Mahagathbandhan NDA Problems: सियासत में सियासत न हो तो वो सियासत नहीं हो सकती. फिर ये तो बिहार है. जहां के बच्चे भी सियासत बखूबी समझते हैं. बिहार का ये चुनावी साल है. विरोधी तो विरोधी दोस्त भी आपस में सियासी नफा-नुकसान तौलने में जुट गए हैं. सत्ता पक्ष से लेकर विपक्षी गठबंधन में दोस्तों की ताकत आंकी जा रही है. उनकी कमजोरी और अपनी ताकत दिखाई जा रही है. सभी की कोशिश है कि किसी तरह जनता उन पर इस बार प्यार बरसा दे और उनकी सोई किस्मत चमक जाए.
एनडीए में क्या चल रहा
एनडीए में दूर से तो सब कुछ अच्छा-अच्छा ही दिख रहा है, लेकिन चिराग पासवान और पशुपति पारस की लड़ाई जगजाहिर है. चिराग ने चाचा को लोकसभा चुनावों में आउट किया तो अब चाचा विपक्ष की ओर चल दिए. साफ बोले कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता. बिहार में दो ही गठबंधन हैं. एनडीए में जगह नहीं मिली तो विकल्प महागठबंधन या इंडिया अलायंस है. तेजस्वी और लालू यादव भी काफी दिनों से चिराग को अपने पाले में लाने की कोशिश में थे, वो नहीं आए तो अब चाचा ही सही. कुछ सीटें देकर कम से कम दलित वोटरों के सामने इमेज तो बनाई जा सकती है. जाहिर है पशुपति पारस को महागठबंधन में एंट्री मिलने में दिक्कत नहीं होगी. 'हम' वाले जीतनराम मांझी भी हाल में बयान दे चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में एनडीए ने उनके साथ न्याय नहीं किया. इस बार 30-40 सीटें चाहिए. मांझी को भी पता है कि इतनी सीटें तो मिलने से रहीं, मगर फिर भी ये बयान देकर उन्होंने ये तो जता ही दिया कि उनके पास भी विकल्प खुले हैं. बहुत ज्यादा उन्हें भी दबाया नहीं जा सकता. बीजेपी और जदयू में भी 'बड़ा भाई कौन' को लेकर थोड़ी-बहुत खींचतान तो है ही. हालांकि, गठबंधन के सभी साथियों को पता है कि चुनाव तक अब 'ज्यादा चेंज' की गुंजाइश बची नहीं है.
महागठबंधन में क्या चल रहा
वहीं महागठबंधन में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच गंभीर पेंच फंसा हुआ है. कांग्रेस चाहती है कि उसे पिछली बार की तरह सीटें मिलें. पिछली बार उसे 70 सीटें गठबंधन के तहत मिली थीं. मगर, वो जीत पाई महज 19. इसलिए राजद चाहती है कि इस बार कम सीटें कांग्रेस को दी जाएं. उसे लगता है कि अगर पिछली बार कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी होती तो वो सरकार बना लेती. मगर, कांग्रेस ने उल्टा राजद पर दबाव बना दिया है. कांग्रेस चुनाव में तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती. उसका तर्क है कि इससे यादव को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियां उसे वोट नहीं करतीं. ये बात राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने सीधे तौर पर दिल्ली की मीटिंग में तेजस्वी यादव को बता दिया. हां, ये जरूर आश्वासन दिया कि अगर सरकार बनाने का मौका हाथ आता है तो तेजस्वी यादव भले ही मुख्यमंत्री बन जाएं. इस एक बात से राजद बैकफुट पर आ गई.
राजद अब कांग्रेस को सीटों पर बहुत ज्यादा दबा नहीं पाएगी. साथ में कांग्रेस ने ये भी तेजस्वी को बता दिया कि भले ही कुछ सीटों की संख्या कम कर दें, लेकिन सीटें कांग्रेस की पसंद की होनी चाहिए, जिससे जीतने के चांसेज ज्यादा हों. राजद पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस ने हाल-फिलहाल कन्हैया कुमार को बिहार में आगे कर दिया है. पप्पू यादव भी कांग्रेस के लिए फिल्डिंग कर रहे हैं. ये सभी को पता है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को पसंद नहीं करते, मगर फिर भी कांग्रेस इन्हें अपने पाले में रखे हुए है और बारगेन कर रही है. राजद को पता है कि कांग्रेस अगर गठबंधन से अलग हो गई तो एकमुश्त मिलने वाले मुस्लिम वोटों में सेंधमारी हो सकती है. वहीं कांग्रेस को भी पता है कि उसका संगठन बिहार में बेहद कमजोर है तो गुंजाइश दोनों के अलग होने के यहां भी नहीं है, बस एक दूसरे को ताकत दिखाई जा रही है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाकर किस्मत चमकाई जा सके. फिलहाल सीट बंटवारे तक ये चलता रहेगा.