सम्राट चौधरी, संतोष मांझी, रमा निषाद...नीतीश की नई कैबिनेट के 7 चेहरे और उनके सियासी परिवार की कहानी

Nitish Kumar Cabinet: नीतीश कुमार ने गुरुवार को 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनके साथ 26 मंत्रियों ने भी शपथ ली. नीतीश कैबिनेट में 7 ऐसे नेता हैं, जिनका परिवार लंबे समय से बिहार की राजनीति में सक्रिय रहे हैं. आइए जानते हैं इन सातों मंत्रियों और उनके परिवार के बारे में.

विज्ञापन
Read Time: 8 mins
बिहार में नीतीश कैबिनेट के वो 7 नेता, जिनके परिवार लंबे समय में राजनीति में सक्रिय रहा है.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • नीतीश कुमार ने बिहार में दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 26 मंत्रियों के साथ नई सरकार बनाई.
  • कैबिनेट में 7 ऐसे नेता शामिल हैं जिनके परिवार की राजनीतिक विरासत बिहार में लंबे समय से स्थापित है.
  • सम्राट चौधरी, नितिन नवीन, श्रेयसी सिंह जैसे नेता अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
पटना:

Nitish Kumar Cabinet: बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हो चुका है. नीतीश कुमार रिकॉर्ड 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. उनके साथ 26 लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली. नीतीश कैबिनेट में ज्यादातर पुराने चेहरों को रिपीट किया गया है. लेकिन कुछ नए चेहरे भी हैं. नीतीश यूं तो खुद राजनीति में परिवारवाद की भरसक आलोचना करते हैं, लेकिन उनकी कैबिनेट परिवारवाद से दूर रहकर नहीं बन सकी. नीतीश कैबिनेट में 7 ऐसे नेता मंत्री बने हैं, जिनके परिवार का बड़ा सियासी ररुख रहा है. आइए जानते हैं नीतीश कैबिनेट में परिवारवाद को बढ़ाने वाले कौन हैं वो 7 नेता... 

1. सम्राट चौधरी: पिता शकुनी चौधरी की विरासत को बढ़ा रहे

बिहार की राजनीति में सम्राट चौधरी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं. वह उन नेताओं में गिने जाते हैं, जिन्होंने अपने परिवार की विरासत को न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि राजनीति के हर मोड़ पर उसे एक नई दिशा भी दी. सम्राट चौधरी की कहानी किसी साधारण उम्मीदवार की कहानी नहीं है. यह एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसने तीन दशकों से भी अधिक समय तक बिहार की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी. 

उनके पिता शकुनी चौधरी सात बार विधायक और सांसद रहे. उनकी माँ पार्वती देवी भी तारापुर से विधायक रहीं. ऐसे माहौल में पला-बढ़ा बेटा भला राजनीति से कितना दूर रह सकता था? सम्राट का राजनीतिक सफर 1999 से शुरू हुआ और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

RJD से लेकर JDU और फिर BJP तक, उनके सफर में दल बदल भी हुआ और संघर्ष भी, लेकिन एक बात समान रही,परिवार की पुरानी राजनीतिक मिट्टी, जिसने उनकी राह हमेशा थोड़ी आसान बनाई. आज बिहार के उपमुख्यमंत्री के रूप में उनका कद उस राजनीतिक विरासत का सबसे बड़ा प्रमाण है.

2. नितिन नवीन: पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा थे भाजपा के कद्दावर नेता

पटना का नाम लेते ही उस शहर की राजनीतिक हलचल याद आती है, जहाँ हर गली में लोग चुनावी चर्चा करते मिल जाते हैं. इसी शहर की एक सीट पटना पश्चिम ने एक युवा नेता को जन्म दिया, जो आगे चलकर बिहार के सबसे लोकप्रिय चेहरों में शामिल हो गया. नितिन नवीन की कहानी बहुत मानवीय है. पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा भाजपा के मजबूत नेता थे. उनके निधन के बाद जब उपचुनाव हुआ, तब जनता ने उसी परिवार के बेटे पर भरोसा जताया. 

यही वह क्षण था जहाँ नितिन नवीन की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. उसके बाद जो हुआ, वह बिहार की राजनीति का एक चमकता हुआ अध्याय बन गया. बांकीपुर सीट से वह लगातार चार बार जीतते रहे. सड़क निर्माण मंत्री के रूप में उनकी पहचान एक युवा, ऊर्जावान और काम करने वाले नेता की बनी. 

Advertisement

लेकिन यह भी उतना ही सच है कि राजनीति के इस लंबे सफर में उनका पहला कदम विरासत की ताकत से उठाया गया था, जहाँ पिता की पहचान ने बेटे को राजनीति की भीड़ में अलग खड़ा कर दिया.

3. श्रेयसी सिंह: राज परिवार से ताल्लुक, पिता दिग्विजिय की विरासत बढ़ाएंगी शूटर बेटी

श्रेयसी सिंह की कहानी बिहार के किसी भी युवा के लिए प्रेरणा की कहानी हो सकती है. एक ऐसी लड़की, जिसने अपनी उपलब्धियों से देश के लिए स्वर्ण पदक जीता और फिर राजनीति में कदम रखकर नई पहचान बनाई. लेकिन श्रेयसी की राजनीतिक कहानी सिर्फ उनकी मेहनत की नहीं है, यह उस परिवार की भी कहानी है, जिसकी जड़ें वर्षों तक बिहार की सत्ता में स्थापित रहीं. श्रेयसी सिंह गिद्धौर राजपरिवार से ताल्लुक रखती हैं. 

Advertisement

उनके पिता दिग्विजय सिंह अपने समय से बड़े केंद्रीय नेता थे. दिग्विजय सिंह केंद्रीय मंत्री भी रहे, सांसद भी रहे. दिग्विजय सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेहद करीबी थी. दिग्विजय के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को कुछ दिनों तक उनकी पत्नी पुतुल कुमारी ने आगे बढ़ाया. पुतुल कुमारी भी सांसद रहीं.

अब दिग्विजय सिंह की सियासी विरासत को उनकी शूटर बेटी श्रेयसी सिंह आगे बढ़ा रही है. यह पृष्ठभूमि श्रेयसी को राजनीति में आने के पहले ही दिन एक स्थापित पहचान दे चुकी थी. जमुई जैसी मुश्किल सीट पर भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और जनता ने उन्हें स्वीकार किया. यह स्वीकार्यता सिर्फ श्रेयसी की चमक की वजह से नहीं थी, बल्कि उनके परिवार की वर्षों पुरानी जड़ों की वजह से भी थी.

Advertisement

4. अशोक चौधरी: पिता महावीर चौधरी कांग्रेस में थे कद्दावर नेता

अशोक चौधरी की कहानी बिहार की राजनीति के उन पन्नों में दर्ज है, जहाँ परिवारवाद साफ नजर आता है लेकिन उसी के साथ व्यक्तिगत संघर्ष भी उतना ही दिखाई देता है. बीसवीं सदी की शुरुआत में बरबीघा सीट से उनके पिता महावीर चौधरी विधायक रहे. राजनीति का यह माहौल अशोक चौधरी के बचपन से ही एक परिचित दुनिया बना रहा. 

साल 2000 में जब उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़कर विजय प्राप्त की, तो लोग यह कहे बिना नहीं रह सके कि पिता की पहचान ने बेटे को पहली राह दिखा दी. लेकिन इसके बाद उनकी यात्रा बिल्कुल अलग मोड़ लेती है, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने, फिर पार्टी छोड़ी, फिर JDU में आए और आज बिहार के मंत्री हैं. 

Advertisement

यह कहानी यह भी बताती है कि परिवारवाद किसी को शुरआत तो दे सकता है, लेकिन राजनीति में टिकना अपने दम पर ही होता है. फिर भी यह सवाल कायम रहता है कि क्या उनकी पहली जीत इतनी आसान होती, अगर उनका परिवार राजनीति की जमीन पर पहले से खड़ा न होता?


5. रमा निषाद: कैप्टन जयनारायण निषाद की सियासी विरासत

रमा निषाद की यात्रा उस बिहार की कहानी है, जहाँ समुदाय की पहचान राजनीति में बहुत बड़ा आधार बन जाती है. निषाद/मल्लाह समुदाय बिहार की राजनीति में एक प्रभावी वोट बैंक माना जाता है. रमा निषाद ने औराई सीट से चुनाव जीता, लेकिन इस जीत के पीछे सिर्फ उनका नाम नहीं था. उनके पति अजय निषाद पहले से ही एक स्थापित सांसद थे, जो मुजफ्फरपुर क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं. 

रमा निषाद के ससुर कैप्टन जयनारायण निषाद मुजफ्फपुर से लोकसभा सांसद हुआ करते थे. जब कैप्टन जयनारायण निषाद राजनीति से दूर हुए तो उनकी जगह उनके बेटे अजय निषाद ने ली. अब उनकी पत्नी औराई से विधायक बनने के बाद मंत्री बन चुकी है. 

जब रमा ने राजनीति में कदम रखा, तो जनता के लिए यह परिवार कोई नया नहीं था. यह भरोसा पहले से बना हुआ था. इसलिए जब वह बतौर उम्मीदवार लोगों के सामने आईं, तो लोगों ने उन्हें उस परिवार की प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया जिसे वे वर्षों से जानते आ रहे थे. उनकी यात्रा यह दिखाती है कि कैसे परिवार और समुदाय का मेल राजनीति में एक मजबूत आधार बनाकर देता है.


6. संतोष कुमार सुमन: पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की राजनीतिक विरासत

अगर बिहार में परिवारवाद का सबसे साफ उदाहरण ढूँढना हो, तो वह संतोष कुमार सुमन की कहानी हो सकती है. वह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र हैं. जीतन राम मांझी अभी केंद्रीय मंत्री हैं. राजनीति में उनकी पहली एंट्री भी परिवार की विरासत के सहारे हुई, विधान परिषद भेजे गए, फिर मंत्री बनाए गए, और धीरे-धीरे उन्हें पार्टी की पूरी कमान सौंप दी गई.

यह कहानी उस सच्चाई को दर्शाती है, जिसमें राजनीतिक पार्टियां परिवार के भीतर ही नेतृत्व को आगे बढ़ाती हैं. संतोष सुमन शिक्षित हैं, विनम्र हैं, और काम भी कर रहे हैं, लेकिन यह उतना ही सच है कि अगर वह किसी सामान्य परिवार से आते, तो राजनीति में इतनी तेजी से इतनी ऊँची जगह शायद न मिल पाती.

7. दीपक प्रकाश: सबसे चौंकाने वाला नाम, पिता उपेंद्र कुशवाहा की सियासी विरासत की नई पीढ़ी

नीतीश कैबिनेट में मंत्री पद की शपथ लेने वालों में दीपक प्रकाश का नाम सबसे चौंकाने वाला है. दीपक प्रकाश मंत्री बनेंगे इसकी बहुत कम चर्चा थी. चर्चा उनकी मां स्नेहलता कुशवाहा के मंत्री बनने की थी. लेकिन बिना चुनाव लड़े दीपक प्रकाश बिहार में मुख्यमंत्री बने. बिहार की नई राजनीति में जब अचानक दीपक प्रकाश का नाम बड़े पदों पर सामने आया.

कई लोगों ने सवाल उठाया कि यह तेजी से उभार कैसे मिला? इसका जवाब उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में छिपा है. दीपक प्रकाश, उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र हैं, जो वर्षों से बिहार की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे हैं. उनकी मां भी विधायक रहीं. जब परिवार में दोनों ही माता-पिता राजनीति में हों, तो बच्चे के लिए राजनीति कोई नई दुनिया नहीं रह जाती.

इसलिए जब उन्हें बिना चुनाव लड़े मंत्री बना दिया गया, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि यह पद उनकी क्षमता की वजह से अधिक मिला या उनकी विरासत की वजह से. बिहार की राजनीति में यह उदाहरण बार-बार देखने को मिलता है कि जब परिवार पहले से सत्ता में हो, तो अगली पीढ़ी को आगे आने के अवसर अधिक सहजता से मिलते हैं.

यह भी पढ़ें - ‘टीम 10.0' फाइनल: नीतीश के साथ 26 मंत्रियों ने ली शपथ, गांधी मैदान से NDA का शक्ति प्रदर्शन

Featured Video Of The Day
Nitish Oath Ceremony: बिहार की जनता ने बताया NDTV को सबसे बेस्ट | Bihar Elections Result