This Article is From Feb 26, 2021

किसान पंचायतों में जाटों और मुस्लिमों का 'साथ' क्या नए सियासी समीकरण का संकेत है?

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Kamaal Khan

यूपी में 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी यूपी की क‍िसान पंचायतों में बड़ी तादाद में मुसलमान शामिल हो रहे हैं.कई पंचायतों में "हर हर महादेव " और " अल्लाह-ओ-अकबर " के नारे भी लग रहे हैं.इससे दंगों से पैदा हुई दूरियां भी कम हो रही हैं.2013 में हुए मुज़फ्फरनगर दंगों ने जाटों और मुसलमानों के बीच बड़ी साम्प्रदायिक खाई पैदा की थी.लेकिन सात साल बाद फिर पश्चिमी यूपी में जाटों और मुसलमानों का साथ आना क्या किसी नए राजनीतिक समीकरण का संकेत है?
भारतीय किसान यूनियन की पंचायतों में "हर हर महादेव" और "अल्लाह-ओ-अकबर" के नारे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के वक़्त से लगते रहे हैं.लेकिन अब मुज़फ्फरनगर  दंगों के सात साल बाद फिर सुनाई पड़ने लगे हैं.कुछ पंचायतों में तो आधे किसान मुसलमान हैं.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत हमसे कहते हैं कि ,"2013 में ग़लती हुई थी.जिससे मुसलमानों से रिश्ते खराब हुए.उससे बहुत नुकसान हुआ.हमने प्रयास किया कि उन्हें नज़दीक लाएं.हमारा प्रयास सफल हुआ है."पश्चिमी यू पी में जाट और मुसलमान ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अटूट हिस्सा रहे हैं.यहां मुस्लिम आबादी भी काफी है.इनमें मुसलमानों के अलावा मुले जाट भी शामिल हैं.यह वे जाट हैं जिनके पूर्वज मुग़ल काल में मुसलमान हो गए थे.यू पी में 19.26 फीसद मुसलमान हैं जबकि पश्चिमी यू पी में 26.21 फीसद.पश्चिमी यू पी के दस जिलों में तो उनकी आबादी 50 फीसद से 35 फीसद तक है.रामपुर में 50.57 फीसद,मुरादाबाद में 47.12 फीसद,संभाल में 45 फीसद,बिजनोर में 43.03 फीसद,सहारनपुर में41.95 फीसद,अमरोहा में 38 फीसद,हापुड़ मैं 37.14 फीसद और शामली में 35 फीसदी मुस्लिम हैं.

पश्चिमी यूपी में मुसलमान, पूर्वी यूपी के मुसलमानों की तुलना में ज़्यादा सम्पन्न हैं.सहारनपुर में लकड़ी के कारोबार और मुरादाबाद के पीतल के कारोबार में वे शामिल हैं.वे बड़े किसान भी हैं. यहां जाटों से उनके झगड़े साम्प्रदायिक कम कारोबारी या ज़मीन जायदाद के ज़्यादा रहे हैं.पश्चिमी यूपी में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने "मजगर" यानि मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत को जोड़ने का नारा दिया था. इसका उन्हें सियासी लाभ मिला.लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने पर मुस्लिम-जाट रिश्तों में दरार आई .लेकिन कृषि अर्थव्यवस्था पर दोनों की निर्भरता की वजह से वक़्त के साथ दूरियां कम हुईं.लेकिन मुज़फ्फरनगर दंगों ने इस पूरे इलाके में जाट-मुस्लिम रिश्ते तोड़ दिए. 

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भारतीय किसान यूनियन के एक बड़े नेता हरनाम सिंह कहते हैं,"दस साल पहले आप अगर इन गांवों में आते तो पहचान नहीं पाते कि आपके लिए दूध किसके घर से आया है, गुड़ किसके घर से और चाय किसके घर से.लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए बीजेपी और उसके समर्थकों ने माहौल खराब किया है." यह सच है कि मुज़फ्फरनगर दंगों के दौरान अफवाहों ने आग में घी का काम किया. मुज़फ्फरनगर दंगों से हुए ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को हुआ. विधानसभा चुनाव के नतीजे इसके गवाह हैं.पश्चिमी यूपी के 17 जिलों की 93 विधानसभा सीटों में 2012 में बीजेपी सिर्फ 14 सीटें जीती थी, लेकिन 2017 में वो 73 सीटें जीत गई. मुज़फ्फरनगर की शाहपुर बस्ती में क़रीब पांच हज़ार दंगा पीड़ित बसते हैं. यहां परचून की दुकान चलाने वाले साहिल के कुटबा गांव में  दंगों में जो आठ लोग मारे गए उनमें 5 उनके घर वाले थे.लेकिन साहिल कहते है,"ऐसे में किसानों की नाराजगी और मुसलमानों के जाटों के क़रीब आने से बीजेपी के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है.मुज़फ्फरनगर से सांसद और मंत्री संजीव बालियान किसानों को मनाने के काम पे लगाए गए हैं 
लेकिन उन्हें कई जगह किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा है. अब देखना यह है कि जाटों और मुसलमानों के बीच घटती दूरी क्या यहां किसी नए सियासी समीकरण का संकेत है या चुनाव तक कोई नया साम्प्रदायिक मुद्दा उन्हें फिर बांट देता है.

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कमाल खान NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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