- बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में डायन होने के संदेह में एक परिवार के पांच सदस्यों को भीड़ ने जिंदा जला दिया और शव जलाशय में छिपा दिए.
- इस घटना में परिवार का 15 वर्षीय सोनू बच गया, जिसने पुलिस को घटना की आंखों देखी जानकारी देकर आरोपियों की पहचान कराई.
- मृतकों में परिवार के मुखिया बाबू लाल उरांव, उनकी पत्नी, मां, बेटा और बहू शामिल थे, जिन पर जादू-टोना का आरोप लगाया गया था.
बिहार के पूर्णिया में अशिक्षा, अंधविश्वास और सामाजिक कुंठाओं के अंधेरे में डूबी भीड़ ने रिश्तों, मानवता और कानून सब कुछ रौंद दिया. टेटगामा गांव में डायन होने के संदेह में एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया और उनके शवों को एक जलाशय में जलकुंभी के नीचे छिपा दिया गया. इस दिल दहला देने वाले नरसंहार में परिवार का एकमात्र जीवित बचा सदस्य, 15 वर्षीय सोनू, किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में सफल रहा. रविवार को सोनू ने घटना की आंखों देखी जानकारी पुलिस को दी, जिसके बाद पुलिस हरकत में आई.
सोनू
'अगर मैं नहीं भागता तो...'
चश्मदीद सोनू ने बताया कि आरोपी नकुल को वह पहचानता है. मैंने रोकने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने मुझे भी मारा. मैंने अपने परिवार के सदस्यों को जलाते हुए देखा, जिनमें उसकी दादी, पापा, माता, भाभी और भैया शामिल थे. फिर भागकर अपनी चाची के पास गया और फिर पुलिस के पास गया. अगर मैं नहीं भागता, तो मेरी भी जान जा सकती थी.
मृतकों में परिवार का मुखिया बाबू लाल उरांव (40), पत्नी सीता देवी (35),बूढ़ी मां सातो देवी (65) ,बेटा मंजीत (25)और उसकी पत्नी रानी देवी(20)शामिल है. मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. घटना के बाद से गांव के सभी लोग फरार हैं और गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है.
जादू-टोना और अंधविश्वास का 'खेल'
टेटगामा गांव में उरांव जनजाति के करीब 50 परिवार निवास करते हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 300 है. इस गांव में अन्य जातियों के लोग भी रहते हैं. लेकिन उरांव समुदाय के लोग अधिकतर एक-दूसरे के पास रहते हैं. करीब दस दिन पहले रामदेव उरांव के एक बेटे की बीमारी के कारण मौत हो गई थी. उसके बाद दूसरा बेटा भी बीमार पड़ गया. इसी क्रम में रामदेव को संदेह हुआ कि उसके बेटे की मौत और दूसरे बेटे की बीमारी के पीछे किसी 'डायन' का हाथ है. संदेह की सुई बाबूलाल की मां सातो देवी और उसकी पत्नी सीता देवी पर गई. रामदेव ने इन्हें जादू-टोना करने वाली महिलाएं यानी 'डायन' घोषित कर दिया. गांववालों ने भी अंधविश्वास के चलते उनकी बात मान ली.
टेटगामा गांव सन्नाटा और पशुओं को चारा का इंतजार
रजीगंज पंचायत का टेटगामा आदिवासी टोला, यहां 50 घर हैं. लेकिन आज बंद पड़े हुए हैं. पूरे गांव में सन्नाटा है. आसपास के टोले के लोग भी कुछ बताने से परहेज कर रहे हैं. हत्याकांड के बाद पालतू पशुओं पर तो मानो आफत ही आ गई है. चारा की नाद खाली पड़ी थी और उन्हें अपने मालिक का इंतजार था. सुबह के करीब 09 बजे डोमी उरांव और कुम्मी देवी ने गांव में प्रवेश किया. डोमी बाबूलाल के रिश्ते में साला और कुम्मी साली लगती है, जो दोनों पास के गांव में रहते हैं. बताया कि उन्हें देर से खबर मिली तो आए हैं. कुम्मी डायन के आरोप को खारिज करती हुई कहती हैं, ' कुछ लोगों को इस बात की भी ईर्ष्या होती है कि आप अच्छे से अपना जीवन बसर कर रहे हैं. ऐसे में डायन कहकर प्रताड़ित करना आम बात है.'
पंचायत ने खौफनाक फैसला लिया
दबी जुबान से लोग चर्चा कर रहे थे कि वारदात से पहले गांव में नकुल उरांव के नेतृत्व में ही पंचायत बैठी थी, जहां सामूहिक हत्या का निर्णय लिया गया. पंचायत का आग्रह रामदेव उरांव ने किया था, जिसका एक बेटा हाल में ही बीमारी से मर गया था और दूसरा बीमार था. चर्चा तो यह भी है कि पंचायत में बाबूलाल की पत्नी सीता देवी(50) और मां कातो देवी(70) को भी डायन के आरोप पर सफाई देने के लिए बुलाया गया था. लेकिन बाबूलाल ने भेजने से मना कर दिया. इसके बात पंचायत ने खौफनाक फैसला लिया और देर रात लगभग 11 बजे भीड़ ने नकुल उरांव और रामदेव उरांव के नेतृत्व में बाबूलाल के घर पर हमला बोल दिया.
रजीगंज के इस आदिवासी टोला में अधिकारियों का आना जाना लगातार जारी है. इसी पंचायत के निवासी कुसुमलाल उरांव कहते हैं 'बीडीओ और सीओ का चेहरा पहली बार देखे हैं. इन्हें आम लोगों की न चिंता है और न ही परवाह होती है.' दिन के लगभग 10.45 बज रहे थे, प्रमंडलीय आयुक्त राजेश कुमार और एसडीएम पार्थ गुप्ता भारी-भरकम अमले के साथ गांव पहुंचे. वहां उन्होंने कनीय अधिकारियों को फटकार लगाते कहा कि 'जब हत्या के लिए पंचायत हो रही थी तो आपलोग कहां थे.' आयुक्त कहते हैं, 'सभी दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी. तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई है. इस कांड में जिन अधिकारियों की लापरवाही उजागर होगी, उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी.'
टेटगामा गांव की यह घटना इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई है, जो यह बताती है कि जब अंधविश्वास हावी हो जाता है, तो इंसानियत दम तोड़ देती है. डायन प्रथा जैसे अमानवीय अंधविश्वास पर कानून के साथ-साथ समाज को भी सख्ती से चोट करनी होगी.