This Article is From Sep 21, 2021

पूर्णिया में किताब दान अभियान और गाँव-गाँव में लाइब्रेरी की बात

विज्ञापन
Girindranath Jha

किताबों के साथ हम सभी का रिश्ता रहा है. हम उस रिश्ते को हर उम्र में नए सिरे से अनुभव करते हैं. तकनीकी दौर में भी यह रिश्ता कमजोर नहीं हुआ है. हम सभी के घरों में किताबों का एक ठिकाना जरूर रहता है, जहाँ पहुँचकर हम सभी पन्नों में लिखे शब्दों की दुनिया में खो जाते हैं. एक वक्त था जब शहर से लेकर गाँव-गाँव में लाइब्रेरी हुआ करती थी, लोगबाग वहाँ जाते थे लेकिन समय की तेज रफ्तार में ऐसी जगहें कम होने लगी. ऐसे दौर में जब देश के अलग-अलग हिस्सों में विकास का मतलब निर्माण कार्यों को समझा जाने लगा है, ऐसे वक्त में कोई जिला यदि किताबों की बात करता है तो उसके मर्म को समझने की जरूरत है.

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल कुमार बिहार के पूर्णिया जिला में कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. साल 2020 के जनवरी महीने में पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने एक अभियान की शुरुआत की थी- ‘अभियान किताब दान'. कोराना महामारी की वजह से यह अनोखा अभियान प्रभावित हुआ लेकिन इसके बावजूद अबतक एक लाख 26 हजार किताबें इस अभियान में दान में मिल चुकी है. जिला के सभी 230 ग्राम पंचायत में इस अभियान के तहत लाइब्रेरी चल रही है.

मुझे याद है, 25 जनवरी 2020 को इस अभियान की जब शुरूआत हुई थी तो पहले दिन ही 400 किताबें प्राप्त हुई थी. जिला के समाहरणालय सभागार में किताब दान अभियान की शुरूआत हुई थी. राहुल कुमार ने उस दिन भी कहा था कि यह अभियान लोगों का है, इसमें हर कोई सहयोग करेगा और आज जब जिले हर एक पंचायत में लोगों के सहयोग से पुस्तकालय चल रहा है तो एक उम्मीद तो दिखने ही लगी है.

Advertisement

दरअसल, हम सभी के घरों में ऐसी ढेर सारी किताबें होती है, जिसे हम पढ़ चुके होते हैं और वह रखी रह जाती है. ऐसी किताबों को हम लाइब्रेरी तक पहुँचा सकते हैं ताकि शब्द की यात्रा जारी रहे. पूर्णिया के जिलाधिकारी का यह अभियान हमें बताता है कि गाँव-गाँव में किताबों का एक सुंदर सा ठिकाना बनना चाहिए.  शुरुआत में वह कहते भी थे कि जिला के हर पंचायत में एक मिनी लाइब्रेरी शुरू होगी,लेकिन उस वक्त भरोसा नहीं हो रहा था कि ऐसा केवल एक साल में ही संभव हो जाएगा.

Advertisement

जिले में अब तक अभियान किताब दान के तहत 1 लाख 26 हजार  पुस्तकें प्राप्त हुई है. इन पुस्तकों को गाँव गाँव तक पहुंचा दिया गया है. गाँव में जहाँ पंचायत सरकार भवन है

Advertisement

वहाँ मिनी लाइब्रेरी खोली गई है और जहाँ नहीं हैं वहाँ अन्य सरकारी भवन में पुस्तकालय खोला गया है.

ग्रामीण इलाके में इसके लिए एक समिति भी बनाई  गई है जो पुस्तकालय की देख-रेख कर सकेगी.

इस समिति में रिटायर शिक्षक, अवकाश प्राप्त सरकारी सेवक, नेहरू युवा केंद्र से जुड़े लोगों को रखा गया है. 300 लोगों को चार दिनों की ट्रेनिंग भी दी गई. इसके लिए बाहर से लाइब्रेरी एक्सपर्ट्स को बुलाया गया था.

Advertisement

पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित परोरा गाँव में जब पंचायत भवन परिसर में लाइब्रेरी की शुरूआत हुई थी तो दर्शक के रूप में मैं भी वहाँ उपस्थित था. उस दिन लगा बदलाव इस तरह भी लाया जा सकता है. कुछ ऐसा ही अनुभव अपने गाँव चनका में भी हुआ.

सच कहूँ तो जब भी किसी गाँव के ग्राम पंचायत भवन के परिसर में जाता हूँ तो सबसे पहले मन में गाँधी की छवि ही आती है. बापू ने ‘मेरे सपनों का भारत' में पंचायती राज के बारे में जो विचार व्‍यक्‍त किये हैं वे आज वास्‍तविकता के धरातल पर साकार हो चुके है क्‍योंकि देश में समान तीन-स्‍तरीय पंचायती राज व्‍यवस्‍था लागू हो चुकी है जिसमें हर एक गाँव को अपने पांव पर खड़े होने का अवसर मिल रहा है. बापू का मानना था कि जब पंचायती राज स्‍थापित हो जायेगा त‍ब लोकमत ऐसे भी अनेक काम कर दिखायेगा, जो हिंसा कभी भी नहीं कर सकती.  गाँव में लाइब्रेरी के बहाने बापू की लिखी बातें भी याद आने लगी.

कभी कभी सोचता हूँ कि जिला की कमान संभालने वाले अधिकारी को लोगबाग ढेर सारे विकास कार्यक्रमों, भवनों या अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए याद करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें लोग बदलाव के लिए याद करते हैं. किताब दान अभियान की शुरूआत करने वाले राहुल कुमार ऐसे ही लोगों में एक हैं. पूर्णिया में गाँव -गाँव तक पुस्तकालय पहुँचाने का उनका अभियान दरअसल पूर्णिया के जन-जन का अभियान है. लोगबाग अपनी आदतों में किताब को शामिल करें, इससे बेहतर और क्या हो सकता है. 

Add image caption here

आज जब गाँव से लौट रहा था तो सोचने लगा कि ‘किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं....' लिखने वाले गुलज़ार काश पूर्णिया आते और गाँव के किसी लाइब्रेरी में पढ़ते लोगों को देखते तो फिर यह नहीं कहते ‘बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें..' 

इन सबके बीच यहां यह भी बताना जरूरी है कि पूर्णिया में महात्मा गांधी तीन दफे आए थे. 1925, 1927 और 1934 में गांधी जी यहां आए थे. यहां एक घटना का जिक्र जरूरी है. 13 अक्टूबर 1925 को बापू ने पूर्णिया के बिष्णुपुर इलाके का दौरा किया था. बापू को सुनने बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे. शाम को गांधी जी ने स्थानीय ग्रामीण श्री चौधरी लालचंद की दिवंगत पत्नी की स्मृति में बने एक पुस्तकालय मातृ मंदिर का उद्घाटन किया था. बापू ने अपने नोट्स में लिखा है कि ‘बिष्णुपुर जैसे दुर्गम जगह में एक पुस्तकालय का होना यह संकेत देता है कि यह स्थान कितना महत्वपूर्ण है.'

उस दौर में पुस्तकालय का होना यह बताता है कि पूर्णिया जिला के ग्रामीण इलाकों में पढ़ने के प्रति लोगों का खास जुड़ाव था. एक बार फिर पूर्णिया पुस्तकालय को लेकर गंभीर हुआ है और इसका श्रेय जाता है पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार को.

यदि आप भी किताब दान करना चाहते हैं तो जिला शिक्षा पदाधिकारी पूर्णिया के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं, नंबर है- 8544411773

गिरीन्द्रनाथ झा किसान हैं और खुद को कलम-स्याही का प्रेमी बताते हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

Topics mentioned in this article