Mahua Seat Result LIVE : महुआ सीट का रिजल्‍ट, तेज प्रताप फिर पीछे, संजय सिंह आगे, जानें पल-पल का अपडेट

Mahua Assembly Seat Result: महुआ का यह चुनाव बिहार की राजनीति का प्रतिबिंब है, जहां गठबंधन से ऊपर उठकर स्थानीय असंतोष और व्यक्तिगत संघर्ष ने केंद्र ले लिया है. डॉ. आसमा परवीन का विद्रोह यह दिखाता है कि महिलाएं अब सिर्फ पार्टी का चेहरा नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर राजनीति गढ़ने की हिम्मत रखती हैं.

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महुआ से जुड़ी तेज प्रताप यादव की कहानी
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  • बिहार की महुआ सीट पर इस बार तेज प्रताप यादव ने मुकाबला दिलचस्प बना दिया है और 71.05 प्रतिशत वोटिंग हुई है
  • तेज प्रताप यादव ने जनशक्ति जनता दल के नाम से नई राजनीतिक राह चुनी है और आरजेडी से छह साल के लिए निष्कासित हैं
  • महुआ सीट पर आरजेडी के मुकेश रौशन, जेडीयू की डॉ. आसमा परवीन और तेज प्रताप यादव के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है
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पटना:

Mahua Assembly Seat Result : महुआ विधानसभा सीट मतगणना के बीच स्थिति पल-पल बदलती नजर आ रही है. इस सीट पर मुकाबला दिलचस्‍प नजर आ रहा है. तेज प्रताप यादव यहां से आगे हो गए हैं. बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए काउंटिंग जारी है. महुआ विधानसभा सीट पर 71.05% के रूप में बंपर वोटिंग हुई है. ऐसे में अब इस सीट के परिणाम पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. महुआ सीट जहां कभी लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी, और जहां अब जेडीयू की बागी नेता डॉ. आसमा परवीन अपने ही दल के खिलाफ खुली चुनौती बनकर खड़ी हैं. चुनावी फिजा में यहां हर मोड़ पर सियासी नाटक ‍ देखने को मिल रहा है. एक तरफ आरजेडी के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन हैं, दूसरी तरफ तेज प्रताप की वापसी की गर्जना, और तीसरी तरफ एनडीए के गठबंधन प्रत्याशी जो टिकट बंटवारे के बाद से ही विवादों में हैं. नतीजा यह है कि महुआ इस बार सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा और दशा का पैमाना बन गया है.

पल-पल बदल रही स्थिति, तेज प्रताप को मिल रही कड़ी टक्‍कर  

महुआ विधानसभा सीट पर कांटे की टक्‍कर देखने को मिल रही है. यहां कभी तेज प्रताप सिंह, तो कभी मुकेश रौशन आगे हो रहे हैं. फिलहाल महुआ सीट से एलजेपी (आर) के उम्‍मीदवार संजय सिंह आगे चल रहे हैं. तेज प्रताप और लखिन्‍द्र पासवान पिछड़ गए हैं. इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है. ऐसे में यहां परिणाम जनता को हैरान करने वाले आ सकते हैं. दअसल, महुआ सीट पर मौजूदा विधायक आरजेडी के मुकेश रौशन हैं, लेकिन तेज प्रताप यादव ने यहां यकीनन आरजेडी को कमजोर किया है. ऐसे में इस सीट पर वोटर्स बंटे हैं, जो मतगणना में नजर भी आ रहा है.

महुआ से जुड़ी तेज प्रताप यादव की कहानी

महुआ का नाम आते ही तेज प्रताप यादव की कहानी अपने आप खुल जाती है. वह नेता जिनकी सियासी यात्रा कभी इसी जमीन से शुरू हुई थी. तेज प्रताप अब न सिर्फ अपने परिवार की पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित हैं, बल्कि अपने ‘जनशक्ति जनता दल' के नाम से एक नई सियासी राह पर चल निकले हैं. इसके बीच आरजेडी के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन के लिए यह चुनाव सबसे कठिन परीक्षा साबित रहा. 2020 में उन्होंने आसमा परवीन को लगभग 13,700 वोटों के अंतर से हराया था, लेकिन इस बार समीकरण पहले जैसे नहीं हैं. तेज प्रताप और आसमा परवीन के अलग-अलग मोर्चे से मैदान में उतरने से यादव और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण टूट सकता है. वहीं, एनडीए की अंदरूनी असहमति भी गठबंधन के लिए सिरदर्द बन गई है. महुआ के स्थानीय मतदाता भी इस बार चुपचाप देख रहे हैं कि किसने उनके लिए सच में कुछ किया और किसने सिर्फ भाषण दिए.

त्रिकोणीय हुआ मुकाबला 

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो महुआ इस बार तीन कोणों वाला रणक्षेत्र है. आरजेडी के परंपरागत वोट बैंक की परीक्षा, जेडीयू की अनुशासन व्यवस्था पर सवाल, और तेज प्रताप के व्यक्तिगत पुनरुद्धार की कोशिश. पटना विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अशोक मिश्रा कहते हैं, 'अगर महुआ में कोई बड़ा उलटफेर हुआ, तो यह बिहार की राजनीति के लिए एक निर्णायक संकेत होगा कि गठबंधन से ज्यादा असर स्थानीय असंतोष और व्यक्तिगत करिश्मे का है.' और यही कारण है कि अब खुद तेजस्वी यादव को मैदान में उतरना पड़ रहा है. 

महुआ चुनाव बिहार की राजनीति का प्रतिबिंब

महुआ का यह चुनाव बिहार की राजनीति का प्रतिबिंब है, जहां गठबंधन से ऊपर उठकर स्थानीय असंतोष और व्यक्तिगत संघर्ष ने केंद्र ले लिया है. डॉ. आसमा परवीन का विद्रोह यह दिखाता है कि महिलाएं अब सिर्फ पार्टी का चेहरा नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर राजनीति गढ़ने की हिम्मत रखती हैं. तेज प्रताप की वापसी यह साबित करने की कोशिश है कि राजनीतिक परिवारों में भी असहमति एक नया अध्याय लिख सकती है. और आरजेडी, जेडीयू, एनडीए सबके लिए यह सीट एक चेतावनी है कि जनता अब सिर्फ प्रतीक नहीं, निर्णायक है. महुआ की मिट्टी इस बार तय करेगी कि बिहार की राजनीति में किसकी आवाज़ सुनी जाएगी वफादारी की, विद्रोह की, या उस जनता की जो हर पांच साल बाद अपने सपनों को फिर से मतदान की स्याही में डुबोती है.

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