बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल के सुप्रीमो नीतीश कुमार ने अपनी सहमति देने के बाद 25 सितंबर को हरियाणा के जिंद में राज्य की राजनीति के एक जमाने में सबसे मज़बूत स्तंभ रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल के जयंती समारोह से अलग रहने का फैसला किया है. इसकी विधिवत घोषणा जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने शनिवार को पटना में की.
ललन सिंह ने नीतीश कुमार के इस सम्मेलन में ना जाने के फैसले के पीछे कई कारण गिनाए जिनमें कोरोना की तीसरी लहर की आशंका, राज्य में बच्चों के बीच बढ़ता वायरल बुखार और बाढ़ की स्थिति प्रमुख हैं. उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में नीतीश कुमार के चौधरी देवी लाल से नजदीकी सम्बंध का भी हवाला दिया.
लेकिन पार्टी के जानकर नेताओं के अनुसार नीतीश के हरियाणा न जाने के पीछे जो सच्चाई है वह ललन सिंह के बताए कारणों से कहीं अलग है. उनके अनुसार नीतीश को जब ओमप्रकाश चौटाला के हवाले से इस सम्मेलन के जरिए तीसरे मोर्चा के गठन के बारे में खबर मिली तो उन्हें बीजेपी नेतृत्व की नाराजगी का अंदाजा और आभास हो गया. नीतीश को लगा था कि इस सम्मेलन में अधिक से अधिक अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, जिनके देवी लाल से काफी नजदीकी सम्बंध रहे, और टीडीपी के चंद्र बाबू नायडू के आने की खबर थी. लेकिन जैसे ही उन्होंने ममता बनर्जी और अन्य नेताओं के नाम देखे और तीसरे मोर्चा के सम्बंध में छपी खबर देखी तो वे असहज हो गए. उन्हें लग गया कि चौटाला इस सम्मेलन के माध्यम से राज्य और और देश में अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता साबित करना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने अपनी असमर्थता की सूचना केसी त्यागी के माध्यम से दे दी.
वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि इस बार नीतीश कुमार कहीं भी गठबंधन की लक्ष्मण रेखा लांघने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि उनके तीस विधायकों की संख्या भाजपा की तुलना में कम है. दूसरी बात नीतीश कुमार जब एनडीए के सदस्य हैं तो किसी दूसरे या तीसरे मोर्चा के राजनीतिक कार्यक्रम में तब तक शामिल नहीं हो सकते हैं जब तक कि वे एनडीए से अलग हटने का मन ना बना लें.
फिलहाल जनता दल यूनाईटेड के नेता भी मानते हैं कि नीतीश भाजपा को नाराज करने की स्थिति में नहीं हैं.