चीन के 'सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स' पर भारत का प्रहार

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Harish Chandra Burnwal

देश में 4 जून को लोकसभा चुनाव के आए परिणाम ने नरेंद्र मोदी को रिकॉर्ड तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया, तो दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तरफ से बधाइयों का तांता लग गया, लेकिन चीन औऱ पाकिस्तान से बधाई संदेश चुनाव परिणाम आने के आठ दिन बाद आए. चीन और पाकिस्तान को बधाई देने में जो इतना लंबा समय लगा, उससे स्पष्ट हो गया कि दोनों ही देशों को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से बहुत खुशी नहीं हुई है. आठ दिन बाद आने वाले इस बधाई संदेश में गर्मजोशी से अधिक कूटनीतिक मजबूरियां दिखाई दे रही थीं. इस बार चीन की तरफ से बधाई संदेश प्रधानमंत्री ली कियांग ने भेजा, जबकि 2019 और 2014 में नरेंद्र मोदी की चुनावी जीत पर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने बधाई दी थी.

मोदी को धमकाया नहीं जा सकता...

प्रधानमंत्री मोदी की जीत के झटके से उबरने में चीन को जो समय लग रहा था, उसी दौरान चीन को सदमा देने वाली एक और घटना घटी. लोकसभा परिणाम आने के ठीक एक दिन बाद ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (अतीत में ट्विटर) पर नरेंद्र मोदी को चुनाव में मिली जीत पर लिखा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी चुनावी जीत पर मेरी हार्दिक बधाई... हम तेज़ी से बढ़ती ताइवान-भारत साझेदारी को बढ़ाने, व्यापार, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में हमारे सहयोग का विस्तार करने के लिए तत्पर हैं, ताकि इंडो-पैसिफिक में शांति और समृद्धि में योगदान दिया जा सके..." इसी सोशल मीडिया पोस्ट पर धन्यवाद देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा, "आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद लाई चिंग-ते... मैं पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते हुए और भी घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं..."

ताइवान और भारत के बीच सार्वजनिक रूप से इस तरह बधाई संदेशों के आदान-प्रदान से चीन आग-बबूला हो उठा. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धन्यवाद संदेश पर कहा, "चीन ने ताइवान के क्षेत्रीय नेता लाई चिंग-ते के X पर दिए संदेश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया के बारे में भारत के सामने विरोध दर्ज कराया है..." लेकिन इसका जवाब देते हुए ताइवान के विदेश उपमंत्री चंग क्वांग तियेन ने कहा, "मुझे भरोसा है कि ऐसी प्रतिक्रिया से PM नरेंद्र मोदी और हमारे राष्ट्रपति दोनों को ही धमकाया नहीं जा सकता..."

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शी चिनफिंग को दो टूक...

प्रधानमंत्री मोदी ने 9 जून के शपथग्रहण समारोह के लिए श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश, मॉरीशस, नेपाल, भूटान और सेशेल्स के राष्ट्राध्यक्षों को शामिल होने का विधिवत निमंत्रण तो भेजा, लेकिन चीन और उसके परम मित्र पाकिस्तान को इस समारोह में शामिल होने का कोई निमंत्रण न भेजकर साफ़ कर दिया कि भारत, चीन को उसी भाषा में जवाब देगा, जो भाषा चीन को अच्छी तरह समझ आती है. इस शपथग्रहण समारोह में चीन समर्थित मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को आमंत्रित कर प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को यह भी बता दिया कि भारत चीन के हर उस कदम का ठोस जवाब देगा, जो भारत के हित के खिलाफ होगा.

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तिब्बत पर भारत ने हक जताया...

चीन के लिए ताइवान और शपथग्रहण समारोह तो सिर्फ़ ट्रेलर था, जिसे देखकर चीन भारत के अगले कदमों की पूरी पिक्चर समझने का प्रयास कर ही रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार बनने के तुरंत बाद 11 जून को निर्णय ले लिया कि भारत तिब्बत के उन 30 भौगोलिक स्थानों का भारतीय मानकों के हिसाब से नामकरण करेगा, जिस पर चीन ने कब्जा कर रखा है. प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम चीन के उस कदम का जवाब था, जो उसने अरुणाचल प्रदेश को लेकर इसी साल अप्रैल महीने में उठाया था. चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ गांवों और भौगोलिक स्थानों के नामों का चीनी भाषा में ऐलान कर उस पर हक जताने का प्रयास किया था. इसका जवाब देते हुए भारत ने तिब्बत पर हक जता दिया.

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हरे हो गए चीन के घाव...

भारत और चीन के बीच लम्बी सीमा है, और समूची अब तक विवादित है. 3,488 किलोमीटर लंबी इस सीमा के तीन सेक्टर हैं - ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न. अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से लगी सीमा की लंबाई 1,346 किलोमीटर है, जो ईस्टर्न सेक्टर मानी जाती है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लगी सीमा की लंबाई 545 किलोमीटर है, जिसे मिडिल सेक्टर माना जाता है. वेस्टर्न सेक्टर में चीन की सीमा के साथ लद्दाख का क्षेत्र आता है, जिसकी लंबाई 1,597 किलोमीटर है. चीन ने वेस्टर्न सेक्टर में 1962 के युद्ध में 38,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्जा कर लिया था, जिसे अक्साई चीन कहा जाता है. ईस्टर्न सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश की 90,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर दावा करता है, जिसके लिए वह आए दिन वहां के गांवों और भौगोलिक स्थानों का नाम चीनी भाषा के साथ मैप पर प्रकाशित करता रहता है. जबकि भारत का मानना है कि भारत की सीमा से लगे जिस हिस्से को चीन आज अपना कहता है, वह वास्तव में तिब्बत है, जिस पर चीन ने ज़बरदस्ती कब्जा कर रखा है.

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चीन के प्रोपेगंडा का पर्दाफाश...

इतिहास में चीन ने तिब्बत के साथ जो नापाक खेल खेला और प्रोपेगंडा के बल पर जिस तरह अपनी बादशाहत कायम करना चाहता है, उसके अंत की शुरुआत कोरोना काल में जून, 2020 में वेस्टर्न सेक्टर के गलवान घाटी पर कब्जा करने के खूनी संघर्ष के साथ हो चुकी है. इस संघर्ष में करारी मात खाने के बाद भी चीन सीमा विवाद को समझौतों के आधार पर बातचीत के ज़रिये सुलझाने को तैयार नहीं है. पिछले चार साल से सीमा पर 50,000 से अधिक सैनिक मोर्चे पर डटे हैं, लेकिन भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है कि संबंध तभी सामान्य होंगे, जब सीमाएं सामान्य होंगी. एक तरफ सीमा पर भारत ने चीन को चुनौती दे रखी है, तो दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय संघ ने तिब्बत को लेकर मुहिम तेज कर दी है. अमेरिकी संसद ने हाल ही में 'द रिसॉल्व तिब्बत एक्ट' पारित किया है, जिसके तहत प्रावधान है कि अमेरिका तिब्बत को लेकर चीन द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार को खत्म करने के लिए हर तरह से मदद करेगा, और साथ ही वह तिब्बती लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक स्वंतत्रता के संघर्ष में साथ देगा.

खलनायक साबित होंगे शी चिनफिंग...

इस एक्ट के पारित होने के कुछ ही दिन बाद अमेरिकी संसद का एक प्रतिनिधिमंडल 19 जून को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला पहुंचा और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मुलाकात की. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत की निर्वासित संसद को संबोधित किया, जिसमें उनके अधिकार और स्वतंत्रता के संघर्ष में अमेरिका के समर्थन का आश्वासन दिया. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की प्रमुख सदस्य नैन्सी पेलोसी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को चुनौती देते हुए साफ कहा, "परम पावन दलाई लामा अपने ज्ञान, परंपरा, करुणा, आत्मा की शुद्धता और प्रेम के संदेश के साथ लंबे समय तक जीवित रहेंगे और उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी... लेकिन आप, चीन के राष्ट्रपति, चले जाएंगे और कोई भी आपको किसी भी चीज़ का श्रेय नहीं देगा..."

चीन एक तरफ सीमा विवाद को दरकिनार कर भारत के साथ रिश्तों को सुधारना चाहता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी सीमा विवाद को हल किए बिना संबंधों को बेहतर न करने की नीति पर काम कर रहे हैं. कोविड काल में भारत और चीन के बीच जो हवाई सेवा बंद हुई थी, उसे आज तक भारत ने शुरू नहीं किया है, जबकि चीन लगातार प्रयास कर रहा है कि हवाई सेवा को 2020 के पहले वाली स्थिति में वापस जल्द से जल्द ला दिया जाए. प्रधानमंत्री मोदी, चीन को लेकर जिस नीति को अमल में ला रहे हैं, उससे साफ है कि चीन के धौंस जमाने के दिन अब लद चुके हैं.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.