी जनता दल यूनाइटेड और कांग्रेस हैं। कांग्रेस उनकी पुरानी सहयोगी रही है इसलिए राष्ट्रीय जनता दल के नेता कांग्रेस पार्टी के उस संकेत से ज्यादा तल्ख़ दिखते हैं, जिसमें उन्होंने साफ कर दिया कि अगर लालू यादव और नीतीश कुमार का गठबंधन नहीं हुआ तब कांग्रेस नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहेगी, हालांकि विधिवत रूप से कांग्रेस पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन दिल्ली से पटना तक कांग्रेस नेताओं की आम राय है कि लालू यादव के नेतृत्व से अच्छा बिहार में नीतीश कुमार का चेहरा है।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस अपने सबसे पुराने सहयोगी को चुनावी मझदार में क्यों अलग-थलग करना चाहती है। कांग्रेसी नेताओं की मानें तो अभी तक लालू यादव के रुख से लगता है कि वह चुनाव बीजेपी गठबंधन से ज्यादा नीतीश कुमार को अपना विरोधी मानकर लड़ना चाहते हैं।

बिहार के कांग्रेसी नेताओं की स्पष्ट राय है कि लालू यादव जिन्हें यह वास्तिवकता मालूम है कि अगर जनता दल यूनाइटेड  कांग्रेस, राजद गठबंधन एक साथ चुनाव लड़ेगा तब जीत का सफर आसान हो सकता है, उसके बावजूद लालू यादव सीट से लेकर नेतृत्व तक के मुद्दे पर जैसे खुद या अपने करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह के माध्यम से बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं।

वैसे भी बीजेपी से लड़ने के उनके दावे पर कई सवालिया निशान खड़े हुए हैं। दूसरी बात सीटों के मामले में लालू यादव ने कभी भी कांग्रेस पार्टी के प्रति उदारता नहीं बरती है। यह ऐसा सच है, जिसके कारण कांग्रेस एक बार नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव के मैदान में जाना चाहती है हालांकि कांग्रेसी नेता मानते हैं कि भले सीटें कम मिलें, लेकिन लालू, नीतीश और कांग्रेस साथ आए तो निसंदेह उनके विधायकों की संख्या इस बार दो अंकों में होगी।

अभी तक कांग्रेस के रणनीतिकार मान कर चल रहे हैं कि नीतीश कुमार के साथ जाने से न केवल एक दागी व्यक्ति को समर्थन करने की आलोचना से वे बचेंगे, साथ ही नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि है। कांग्रेस पार्टी के नेता यह भी जानते हैं कि लालू यादव के नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाए जाने की जिद को अगर मान भी लिया जाए तो इसका फायदा बीजेपी को ही होगा, क्योंकि तब बीजेपी यह प्रचार करेगी कि लालू यादव फिर राबड़ी देवी या अपने किसी पुत्र को मुख्यमंत्री बनाने के जुगाड़ में लगे हैं इसलिए कांग्रेस पार्टी हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है।

फिलहाल कांग्रेस पार्टी यह मान कर चल रही है कि अगर उनके आलाकमान ने नीतीश के साथ जाने के फैसले पर मुहर लगा दी तब न केवल मुस्लिम बल्कि कांग्रेस से रूठी अगड़ी जातियों के एक वर्ग का वोट और साथ ही गैर-यादव पिछड़ी जातियों के अलावा अति पिछड़ी जातियों का वोट उन्हें मिल सकता है, जो नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मनरेगा और दूसरी योजना में हुई कटौती से नाराज चल रहा है।

फिलहाल नीतीश कुमार के पक्ष में सबसे बड़ी बात कांग्रेस के नेता यह तर्क देते हैं कि वह चाहे पिछले साल के विधानसभा के उपचुनाव हों या विधान परिषद की सीटों का तालमेल, जनता दल यूनाइटेड के नेतृत्व ने उन्हें दरकिनार कर कोई निर्णय लेने की कोशिश नहीं की, वहीं लालू यादव ने सीटों के तालमेल पर पिछले साल का लोकसभा चुनाव हो या उससे पहले के चुनाव  वैसी सीटें दीं, जिस पर चुनाव लड़ने की कांग्रेस पार्टी की कोई तैयारी नहीं थी।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

राजनीति के जानकार यह भी मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी फिलहाल दबाव की राजनीति कर रही है, उसका प्रयास है कि लालू यादव सीटों के तालमेल पर अपना रुख नरम करते हुए बातचीत करें और जल्द से जल्द तीनों पार्टियां अपने कार्यकर्ता और आम लोगों के बीच जाएं, लेकिन यह सब कितना सफल हो पता है, यह लालू यादव के रुख पर निर्भर करता है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में उनके लिए बीजेपी को पराजित करना पहली प्राथमिकता है या नीतीश कुमार को हाशिये पर लाना उससे बड़ी चुनौती ...