राजस्थान से भी बदतर हालात! बिहार के इस गांव में पानी के लिए रोज 10 चक्कर, महिलाएं सबसे ज्यादा परेशान

पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड का अवरहिया गांव, जो वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व से सटा हुआ है, आज भी पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संघर्ष कर रहा है.

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राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पानी की किल्लत की कहानियां आपने अक्सर सुनी होंगी. जहां महिलाएं और बच्चे रोज मीलों पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर होते हैं. लेकिन हैरानी की बात यह है कि ठीक वैसी ही तस्वीर अब बिहार में भी देखने को मिल रही है. पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड का अवरहिया गांव, जो वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व से सटा हुआ है, आज भी पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संघर्ष कर रहा है.

करीब 80 घरों और लगभग 500 की आबादी वाले इस गांव में एक भी चापाकल या सरकारी जलस्रोत मौजूद नहीं है. गांव के लोगों के लिए पानी केवल जरूरत नहीं, बल्कि रोज की सबसे बड़ी लड़ाई बन चुका है. ग्रामीणों को हर दिन गांव से लगभग दो किलोमीटर नीचे नदी किनारे जाना पड़ता है, जहां मौजूद एकमात्र हैंडपंप ही पूरे गांव की जीवनरेखा है.

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'रोज लगाने पड़ते हैं चक्कर'

स्थानीय निवासी शंकर उरांव बताते हैं कि पानी जुटाने के लिए उन्हें रोज कम से कम 10 चक्कर लगाने पड़ते हैं. वे अपनी साइकिल पर 20 लीटर के गैलन बांधकर नदी किनारे पहुंचते हैं, हैंडपंप से पानी भरते हैं और फिर घर लौटते हैं. शंकर कहते हैं, यह कोई शौक नहीं मजबूरी है. पानी के बिना ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

महिलाओं के लिए और भी मुश्किल

गांव की महिलाओं के लिए हालात और भी कठिन हैं. अधिकांश पुरुष रोज़गार के लिए बाहर दिहाड़ी मजदूरी करने चले जाते हैं, ऐसे में घर की पूरी जल व्यवस्था महिलाओं के कंधों पर आ जाती है. महिलाएं सूरज उगने से पहले ही नदी किनारे पहुंच जाती हैं. नहाने और अन्य जरूरी कामों के बाद वे 20 लीटर पानी से भरे गैलन को सिर पर उठाकर वापस गांव लौटती हैं. यह सिलसिला सुबह से लेकर शाम ढलने तक चलता रहता है.

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स्थानीय लोगों के लिए चुनौती

ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से चापाकल और नल-जल योजना की मांग की. लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला. इस मामले पर प्रशासन का कहना है कि अवरहिया गांव विस्थापित परिवारों का क्षेत्र है और वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व से सटा होने के कारण किसी भी विकास कार्य के लिए वन विभाग की अनुमति आवश्यक होती है. अधिकारियों के अनुसार, पहले पुनर्वास का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे ग्रामीणों ने स्वीकार नहीं किया.

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए भी लोगों को सालों इंतजार करना पड़ेगा? जब सरकार जल जीवन मिशन के तहत हर गांव तक नल-जल पहुंचाने का दावा कर रही है, तो फिर अवरहिया गांव आज भी पानी के लिए तरस क्यों रहा है?

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अब देखना होगा कि प्रशासन इस समस्या को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या इस गांव के लोग पानी के लिए रोज़ 10 चक्कर लगाने की मजबूरी से कभी मुक्त हो पाएंगे या नहीं.

(रिपोर्ट - बिंदेश्वर कुमार)

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