- मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा में संध्या पाठशाला शुरू की गई है, जिससे 700 बंदियों को शिक्षा से जोड़ा जा रहा है.
- बंदियों को पढ़ना-लिखना, सामान्य ज्ञान, सामाजिक व्यवहार और जीवन कौशल जैसे विषयों की शिक्षा दी जा रही है
- जिलाधिकारी ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे बंदियों के समाजिक पुनर्वास के लिए महत्वपूर्ण बताया है.
बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में वर्षों से बंद करीब 700 सजायाफ्ता बंदी अब शिक्षा की नई रोशनी से जुड़ रहे हैं. अलग-अलग मामलों में न्यायालय द्वारा सजा पाए ये बंदी लंबे समय से जेल की चारदीवारी में बंद हैं, जिससे वे समाज की मुख्यधारा से कट चुके हैं. लेकिन अब जेल प्रशासन ने इन बंदियों को फिर से समाज से जोड़ने और उनके जीवन को सकारात्मक दिशा देने के लिए एक सराहनीय कदम उठाया है.
जेल प्रशासन द्वारा ‘संध्या पाठशाला' की शुरुआत की गई है, जिसका उद्देश्य है उन बंदियों को शिक्षा से जोड़ना जो वर्षों से जेल में रहकर शिक्षा से वंचित हो गए हैं. यह पहल न केवल उनके मानसिक विकास में सहायक होगी, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिक बनने की दिशा में भी प्रेरित करेगी.
संध्या पाठशाला के माध्यम से बंदियों को बुनियादी शिक्षा दी जा रही है, जिसमें पढ़ना-लिखना, सामान्य ज्ञान, सामाजिक व्यवहार और जीवन कौशल जैसे विषय शामिल हैं. यह शिक्षा उन्हें जेल से बाहर निकलने के बाद समाज में पुनः स्थापित होने में मदद करेगी. शिक्षा के माध्यम से बंदियों में आत्मविश्वास का संचार हो रहा है और वे अपने भविष्य को लेकर आशान्वित हो रहे हैं.
]इस पहल को लेकर मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने भी सराहना की है. उन्होंने कहा कि यह एक अत्यंत प्रशंसनीय प्रयास है, जिससे बंदियों को समाज की मुख्यधारा में लौटने में मदद मिलेगी. उन्होंने यह भी बताया कि संध्या पाठशाला के माध्यम से बंदियों को शिक्षा का ऐसा वातावरण दिया जा रहा है, जिससे वे जेल से बाहर निकलने के बाद किसी प्रकार की सामाजिक कठिनाई का सामना न करें.
जेल प्रशासन का यह प्रयास न केवल सुधारात्मक है, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह पहल यह दर्शाती है कि सजा केवल दंड नहीं, बल्कि सुधार का अवसर भी हो सकती है. शिक्षा के माध्यम से बंदियों को एक नई दिशा देना उन्हें समाज के लिए उपयोगी और जिम्मेदार नागरिक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा में शुरू हुई यह संध्या पाठशाला अन्य जेलों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकती है. यदि इस मॉडल को अन्य स्थानों पर भी अपनाया जाए, तो यह देशभर में बंदियों के पुनर्वास और समाज में उनकी सकारात्मक भागीदारी को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा सकता है.