बिहार चुनाव: मुस्लिम फैक्टर और ओवैसी का डर? जानें क्या है वक्फ पर तेजस्वी के नए तेवर का मतलब

तेजस्वी यादव का वक्फ़ बोर्ड कानून पर ‘फाड़ देने’ वाला बयान सिर्फ़ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि मुस्लिम वोट बैंक को सक्रिय करने की चुनावी रणनीति है. एनडीए ने इसे संविधान विरोधी बताया है, जबकि राजद इसे मुस्लिम मतदाताओं में जोश भरने का प्रयास कह रही है.

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  • तेजस्वी यादव ने वक्फ़ बोर्ड कानून को लेकर आक्रामक बयान दिया है जिसके बाद एनडीए ने हमला बोला है
  • तेजस्वी की रणनीति का मकसद मुस्लिम वोटों का ओवैसी की पार्टी के साथ बंटवारा रोकना है
  • तेजस्वी यादव इस बयान से मुस्लिम वोटर्स को साधने की कोशिश कर रहे हैं
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पटना:

बिहार की सियासत में इस वक्त सबसे ज़्यादा चर्चा तेजस्वी यादव के बयान का है जो उन्होंने वक्फ कानून को लेकर दिया है. उन्होंने कहा है कि अगर हमें मौका मिला तो वक्फ़ बोर्ड वाला कानून फाड़ देंगे. इस एक लाइन ने एनडीए खेमे को हमलावर बना दिया है और सोशल मीडिया पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है. लेकिन सवाल यह है कि तेजस्वी ने केंद्र द्वारा बनाए गए इस कानून को लेकर इतना आक्रामक बयान क्यों दिया? इसके पीछे सिर्फ़ भावनाएं नहीं, बल्कि एक सुनियोजित चुनावी रणनीति छिपी दिखती है. 

दरअसल, तेजस्वी को इस वक्त दो बड़ी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. पहली मुस्लिम वोटों का ओवैसी की पार्टी AIMIM के साथ संभावित बंटवारा रोकना. दूसरी मुस्लिम समाज को यह संदेश देना कि वे सिर्फ़ प्रतीक नहीं, बल्कि निर्णयकारी भूमिका निभाने वाले वोटर हैं. 

राजनीति में अक्सर यह देखा जाता है कि जब कोई वर्ग ठंडा या निष्क्रिय दिखे, तो उसे ‘एग्रेसिव' करने के लिए भावनात्मक मुद्दा उछाला जाता है.  तेजस्वी का बयान इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.  वे चाहते हैं कि जिन बूथों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक संख्या में हैं, वहां अधिकतम मतदान हो ताकि कमजोर बूथों का नुकसान कवर किया जा सके. 

तेजस्वी यादव की क्या है रणनीति?

चुनावी विश्लेषक कहते हैं कि तेजस्वी की यह रणनीति पूरी तरह व्यावहारिक है. लेकिन विरोधाभास यह है कि जिन मुसलमानों को राजद सबसे बड़ा राजनीतिक सहारा मानता है, उन्हें वही पार्टी सत्ता और टिकट वितरण में हमेशा सीमित हिस्सेदारी देती है. सीमांचल को छोड़ दें, तो बिहार के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में राजद ने यादव या गैर-मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. 

मंत्रिमंडल गठन के समय भी यही स्थिति रहती है.  तेजस्वी यादव की पार्टी सत्ता में आने पर सबसे ज़्यादा मंत्रालय अपनी जाति और करीबी सहयोगियों में बांटती है. मुस्लिम समाज अक्सर यह महसूस करता है कि उसे वोट तो दिया जाता है, पर बराबर की हिस्सेदारी नहीं मिलती. यही वजह है कि इस बार मुस्लिम मतदाता सोशल मीडिया पर पहले जितने मुखर नहीं हैं. 

ओवैसी की बढ़ती सक्रियता को कम करना चाहते हैं तेजस्वी

राजद को यह ठंडापन महसूस हो रहा है.  सीमांचल और किशनगंज जैसे इलाकों में ओवैसी की बढ़ती सक्रियता ने पार्टी की चिंता और बढ़ा दी है.  ऐसे में तेजस्वी का यह बयान एक तरह से ‘पॉलिटिकल इग्निशन' है. ताकि ठंडे पड़े वोटरों में फिर से भावनात्मक ऊर्जा पैदा की जा सके.

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हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ऐसे बयानों का असर सीमित होता है। चुनाव के दिन यह तय करेगा कि तेजस्वी की यह कोशिश वोट में तब्दील होती है या सिर्फ़ बयानबाज़ी बनकर रह जाती है.

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