डोनाल्ड ट्रंप का ‘पल में तोला-पल में माशा’ वाला अंदाज-ए-बयां दुनिया पर पड़ रहा भारी

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Ashutosh Kumar Singh

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और.

हमें गालिब साहब आज के लिए माफ करें, लेकिन उनके इस अजीम शेर से थोड़ी गुस्ताखी की जाए कुछ यूं निकलेगा…

हैं और भी दुनिया में 'मान्य-वर' बहुत अच्छे
'ट्रंप' साहब का है अंदाज़-ए-बयां कुछ और.

अब शायद दुनिया में मैं पहला इंसान हूं जिसने एक ही वाक्य में गालिब साहब और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, दोनों का नाम ले लिया. लेकिन क्या करूं. ट्रंप के अंदाज-ए-बयां ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल ही ऐसी मचा रखी है. ट्रंप महाशय ‘पल में तोला-पल में माशा' हुए पड़े हैं. कब क्या बोल दें और कब उसी बात से पलट जाएं, खुद शायद उन्हें भी नहीं पता. ट्रंप तो बोलकर निकल जा रहे लेकिन ग्लोबल मार्केट से लेकर भारत जैसे पार्टनर देश पीछे सवालों के साथ छूट जा रहे हैं. यहां सवाल है कि क्या यह ट्रंप का माइंडगेम है और वो जानबूझकर ऐसा करते हैं? ट्रंप के ऐसे फ्लिप-फ्लॉप के उदाहरण तमाम हैं. इन सबसे आपको रूबरू कराते हैं. शुरुआत भारत से ही करते हैं.

ट्रंप और 'ग्रे झूठ'

एक होता है सफेद झूठ जो खुल्लम खुल्ला बोला जाता है. ट्रंप कई बार ऐसा झूठ बोलते सबके सामने पकड़े जाते हैं. लेकिन मैं उनपर इतना बड़ा आरोप न लगाकर ग्रे झूठ बोलने का आरोप लगाऊंगा. वजह है कि सफेद झूठ से इतर ट्रंप का झूठ साफ-साफ दूर से नजर आता है.

टैरिफ-टैरिफ वाला खेल खेलते मिस्टर ट्रंप ने दावा कर दिया कि भारत टैरिफ कटौती पर राजी हो गया है. इसके दो दिन के अंदर भारत को इसपर जवाब देना पड़ा. भारत ने कहा कि अब तक ऐसा कोई समझौता हुआ ही नहीं, दोनों के बीच व्यापार को लेकर बातचीत ही चल रही है. भारत सरकार ने सोमवार, 10 मार्च को संसदीय पैनल को ये बात बताई. सरकार ने कहा कि व्यापार शुल्क को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ है. इस मुद्दे के हल के लिए सितंबर तक का समय मांगा गया है.

ट्रंप को बदलना खूब आता है. दोस्त को चार हाथ दूर कर सकते हैं तो दुश्मन को तपाक से आगे बढ़कर गले भी लगा सकते हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को सबके सामने तानाशाह बोलते हैं और जब व्हाइट हाउस से मीडिया इसपर सवाल करती है तो कहते हैं, “मैंने ऐसा कहा?.. मुझे विश्वास नहीं हो रहा.”

बोलों तो पलट जाऊं?

अमेरिका में राष्ट्रपति को कमांडर इन चीफ ऑफ आर्मी एंड नेवी कहा जाता है. लेकिन एक्सियोस में लिखे एक आर्टिकल में फेलिक्स सैल्मन और जाचरी बसु ने ट्रंप को फ्लिप-फ्लॉपर इन चीफ बताया है. उन्हें एक ऐसा राष्ट्रपति बताया है जो आज एक बोल्ड पॉलिसी की घोषणा करता है और बहुत संभावना है कि कल इसे उलट दे. उदाहरण तो तमाम हैं.

ट्रंप यूक्रेन के पास हैं या दूर? इस सवाल का जवाब दीजिए और मुझसे तारीफ में दो शेर कहला लीजिए. जवाब बड़ा कठिन है. ट्रंप यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की निंदा करते हैं, फिर समझौता करते हैं. उन्हें वाशिंगटन का न्योता भेजते हैं. फिर ओवल ऑफिस में सबके सामने उनसे बहस करते हैं, लगभग डांटते हैं. फिर संबंधों को फिर से सुधारने के लिए खुला दिल दिखाते हैं. फिर यूक्रेन के साथ हथियार और खुफिया जानकारी शेयर करना बंद कर देते हैं. फिर यूक्रेन के साथ बातचीत के लिए अपने विदेश मंत्री को सऊदी भेज देते हैं. ये सब कुछ ही दिनों में हो गया. आखिर चल क्या रहा है? फ्लिप-फ्लॉप गिनाते गिनाते चक्कर आ जाए.

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अब मेक्सिको और कनाडा पर लगाए टैरिफ को ही देख लीजिए. ये दोनों देश अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में शामिल हैं. ट्रंप ने इन दोनों पर पहले टैरिफ लगाया, फिर टाला, फिर लगाया और फिर टाला. और ये सारे उलट-पलट उन्होंने लगभग 30 दिन के अंदर किए.

ट्रंप ने सरकारी फिजुलखर्चियों को रोकने के लिए एक डिपार्टमेंट बनाया है- DOGE. इसकी कमान दुनिया के सबसे अमीर शख्स, बिलिनेयर एलन मस्क को दी है. जब से यह डिपार्टमेंट बना है, इसने अमेरिका के केंद्रीय कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की मानों कसम खाई है. ट्रंप भी एलन मस्क से अपनी दोस्ती को खूब निभा रहे हैं. बात-बात पर बोल रहे हैं कि मस्क जो कर रहे हैं मस्त कर रहे हैं. साथ दिखाने के लिए मस्क की कंपनी टेस्ला की गाड़ी खरीद रहे हैं. लेकिन दूसरी तरफ एलन मस्क के लीडरशिप में DOGE ने जिन कर्मचारियों को नौकरी से निकाला, वापस उन्हें फिर से हायर भी किया गया. सीडीसी, एफडीए, नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन और कृषि विभाग में यह फ्लिप-फ्लॉप देखने को मिला.

वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने पहले दूसरे देशों से अवैध रूप से आए प्रवासियों को वापस भेजने के लिए सैन्य विमानों के इस्तेमाल की वकालत की. भारत भी ऐसा फ्लाइट्स आईं. लेकिन अब कह रहे हैं कि ये सरकार को महंगी पड़ रही हैं. अब उन्हें निलंबित कर दिया गया है.

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ट्रंप के इस अंदाज की कीमत बहुत अधिक है..

ऐसा नहीं है कि ट्रंप के इस उलट-पलट अंदाज की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती. कीमत कई बार बड़ी होती है. जब दुनिया पहले से ही इतनी अराजक और अप्रत्याशित हो रखी हो, दुनिया के सबसे पावरफुल सरकार के तौर पर अमेरिका की भूमिका आम तौर पर एक स्थिरता प्रदान करने वाली शक्ति यानी स्टेबलाइजिंग फोर्स के रूप में होती है. लेकिन ट्रंप की लीडरशिप में आज अमेरिका खुद अराजकता के पीछे का ड्राइविंग फोर्स बन गया है, प्राथमिक चालक बन गया है.

सबसे बड़ा असर दुनियाभर के मार्केट पर देखने को मिल रहा है. डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार, 10 मार्च को यह संकेत दिया कि उनकी टैरिफ वाली रणनीति से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका में मंदी आ सकती है. फिर क्या था, सबसे पहले झटका अमेरिका में शेयर मार्केट को ही लगा. तकनीकी शेयरों वाले नैस्‍डैक ने 2022 के बाद सबसे बुरा दिन देखा. सबसे बड़ी अमेरिकी कंपनियों के शेयर नजर रखने वाला बेंचमार्क S&P 500 भी फरवरी के अपने उच्चतम स्तर से 8 प्रतिशत से अधिक गिर गया है. बिकवाली ने S&P 500 से 4 ट्रिलियन डॉलर का सफाया कर दिया है. सोमवार को, S&P 500 ने कारोबारी दिन 2.7% की गिरावट के साथ खत्म किया- यानी सितंबर के बाद से यह अपने सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ.

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अब अमेरिका शेयर मार्केट को लगे इस झटके की गूंज दुनिया में सुनी जा रही है. मंगलवार को शुरुआती कारोबार में जापान का निक्केई 225 2.5 फीसदी नीचे, साउथ कोरिया का कोस्पी 2.3% नीचे और ऑस्ट्रेलिया का S&P/ASX 200 1.8% नीचे था. वॉल स्ट्रीट में रात भर की गिरावट के बाद एशियाई बाजारों में व्यापक बिकवाली को देखते हुए मंगलवार को भारतीय शेयर बाजार भी गिरावट के साथ खुले.

यह तो रही अर्थव्यवस्था की बात, सामरिक मोर्चे पर भी ट्रंप की अस्थिर नीति ने अनिश्चितता को जन्म दिया है. कल तक अमेरिका के कंधे के भरोसे रूस से जंग लड़ रहा यूक्रेन खुद को मझधार में खड़ा पा रहा. वेस्ट अलायंस भी सकते में है. उसे पता नहीं कि अगर कल रूस नाटो के किसी मेंबर देश पर हमला करता है तो अमेरिका उनकी मदद के लिए आएगा भी या नहीं. इसी डर से यूरोपीय देश आपस में एक के बाद एक बैठक कर रहे हैं.

तो सवाल वहीं. यह ट्रंप का माइंडगेम है और वो जानबूझकर ऐसा करते हैं. पता नहीं. ट्रंप की माया ट्रंप ही जाने. वैसे इस सवाल का जवाब अगर आपके पास है तो वो भी बताइए. इसके लिए भी आपकी तारीफ में मैं दो शेर पढ़ने को तैयार हूं.

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