This Article is From Apr 05, 2024

अब 'आइडेंटिटी क्राइसिस' से क्यों जूझने लगा है ऋतुराज वसंत?

विज्ञापन
Amaresh Saurabh

क्या आपने नोटिस किया कि इस बार वसंत कब आया, कहां आया? चैत का महीना आधा बीतते-बीतते वसंत कहीं ठहरा भी या यूं ही निकल गया? जो ऋतुओं का राजा कहलाता है, वह आज के दौर में इतनी उपेक्षा का शिकार क्यों है? आइए, थोड़ा ठहरकर विचार करते हैं.

बेईमान मौसम
एक तो अबकी ठंड जाते-जाते भी बार-बार लौटकर आती रही. बक्सों में तहियाकर रखे जा चुके कंबल कई बार निकाले गए. और जब ठंड गई, तो सीधे गर्मी ही आ गई. मौसम विभाग वाले अभी से चेता रहे हैं. कह रहे हैं कि देखते जाइए, अप्रैल से ही देशभर में हीटवेव जोर पकड़ लेगा. ऐसे में कोई बताए कि वसंत के कोटे के दो महीने किधर गए? ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज ने ऋतुओं के राजा को कहीं बेदखल तो नहीं कर दिया!

अगर पोथी-पतरा पलटकर देखें, तो इसके अनुसार वसंत फागुन-चैत-वैशाख महीने के बीच आता है. अंग्रेजी कैलेंडर से मिलान करने पर इस ऋतु की अवधि फरवरी, मार्च और अप्रैल के बीच दो महीने की होती है. लेकिन अब इन महीनों के बीच वसंत को ढूंढना आसान है क्या?

Advertisement

वसंत की पहचान
वसंत पर टनों साहित्य लिखे जा चुके, पर कालिदास के 'ऋतुसंहार' के बिना बात पूरी नहीं होती. कालिदास ने वसंत के आने की कई पहचान बताई हैं. वे कहते हैं कि जब पेड़ फूलों से लदे हों. तालाब कमलों से भरे हों. पवन सुगंधित हो. शाम सुखद और दिन रमणीय हों- ये सारे जब मनोहर मालूम पड़ें, तो समझना चाहिए कि वसंत आ गया. वे बताते हैं कि इस ऋतु में बौर आए हुए आम के पेड़ों से टकराकर चलने वाली सुगंधित हवा से, मदमाती कोयल की कूक से और भौंरों की मदमस्त गुंजार से हर किसी का मन विचलित हो जाता है. यह वसंत घोषित तौर पर कामदेव का प्रिय मित्र है, इसलिए ज्यादा क्या कहना!फिर भी, इनमें सबसे सरल पहचान है कि इस ऋतु में कोयलें कूकती हैं. लेकिन जरा याद कीजिए, आपने आखिरी बार कोयल की कूक कब सुनी थी?

Advertisement

चुनाव का चक्कर
अबकी तो चुनावी सीजन के चक्कर में भी ऋतुओं के राजा की आइडेंटिटी गुम हो रही है. कहीं लहर चल रही, कहीं-कहीं अंडर-करंट. कुछ कोयलों की मीठी कूक पार्टी-प्रचार के शोर में दब जा रही है. कुछ कोयलें आचार संहिता देखकर ज्यादा गाने से परहेज कर रही हैं. कुछ इस अहसास से चुप बैठी हैं कि मीठा बोलने वालों को आज पूछता कौन है? कुछ कोयलें भौंडे भोजपुरी गानों के आगे शरमाकर चुप्पी लगाए हैं. कुछ ऐसी हैं, जिन्हें गाने से पहले ही पूरी कीमत चाहिए. कुछ को न राइट जाना पसंद है, न लेफ्ट. कुछ को मालूम है कि जब ऋतुराज के ही दिन लद गए, तो उसकी दूती की फिकर किसे होगी!  

Advertisement

जेब का सवाल
कभी अपने देश में वसंत का खूब मान-आदर हुआ करता था. निराले कवियों की निराली कविताएं- सखि, वसंत आया! भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया! लेकिन इस उत्कर्ष में निजता का बोध कम, सामूहिकता का बोध ज्यादा हुआ करता था. तब पैसा ही सुख का एकमात्र आधार नहीं समझा जाता था. लोग प्रकृति से तालमेल बिठाकर चलते थे. दिमाग पर लालच उतना हावी नहीं था. जरूरतें सीमित थीं, तो कम साधन में भी सुकून था. कुल मिलाकर, वसंत को गहराई से महसूस करने लायक मनोभूमि तैयार रहती थी, उसी पर वसंत फलता-फूलता था. पर ज्यों-ज्यों इंसान की कमीज और पैंट की जेबें बढ़ती चली गईं, उसके अंदर खालीपन का अहसास भी गहराता चला गया. ऐसे में वसंत को आइडेंटिटी क्राइसिस से जूझना ही था!

Advertisement

गैजेट्स वाला वसंत
ऐसा नहीं कि वसंत का कोई नामलेवा नहीं बचा. अब लोग इसे गैजेट्स के भीतर तलाशते हैं. सर्च करने पर बैठे-बिठाए सब कुछ मिल जाता है. नदी, पहाड़, झील, झरने, फूल, पत्ते, पानी, बर्फ- सब. देखने वाला भी निहाल और दिखलाने वाला भी मालामाल. लाइक, कमेंट, सब्सक्राइब और अनलिमिटेड स्क्रॉल पर आधारित बारहमासी खुशी ही वसंत को कहीं भीतर जिंदा रख रही है. लेकिन ज्यादातर आर्टिफिशियल. कृत्रिम सोच, बुद्धिमत्ता कृत्रिम, कृत्रिम मुस्कान, कृत्रिम प्रेम और कृत्रिम वसंत!

वसंत न आने के फायदे
वसंत न आने के भी अपने फायदे हैं. आयुर्वेद में वसंत को सेहत के नजरिए से अच्छा नहीं माना गया है. बताया गया है कि इस ऋतु में कई तरह के रोग अचानक उभरते हैं. मतलब, वसंत आए तो अच्छा, न आए तो और भी अच्छा! और हां, अगर हमारी नई पौध भी शिशिर-वसंत-हेमंत के चक्कर में पड़ गई, तो उनके भविष्य का क्या होगा? जीवन में कामयाब होना है, तो सारा फोकस करियर पर होना चाहिए. वसंत न तो ढंग के स्कूल-कॉलेज में एडमिशन दिलवा पाएगा, न ही अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट. फिर ऐसे वसंत के मंजर और आम का क्या अचार डालना है? तो इस वसंत को इसके ही हाल पर छोड़ देते हैं!

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article