भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 लोकसभा चुनावों की तैयारियों को ध्यान में रखकर चार राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की है. भाजपा पार्टी महासचिव अरूण सिंह द्वारा जारी पत्र में बताया गया कि पंजाब में सुनील जाखड़, आंध्र प्रदेश में डी पुरंदेश्वरी, झारखंड में बाबूलाल मरांडी और तेलंगाना में किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.
वहीं, तेलंगाना में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर एटाला राजेंद्र को चुनाव कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया. साथ ही आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया.
इन नियुक्तियों से लगता है कि भाजपा में टैलेंट की कमी है या इसके पीछे पार्टी के विस्तार को लेकर कोई सोची-समझी रणनीति है?. जहां भाजपा, कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात करती है तो वहीं कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी तरजीह देने में लगी हुई है. फिर चाहे वह प्रदेश अध्यक्ष बनाना हो, मुख्यमंत्री बनाना हो या मंत्री. उदाहरण के लिए हेमंत बिस्वा शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद.
पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए सुनील जाखड़, भाजपा में आने से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे. वह साल 2022 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए.
जाखड़ हिंदू जाट नेता है. उनके पिता 10 साल तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे, बाद में वह मध्यप्रदेश के राज्यपाल बने. कृषि बिल के खिलाफ किसानों की नाराजगी भाजपा को विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिली. अश्वनी शर्मा की अध्यक्षता में पार्टी विधानसभा चुनाव और लोकसभा उपचुनाव भी हार गई.
जाखड़ 2017-2021 तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे है. ऐसे में उनके पास पूरे प्रदेश में काम करने का अनुभव हैं. उन्हें हिंदू के साथ-साथ सिख वोटरों का भी समर्थन है. भाजपा की कोशिश होगी की हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में करके राज्य में अपनी स्थिति मजबूत कर सके.
आंध्र प्रदेश की अध्यक्ष डी पुरंदेश्वरी, कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकी है. साल 2014 में पुरंदेश्वरी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थी. बता दें कि वह एनटी रामा रॉव की बेटी हैं.
दक्षिण भारत में अपने आप को स्थापित करने में लगी भाजपा ने आंध्र की सुषमा स्वराज कहे जाने वाली नेता डी पुरंदेश्वरी को अपना अध्यक्ष बनाया है. आंध्र में भाजपा की कोई खास पकड़ नहीं है ऐसे में पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री पुरंदेश्वरी के जरिए राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
पुरंदेश्वरी कम्मा जाति से आती है, जो राज्य में सामाजिक और राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली है. जगन मोहन रेड्डी की रेड्डी जाति को लेकर राजनीति से कम्मा जाति में नाराजगी है, जिसका फायदा पुरंदेश्वरी को अध्यक्ष बनाकर पार्टी उठाना चाहती है. बता दें कि आंध्र में ज्यादातर मुख्यमंत्री रेड्डी और कम्मा जाति से आते है.
बाबूलाल मरांडी 2000 में झारखंड के विभाजन के बाद पहले मुख्यमंत्री बने. लेकिन साल 2006 में भाजपा छोड़कर उन्होंने खुद की ‘झारखंड विकास मोर्चा' नाम से नई पार्टी बनाई. 14 साल बाद साल 2020 में उन्होंने फिर भाजपा में वापसी की लेकिन उनके दो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए और वह खुद भाजपा में शामिल हुए. वर्तमान में वह भाजपा विधायक दल के नेता है.
झारखंड में बाबूलाल मरांडी को अध्यक्ष बनाने के बाद भाजपा को आदिवासी वोटरों का खोया हुआ समर्थन मिलने की उम्मीद होगी. पिछले विधानसभा चुनावों में जेएमएम गठबंधन ने 28 आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों में से 26 पर जीत दर्ज की थी. उस समय राज्य के मुख्यमंत्री गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास थे.
मरांडी आदिवासियों के सबसे बड़े समूह संथाल से आते है. राज्य में संथाल परगना और छोटा नागपुर दो सबसे बड़े क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा आदिवासी है. छोटा नागपुर में भाजपा मजबूत है जबकि संथाल परगना में जेएमएम का दबदबा है. मरांडी संथाल परगना क्षेत्र से आते है जहां भाजपा अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगी हुई है.
इस समय झारखंड में बाबूलाल मरांड़ी भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा है. जिसका कारण है उनकी आदिवासी और गैर आदिवासी मतदाताओं में स्वीकार्यता हैं.राजनीति में आने से पहले मरांडी संघ के प्रचारक थे.
पूर्व मंत्री एटाला राजेंद्र साल 2021 में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए. एटाला, तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री और वित्त मंत्री रह चुके हैं. उन्हें केसीआर का बहुत करीबी माना जाता था.
एटाला जमीनी और जनाधार वाले नेता है. उन्हें कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने यह संदेश जाएगा की दूसरे पार्टी के नेता भी भाजपा से जुड़ेंगे. कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हार के बाद भाजपा के तेलंगाना में विस्तार को झटका लगा है.
भाजपा ने एटाला को दूसरे पार्टी के नेताओं को पार्टी में शामिल कराने की जिम्मेदारी दी थी. लेकिन अध्यक्ष बंडी सजंय कुमार से तालमेल में कमी के कारण दूसरे पार्टी के नेताओं का भाजपा में शामिल करना मुश्किल हो रहा था.
बताया जाता है कि हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद श्रीनिवास रेड्डी और पूर्व मंत्री जुपल्ली कृष्णा राव, भाजपा में शामिल होना चाहते थे. लेकिन भाजपा की कर्नाटक में हार और तेलंगाना भाजपा में अनबन के कारण वह कांग्रेस में शामिल हुए.
दूसरी बात, भाजपा का तेलंगाना में कोई खास जमीनी पकड़ नहीं है और इसलिए वह दूसरे दल के नेताओं को अपने साथ जोड़ना चाहती है. एटाला लोकप्रिय ओबीसी नेता हैं. राज्य में 48 प्रतिशत ओबीसी समुदाय की जनसंख्या है.
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्ति किया है. वह इसी साल भाजपा में शामिल हुए. रेड्डी साल 2010 से 2014 तक अविभाजित आंध्र प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री रहे.
भाजपा के अन्य प्रदेश अध्यक्षों की बात करें तो आंध्र प्रदेश, झारखंड, पंजाब के अलावा बिहार के मौजूद अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी गैर भाजपाई है. वह भाजपा में शामिल होने से पहले आरजेडी सरकार में मंत्री थे. उन्होंने अपनी राजनीतिक करियर की शुरूआत ही आरजेडी से की है. वह अभी कर बिहार में तीन बार मंत्री बन चुके है.
सिक्किम के प्रदेश अध्यक्ष डीआर थापा भाजपा से पहले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे. लेकिन साल 2019 में उन्होंने एसडीएफ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. साल 2023 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.
गौरतलब हैं कि, ज्यादातर पार्टियों दूसरे दल के नेताओं को सरकार में मंत्री बनाने तक ही सीमित रखती है लेकिन भाजपा में दूसरे दल के नेताओं को संगठन में भी महत्वपूर्ण पद दिया जा रहा हैं. यह मोदी-शाह युग की बदली हुई राजनीति को दर्शाती हैं.
(अश्विन कुमार सिंह NDTV में इलेक्शन डेस्क पर संवाददाता हैं.)
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