इसलिए कम विधायकों के बावजूद बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को बनाया था मुख्यमंत्री

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30 जून 2022 को जब एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए कि आखिर 40 विधायकों वाली शिंदे की पार्टी को 105 विधायकों वाली भाजपा ने मुख्यमंत्री क्यों बना दिया. सियासी गलियारों में सभी का यही आकलन था कि बगावत के बाद शिंदे अगर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते हैं तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बनाया जाएगा और एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं. शिंदे को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने एक रणनीति के तहत मुख्यमंत्री बनाया था और शिंदे हाल ही में उस वक्त बीजेपी की उम्मीद पर खरे उतरे जब उन्होंने मराठा आंदोलन को शांत करा दिया.

साल 2014 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी की सत्ता आई और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया उसके बाद से लगातार शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण (Maratha Reservation) देने की मांग को लेकर आंदोलन किया जा रहा था. शुरुआत में महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में मराठा क्रांती मोर्चा नाम के संगठन की ओर से मूक मोर्चे निकाले गए जिनमे लाखों की तादाद में मराठा समुदाय के लोग शामिल हुए. पहले तो आंदोलन शांतिपूर्ण रहा लेकिन 2018 में ये हिंसक हो गया. राज्य में जगह जगह हिंसा हुई  और कई लोगों की जान गई.

2019 में चुनावी साल को देखते हुए फडणवीस सरकार ने मराठाओं को आरक्षण दे दिया. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. अदालत ने फडणवीस सरकार के फैसले को रद्द कर दिया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 90 के दशक में दिए गए अपने पिछले आदेश में सभी प्रकार के आरक्षण पर पचास फीसदी की सीमा तय कर दी थी. फडणवीस सरकार का फैसला उस आदेश का उल्लंघन कर रहा था.

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उसके बाद कुछ वक्त तक मामला शांत रहा. मराठा आरक्षण की मांग मीडिया में बयानों और छोटी मोटी सभाओं तक ही सीमित रही. बीजेपी नेतृत्व को अंदेशा था कि 2024 के चुनाव से पहले ये मुद्दा फिर गरमा सकता है और सरकार को उससे निपटने में दिक्कत होगी. चुनावी काल में कोई भी पार्टी महाराष्ट्र में मराठों की नाराजगी का जोखिम नहीं उठा सकती. उनकी आबादी 32 फीसदी है. ऐसे में बीजेपी को जरूरत थी एक ऐसे मराठा नेता की जिसकी मराठा समुदाय के बीच पैठ हो और जो आंदोलनकारी मराठाओं को शांत करने में सक्षम हो. बीजेपी के पास अपना कोई ऐसा तेजतर्रार मराठा चेहरा नहीं था.

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जब शिंदे ने बगावत करके भाजपा के साथ सरकार बनाने का फैसला किया तब खुद देवेंद्र फडणवीस को भी पार्टी नेतृत्व की इस रणनीति का अंदाजा नहीं था. शपथविधि से तीन घंटे पहले हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने खुद के सरकार से बाहर रहने का ऐलान किया था, लेकिन तीन घंटे में ही उन्हें उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को कहा गया. फडणवीस ने अनमने से शपथ ली, क्योंकि दो बार मुख्यमंत्री होने के बाद उपमुख्यमंत्री बनना उनका डिमोशन समझा जा रहा था...लेकिन पार्टी का आला नेतृत्व इस बारे में स्पष्ट था कि एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री के रहते हुए आंदोलनकारी मराठाओं से निपटने में दिक्कत होगी.

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27 जनवरी को मनोज जरंगे पाटिल जब लाखों आंदोलनकारियों के साथ मुंबई के करीब नवी मुंबई पहुंचे तो एकनाथ शिंदे ने उनके साथ मंच साझा किया. इससे पहले भी उनकी टीम लगातार आंदोलकरियों के संपर्क में थी. आखिर उन्होंने ये मांग मान ली कि जिन कुनबी मराठाओं के निजामकालीन दस्तावेज बरामद हुए हैं, उनके सगे संबंधियों को भी ओबीसी कोटे से आरक्षण मिलेगा. आंदोलनकारियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले सरकार वापस लेगी. इसके बाद जरंगे ने आंदोलन वापस ले लिया और वापस चले गए.

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(जीतेंद्र दीक्षित पत्रकार तथा लेखक हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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