This Article is From Feb 08, 2024

इतिहास भारत का : उन दिनों में आज से 60% बड़ा था हिन्दुस्तान, चीन से था दोगुना अमीर!

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Ravikant Ojha

Indian History: नई संसद (New Parliament)का उद्घाटन हुआ तो उसके अंदर लगी एक तस्वीर ने सभी का ध्यान खींचा. वो तस्वीर थी अंखड भारत (Akhand bhaarat) की. पड़ोसी मुल्क नेपाल (Nepal) और पाकिस्तान (Pakistan) ने इस मैप पर आपत्ति भी जताई. लेकिन क्या आपको पता है आज से 23 सौ साल पहले भारत वास्तव में 52 लाख वर्ग किमी में फैला था जबकि आज उसका क्षेत्रफल करीब 33 लाख वर्ग किमी है. तब जिस शासक का शासन था उसे हम ऑल टाइम ग्रेट कह सकते हैं. उनके शासन में काबुल (Pakistan) से लेकर बंगाल (Bengal) और कर्नाटक (Karnataka) तक लोग एक ही झंडे तले अपना सिर झुकाते थे. उस साम्राज्य की GDP तब दुनिया की 32 से 35 फीसदी तक आंकी गई है. कौन था वो शासक और कैसी थी उसकी शासन व्यवस्था? जानिए NDTV इतिहास की नई पेशकश में 

आज भारत का क्षेत्रफल मोटा-माटी 33 लाख वर्ग किलोमीटर है...लेकिन क्या आपको पता है एक वक्त ऐसा था जब अपना ये प्यारा सा देश 52 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला था.ठीक पढ़ा आपने ...52 लाख वर्ग किलोमीटर...यानी वर्तमान से 61 फीसदी ज्यादा इलाके पर एक ही सम्राज्य का शासन था.तब काबुल से बंगाल और कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक लोग एक ही झंडे तले सिर झुकाते थे.

ज्ञात इतिहास में  तब के दौर में इससे बड़ा साम्राज्य सिर्फ मकदूनिया साम्राज्य यानी सिंकदर का ही रहा था...दरअसल हम बात कर रहे हैं खैबर दर्रे से कन्याकुमारी तक फैले मौर्य सम्राज्य की..उस मौर्य साम्राज्य की  जो आज से 23 सौ साल पहले तब की दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य था और जिसके द्वारा दिया गया अशोक चक्र आज हमारे तिरंगे की शान है...जानते हैं इसके बारे में NDTV इतिहास की नई पेशकश में आज दुनिया की कुल जीडीपी में सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का है. मोटे तौर पर ये माना जाता है कि वैश्विक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 24 फीसदी है.

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दूसरे नंबर पर हमारा पड़ोसी देश चीन है जिसकी हिस्सेदारी 17 फीसदी मानी जाती है. लेकिन क्या आपको पता है कि जब मौर्य साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था तब पूरी दुनिया की जीडीपी में उसकी हिस्सेदारी कितनी थी? आर्थिक इतिहासकारों का अनुमान है कि तब दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की जीडीपी का हिस्सा 32 से 35 फीसदी था. यानी आज के चीन से मौर्य शासन दोगुना अमीर था. 

मौर्य साम्राज्य को करीब से समझने के लिए चलिए आपको समय में 23 सौ साल पीछे आज के बिहार की राजधानी पटना लेकर चलते हैं. ये तब पाटलिपुत्र था. आप पाएंगे तब इसकी लंबाई 16 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर है. नगर के चारों ओर एक दीवार है जिसमें 64 द्वार और 570 दुर्ग बने हैं. नगर के अधिकांश मकान लकड़ी के बने हैं. नगर में चारों ओर लकड़ी की प्राचीर हैं जिसके भीतर तीर छोड़ने के स्थान बने हैं. शहर के बीच में राजा का महल है. जिसकी वैभव के सामने ईरानी बादशाह का महल सूस्का और इकबतना फीके लगते हैं.

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सम्राट के दरबार में अच्छी सजावट मिलती है और वहां मौजूद सोने-चाँदी के बर्तनों से आँखों में चकाचौंध पैदा हो जाती है.राजा राजप्रसाद से सोने की पालकी या हाथी पर बाहर निकलता था. नगर में अधिकांश घरों में ताले नहीं लगते थे. दरअसल प्राचीन पटना का ये विवरण हम आपको मशहूर यूनानी राजदूत और सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में बतौर सलाहकार मौजूद रहे मेगास्थनीज की किताब 'इंडिका' के हवाले से बता पा रहे हैं.

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ऐसा माना जाता है कि मेगास्थनीज की इंडिया में कुछ बातें थोड़ी भ्रामक भी हैं लेकिन हम आपको वही बातें बता रहे हैं जिसकी पुष्टि दूसरे स्रोत भी करते हैं. मसलन अशोक के शिलालेख, बौद्ध ग्रंथ और दूसरे विदेशी यात्री फाहियान आदि.बहरहाल बात को आगे बढ़ाते हैं. किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी सड़कों को माना जाता है. मौर्य साम्राज्य के इतिहासकारों पर भरोसा करें तो सम्राट चंद्रगुप्त के शासनकाल में उत्तरापथ का निर्माण किया गया था. जो आज के बांग्लादेश के शहर चटगांव से शुरू होकर अफगानिस्तान के काबुल तक जाता था. बाद में इसी को आधार बनाकर शेरशाह सूरी ने सराक-ए-आजम का निर्माण कराया जिसमें सुधार कर अंग्रेजों ने ग्रैंड ट्रंक रोड बना दिया.मौर्य साम्राज्य में भारत का कारोबार रोम,फ़ारस,सीरिया और मिस्र के साथ भी होता था. 

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मौर्य शासकों ने गुजरात और महाराष्ट्र में बंदरगाह बना रखे थे जिनसे समुद्री कारोबार होता था.मौर्य शासनकाल में सोने,चांदी और तांबे के सिक्के प्रचलन में थे. मुख्य मुद्रा चांदी का सिक्का थी. जिसका नाम पण था. उस समय न्यूनतम वेतन 60 पण और अधिकतम वेतन 48 हजार पण होता था. बिक्री कर के रूप में मूल्य का 10 वां भाग लिया जाता था.इसके अलावा कर चोरी करने वालों के लिय मुत्युदंड की सजा होती थी. पूरे मौर्य साम्राज्य में पांच राजधानियां थीं. मुख्य राजधानी पाटलिपुत्र थी. इसके अलावा उत्तरापथ राज्य की राजधानी तक्षशीला,दक्षिणापथ की सुवर्णगिरी,अवंति की उज्जयिनी और कलिंग की तोसली थी. अशोक के शुरुआती अभिलेश साल 1958 में अफगानिस्तान के कंधार शहर के पास मिले थे.हुआ यूं कि यहां की चेहेल पहाड़ी के पास चरवाहों को एक चट्टान मिली. जिसके आसपास खुदाई कराई गई तो शिलालेख मिले. जिसे फ़्रांसीसी और इतालवी पुरातत्वविदों को दिखाया गया. रिसर्च के बाद उन्होंने जो बताया उसके मुताबिक ज़्यादातर अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे.

अभिलेश के कुछ हिस्सों में यूनानी और सीरियाई भाषा इब्रानी में भी थी. ऐसा माना जा रहा है कि अशोक ने ये शिलालेख अपनी यूनानी प्रजा के लिए लिखवाए थे.ये शिलालेख काबुल के संग्रहालय में 1994 तक मौजूद था लेकिन उसके बाद हुई लूट में ये अब गायब है. हालांकि अशोक के शिलालेख कंधार के अलावा, खैबर पख्तूनख्वा, दिल्ली, वैशाली, चंपारण, सारनाथ, मध्यप्रदेश के सांची, कर्नाटक और अमरावती में पाए गए हैं. उस दौर में तक्षशिला,नालंदा,विक्रमशिला और कंधार शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे.

इसके आधार पर ऐसा माना जाता है कि अशोक का राज्य आधुनिक असम से ईरान तक और दक्षिण में गोदावरी नदी के आसपास तक फैला था. अब आप बताएं ऐसे विशाल और सुसंगठित साम्राज्य का पतन कैसे हो गया? क्या इसके पीछे की वजह अहिंसा के मार्ग पर चलना था या फिर अशोक के उत्तराधिकारियों का कमजोर होना...क्योंकि अशोक ने तो करीब 30 सालों तक शासन किया था और अपने शासन के पहले ही दशक में उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा भी ले ली थी.

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