बिहार विधानसभा 2025 का चुनाव प्रचार जोरों पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अपने चुनाव अभियान की शुरुआत कर चुके हैं. लेकिन अभी तक जितने भी चुनावी सभा हुए हैं, उसे देखकर लग रहा है कि यह चुनाव भी जातीय एवं धार्मिक ध्रुवीकरण, लोक लुभावने नारे, जंगल राज और व्यक्तिगत आरोप- प्रत्यारोप तक सिमटता जा रहा है. जबकि बिहार को आज जरूरत है एक सुदृढ़ शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित आधारभूत ढांचों के निर्माण के साथ-साथ नए औद्योगिक क्षेत्र में निवेश की. इससे ना केवल बिहार एक विकसित प्रदेश के रूप में स्थापित होगा बल्कि पलायन पर भी लगाम लगेगी. बिहार में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में पिछले दशक की तुलना में सुधार अवश्य हुआ है किन्तु अभी भी यह अन्य राज्यों कि तुलना में पिछड़ा हुआ है.
हाल के समय में, हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर बढ़ता दबाव देखा गया है. कोविड-19 महामारी ने भारत की मौजूदा चिकित्सा देखभाल अवसंरचना में कमजोरियों को उजागर किया है, जो चिकित्सा संकटों के प्रबंधन में इसकी अपर्याप्तता को दर्शाता है. बिहार भी इस स्थिति से प्रभावित है. स्वास्थ्य सुविधाओं की 'उपलब्धता, पहुंच, और सामर्थ्य' लोगों की भलाई को प्रभावित करने वाले कई कारकों में से एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए आवश्यक है. 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2000' का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना है ताकि 'सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज' (यूएचसी) प्राप्त किया जा सके. भारत जैसे लोकतंत्र में, जो सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता देता है, स्वास्थ्य सेवाओं का सार्वजनिक प्रावधान आवश्यक है. सामाजिक कल्याण और समानता को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पर्याप्त पूंजी आवंटन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) स्वास्थ्य को 'शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की पूर्ण स्थिति, न कि केवल रोग या अक्षमता की अनुपस्थिति' के रूप में परिभाषित करता है.
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है, "स्वास्थ्य व्यक्ति की मूलभूत कार्य करने की क्षमता में योगदान देता है, जिससे वह उस जीवन को चुन सके जिसे वह मूल्य देता है.''
बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
बिहार में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति इष्टतम से बहुत दूर है, जिसमें सुविधाओं और कर्मचारियों की भारी कमी है, जैसा कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के 2024 वाले रिपोर्ट में उजागर किया है. यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग में आधे पद खाली हैं. राज्य में प्रति 2,148 लोगों पर केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि अनुशंसा है कि प्रति हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. अगर देखा जाए तो बिहार के 18 जिलों में 60 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली हैं, जिसमें सहरसा, सुपौल, औरंगाबाद, बेगूसराय, कटिहार और समस्तीपुर जिले प्रमुख हैं. वहीं पटना, भागलपुर और जहानाबाद की स्थिति कमोबेश ठीक है. यही नहीं विशेषज्ञ डॉक्टर कि स्थिति बेहद दयनीय है. इसमें एनेस्थीसिया और पीडियाट्रिक के क्रमशः अनुसंशीत पद की तुलना में 86 फीसदी और 70 फीसदी पोस्ट खाली हैं. 2024 में, विशेषज्ञों की आवश्यकता 5,081 के मुकाबले केवल 1,580 पद भरे गए थे, जिसका अर्थ है कि 69 प्रतिशत पद खाली रहे. यही हाल गायनेकोलॉजी, जनरल सर्जरी, फिजिशियन और रेडियोलॉजी विभाग का है. इन विभागों में मात्र 375, 290, 136 और 34 डॉक्टर तैनात हैं.
मानव संसाधन की कमी के अलावा, राज्य में बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. स्वास्थ्य केंद्रों में पीने का पानी, पंखे, पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, कुर्सियों आदि की कमी है. इसके साथ ही आपातकालीन वार्डों और ऑपरेशन थिएटरों में महत्वपूर्ण उपकरण भी उपलब्ध नहीं हैं. कैग के रिपोर्ट के अनुसार 2016-22 के बीच 16 जांचे गए स्वास्थ्य सुविधाओं में 24 मातृ मृत्यु के मामलों में से केवल एक मामले में मातृ मृत्यु की समीक्षा की गई. इसके अलावा, 25 एम्बुलेंसों की भौतिक जांच में पाया गया कि किसी भी एम्बुलेंस में आवश्यक उपकरण नहीं थे. वहीं जिन छह ब्लड बैंकों की जांच की गई, वो 21 सालों तक बिना वैध लाइसेंस के चलते रहे.
सतत विकास लक्ष्य और बिहार की स्वास्थ्य सेवा
सतत विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में अपनाए गए 17 वैश्विक लक्ष्य हैं, जिनका उद्देश्य 2030 तक गरीबी उन्मूलन, असमानता कम करना, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास सुनिश्चित करना है. इनमें से लक्ष्य 3 'स्वास्थ्य एवं कल्याण' पर केंद्रित है. इसका मुख्य उद्देश्य सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और कल्याण को बढ़ावा देना है. यह लक्ष्य मातृ और शिशु स्वास्थ्य, संक्रामक एवं गैर-संचारी रोगों की रोकथाम, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने पर जोर देता है. भारत ने इन लक्ष्यों को अपनी विकास योजनाओं में एकीकृत किया है. नीति आयोग की ओर से जारी सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) इंडिया इंडेक्स राज्यों की प्रगति का मूल्यांकन करता है. बिहार, भारत का एक प्रमुख राज्य होने के बावजूद, स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है. 2023-24 के एसडीजी इंडिया इंडेक्स में बिहार का समग्र स्कोर 57 रहा. यह सबसे निचला है, जबकि स्वास्थ्य (SDG-3) में भी यह 66 स्कोर के साथ पिछड़ा हुआ है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मातृ मृत्यु दर प्रति लाख जीवित जन्मों पर 70 होना चाहिए किन्तु भारत में यह 97 और बिहार में 118 है. वहीं नवजात मृत्यु दर का लक्ष्य प्रति हजार जन्मों पर 12 या उससे कम है, लेकिन भारत का औसत 24.9 है और बिहार का 34.5. इसके अलावा पांच साल से कम जीवित बच्चों में मृत्यु दर प्रति हजार 25 होना चाहिए और कुल प्रजनन दर 2.1 फीसदी, संस्थागत प्रसव 100 फीसदी और प्रति 10 हजार लोगों पर कम से कम 45 चिकित्सा कर्मचारी होने चाहिए, जबकि भारत में यह क्रमशः पांच साल से कम जीवित बच्चों का मृत्यु दर 41.9, प्रजनन दर दो फीदसी, संस्थागत प्रसव 94 फीसदी और चिकित्सा कर्मचारियों संख्या 37 है. वहीं अगर इस पैमाने पर बिहार को देखा जाय तो पांच साल से कम जीवित बच्चों का मृत्यु दर 56.4, प्रजनन दर तीन फीसदी, संस्थागत प्रसव 84.8 फीसदी और चिकित्सा कर्मचारियों संख्या मात्र 17 है. इस प्रकार बिहार अभी भी सतत विकास लक्ष्यों के विभिन्न मानकों में पिछड़ा हुआ है.
स्वास्थ्य का बजट खर्च नहीं कर पा रहा है बिहार
बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति जेब से होने वाला खर्च भारत के अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत कम रहा है, लेकिन यह अभी भी एक महत्वपूर्ण बोझ है. नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में बिहार में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति कुल खर्च करीब 1,517 रुपये था. इसमें से जेब से खर्च का हिस्सा लगभग 53.5 फीसदी था. कैग ने अपने रिपोर्ट में यह भी दर्शाया है कि बिहार सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के अनुरूप कोई व्यापक स्वास्थ्य नीति/योजना तैयार नहीं की है, जो हर स्वास्थ्य सुविधा में बुनियादी ढांचे/उपकरणों की कमी को संबोधित कर सके. इसके परिणामस्वरूप बिहार स्वास्थ्य विभाग ने सुधार के लिए आवंटित धन को बार-बार वापस कर दिया. वित्त वर्ष 2016 से 2022 के बीच, बिहार स्वास्थ्य विभाग के लिए कुल 69,791 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. इसमें से 21,743 करोड़ रुपये यानी 31 फीसदी खर्च नहीं हुए. कैग की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि विभाग द्वारा जारी धन उपयोग नहीं हुआ और वित्त वर्ष के अंतिम दिन सरेंडर कर दिया गया.
चुनावी समर में स्वास्थ्य सुविधाएं
हाल के सालों में बिहार सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में कई पहल की हैं, जिन्हें एनडीए चुनाव प्रचार में 'अंधेरे से उजाले की ओर' का नारा देकर पेश कर रहा है. ये प्रयास ग्रामीण पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित हैं.
डिजिटल हेल्थ मिशन और ई-संजीवनी: हर नागरिक को डिजिटल हेल्थ आईडी दी गई है. ग्रामीणों को पंचायत भवनों या कॉमन सर्विस सेंटर्स से वीडियो कॉल पर डॉक्टरों से परामर्श मिलता है. कोविड के बाद टेलीमेडिसिन ने लाखों लोगों को फायदा पहुंचाया है.
मुफ्त दवाएं और जांच: राज्य के सभी जिला/अनुमंडलीय अस्पतालों में 600 से ज्यादा दवाएं मुफ्त. एक्स-रे, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड जैसी जांचें मुफ्त (PPP और इन-हाउस मोड से 255 से ज्यादा संस्थानों में उपलब्ध).
नए अस्पताल और बुनियादी ढांचा: बिहार में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 12 से बढ़ाकर 22 तक करने की योजना. एमबीबीएस की सीटें 2,870 से बढ़ाकर 5,220 और बेडों की संख्या 9,900 से 28,884 हो जाएंगी. हर जिले में मेडिकल कॉलेज अस्पताल खुल रहे हैं.
एंबुलेंस और मोबाइल यूनिट्स: 1,536 एंबुलेंस (102 योजना) और 50 शव वाहन; 292 और खरीद की योजना. मोबाइल अस्पताल वैन गांव-गांव जाकर डॉक्टर, नर्स और दवाओं के साथ इलाज करती हैं.
सकारात्मक परिणाम: संस्थागत प्रसव दर 63.8 फीसदी से बढ़कर 89.02 फीसदी हुई. नवजात मृत्यु दर 75 से 21 प्रति 1,000 पर घटी, पूर्ण टीकाकरण कवरेज 18 फीसदी से 93 फीसदी पहुंचा. ये सुधार तो हुए हैं, लेकिन डॉक्टरों की कमी अभी भी चुनौती बनी हुई है. राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन इन्हें विकास का प्रमाण बताकर विपक्ष की आलोचना का जवाब दे रहा है.
वहीं दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन बिहार की स्वास्थ्य व्यस्था को नाकामी का प्रतीक बता रहा है. आरजेडी के नेता भर्ती घोटालों का आरोप लगा रहे हैं. वहीं कांग्रेस कैग रिपोर्ट का हवाला देकर उदासीनता की बात कर रही है. तेजस्वी यादव इसे युवा-महिला वोटरों के लिए मुद्दा बना रहे हैं. वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज स्वास्थ्य, बाढ़ और रोजगार को मुख्य मुद्दा बता रही है. आम आदमी पार्टी शिक्षा-स्वास्थ्य पर फोकस्ड मेनिफेस्टो ला रही है.
डिस्क्लेमर: डॉ नीरज कुमार बिहार के वैशाली स्थित सीवी रमन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं. लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.














