- अमेरिका में जो बाइडन की सेहत एक बड़ा मुद्दा बन गई थी पर बिहार में नीतीश कुमार की सेहत मुद्दा क्यों नहीं है?
- एक्सपर्ट कहते हैं- सेहत पर हमला कहीं विपक्ष को भारी न पड़ जाए. सहानुभूति में वो नीतीश को ही अधिक वोट न दे दें.
- अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- स्कूल प्रिंसपल से अधिक रोमांचक पीटी टीचर हो सकते हैं पर वो स्कूल नहीं चला सकते.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभाएं कर रहे हैं भाषण पढ़ रहे हैं और चले जा रहे हैं. वो इंटरव्यू नहीं दे रहे हैं, पत्रकारों से कभी मुलाकात नहीं की. जिस तरह वो 10-20 साल पहले मिला करते थे, वैसे मिलते नहीं हैं. उनकी सेहत को लेकर चर्चाएं हैं. पर उसे लेकर कोई बात नहीं करता है. अमेरिका में जो बाइडन की सेहत एक बड़ा मुद्दा बन गई थी और उन्हें राष्ट्रपति पद की रेस से बीच में ही हटना पड़ा था लेकिन बिहार में इसके उलट नीतीश कुमार को सहानुभूति मिल रही है और बिहार में यह मुद्दा क्यों नहीं बन रहा है?
बिहार चुनाव कवर करने पहुंचे एनडीटीवी के सीईओ राहुल कंवल ने जब नीतीश कुमार की सेहत को लेकर यही सवाल राजनीति के जानकारों के सामने रखी तो इस पर चुनाव विज्ञानी अमिताभ तिवारी कहते हैं, "नीतीश कुमार का 20 साल का अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है. विपक्ष को लगता है कि उनकी सेहत पर अटैक किया जाए. कहीं न कहीं यह भी चल रहा है कि यह उनका अंतिम चुनाव हो सकता है."
राजनीतिक एक्सपर्ट अजित कुमार झा, अमिताभ तिवारी और संजीव श्रीवास्तव
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"सेहत पर हमला, सहानुभूति वोट में तब्दील होने का खतरा"
अमिताभ तिवारी कहते हैं "ऐसे में ये लगता है कि अगर उनकी सेहत पर हमला किया जाए तो कहीं उन्हें समर्थन सहानुभूति वोट में न तब्दील हो जाए. विपक्ष तो यह भी कह रहा है कि अगर वो महागठबंधन में आ जाएं तो उनके लिए दरवाजे खुले हैं. तो जिस तरह से दिल्ली के मीडिया में दिखाया जाता है, वैसी हालत नहीं है."
वे कहते हैं, "वो फिट हैं, वो चार पांच रैलियां कर रहे हैं. वो फैसले ले रहे हैं. सोशल मीडिया के जमाने पर आज की तारीख में दोनों की प्रत्याशियों हर सीट पर चार-पांच इन्फ्लुएंसर्स रख लिए हैं कि सिर्फ इनको ट्रैक करो और इनका कुछ भी मूवमेंट हो उसे हमें भेजो हम सोशल मीडिया पर दिखा दें. निश्चित रूप से उनकी उम्र तो हो चुकी है पर उनकी सेहत पर हमला नहीं किया जा रहा है क्योंकि उसे लेकर वोटर्स के सहानुभूति वोट में तब्दील होने का खतरा है."
नीतीश कुमार और नवीन पटनायक की फाइल फोटो
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नवीन पटनायक की तरह नीतीश को बिहार में मिला प्यार
वही वरिष्ठ पत्रकार अजित झा कहते हैं, "नवीन पटनायक ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्हें लंबे कार्यकाल के बाद भी लोगों का प्यार मिलता रहा. नीतीश कुमार को भी लोगों का वैसा ही प्यार मिलता है. प्रशांत किशोर को छोड़ दें, तो मैंने जिन लोगों से यहां बात की है, उनके बीच नीतीश कुमार की सेहत को लेकर चर्चा तक नहीं है."
वे कहते हैं, "सब यही कहते हैं कि 75 में तो वैसे भी यादगारी कम हो जाती है. ठीक है... पर काम तो कर रहे हैं. नीतीश कुमार रोज किसी एक जिले में जाकर वहां वोटर्स से बात करते हैं, उनके लिए तो इतना ही काफी है कि नीतीश कुमार आए, बात किए. महिलाओं से तुरंत वो पूछते हैं कि काम हुआ और बाकी हालचाल पूछते हैं, ब्यूरोक्रैट्स नोट करते हैं और वहां तुरंत सहायता पहुंचा दी जाती है. तो इसका असर है."
"वो पूरे राज्य में वो कैंपेन कर रहे हैं पर उसे कैंपेन माना नहीं जाता है, कहा जाता है कि वो मुख्यमंत्री हैं विकास के लिए काम कर रहे हैं."
बिहार चुनाव के मुद्दों पर एक्सपर्ट्स से बात करते NDTV के CEO राहुल कंवल
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"लोग ये देखते हैं कि कौन नेता उन्हें क्या दे सकता है"
इससे पहले भी एनडीटीवी के कार्यक्रम बैटलग्राउंड बिहार में नीतीश कुमार की सेहत को लेकर चर्चा हुई तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान का जिक्र किया गया जिसमें उन्होंने कहा था, "नीतीश कुमार रोज पांच सार्वजनिक सभाओं में जा रहे हैं. अगर उनकी सेहत खराब होती तो क्या वो ऐसा कर पाते."
तब जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा ने भी अमित शाह की बातों का संदर्भ देते हुए कहा, पिछले कई दिनों से वो चुनाव प्रचार में लगे हैं. इससे पहले उन्होंने प्रगति यात्रा के दौरान लगभग सभी जिलों में गए. जिसके बाद पटना वापस लौट कर उन्होंने करीब 50 हजार करोड़ के विकास कार्याों को हरी झंडी दी थी. तो अगर उनकी सेहत अच्छी नहीं होती तो क्या वो इतना काम कर पाते."
उसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने कहा, "जब अटल जी प्रधानमंत्री थे. तब उन्होंने ऐसे ही एक सवाल पर जवाब दिया था कि स्कूल के प्रिंसपल से अधिक रोमांचक एक पीटी टीचर हो सकते हैं पर वो स्कूल नहीं चला सकते."
उन्होंने यह भी कहा कि "लोग इस पर फैसला लेते हैं कि कोई नेता उन्हें क्या दे सकता है. साथ ही बिहार एक ऐसा राज्य है जहां लोग एक झटके में बदलाव की ओर जाना पसंद नहीं करते हैं."














