- धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का प्रभारी बनाकर भाजपा ने उनकी रणनीतिक नेतृत्व क्षमता को चुनावी सफलता में बदला
- प्रधान की ओबीसी सामाजिक पृष्ठभूमि ने भाजपा-जदयू गठबंधन के जातीय समीकरण को बिहार में मजबूत किया है
- धर्मेंद्र प्रधान ने देश के कई राज्यों में चुनावी जीत की रणनीति तैयार कर भाजपा को सफल बनाया है
बिहार की जनता ने जैसे ही NDA को प्रचंड बहुमत दिया, एक नाम लगातार चर्चा में आने लगा—धर्मेंद्र प्रधान. शोर-शराबे से दूर, लेकिन रणनीति के केंद्र में मौजूद यह नेता भाजपा के भीतर एक भरोसेमंद संगठनकर्ता के रूप में जाने जाते हैं. कई राज्यों में चुनाव जीत का ‘मास्टरस्ट्रोक' साबित हो चुके प्रधान ने इस बार बिहार में भी अपनी छाप छोड़ी है.
बिहार से पुराना रिश्ता
धर्मेंद्र प्रधान का बिहार से रिश्ता आज का नहीं है. साल 2012 में उन्हें बिहार से राज्यसभा भेजा गया था, तभी से उनकी जड़ें इस राज्य की राजनीति और संगठन में मजबूत होती चली गईं. भाजपा के भीतर कई अहम जिम्मेदारियां संभालते हुए उन्होंने बिहार में पार्टी की पकड़ को गहरा किया. संगठन को खड़ा करने और उसे दिशा देने में उनकी भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है.
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NDA की ‘बहार' में छिपा एक शांत चेहरा
बिहार में मोदी–नीतीश की जोड़ी भले चर्चा के केंद्र में रही हो, लेकिन इस चुनाव में एक नाम रुझानों के बीच तेजी से उभरकर सामने आया धर्मेंद्र प्रधान. सितंबर में उन्हें बिहार का प्रभारी बनाया गया था. इसके बाद डेढ़ महीने की उनकी मेहनत, लगातार बैठकें, जमीनी फीडबैक और कैडर मैनेजमेंट ने भाजपा के ग्राफ में नई ऊर्जा भरी. आज के रुझान यह संकेत दे रहे हैं कि उनकी रणनीति जमीन पर असर छोड़ चुकी है.
ओबीसी समीकरण में नई मजबूती
धर्मेंद्र प्रधान ओबीसी समुदाय से आते हैं, वही वर्ग जो दशकों से नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक रहा है. ऐसे में प्रधान की सामाजिक पृष्ठभूमि ने भाजपा–जदयू के तालमेल को और मजबूत बनाया. पार्टी का मानना है कि उनके सामाजिक जुड़ाव और संगठनात्मक समझ ने NDA की जातीय-सामाजिक पहुंच को व्यापक किया, जिसका सीधा लाभ चुनावी मैदान में दिख रहा है.
हर राज्य में जीत का रिकॉर्ड
धर्मेंद्र प्रधान का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड भाजपा की अंदरूनी राजनीति में अलग पहचान रखता है. उनके कामकाज का दायरा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा। देशभर में कई बड़े चुनावों में उनकी रणनीति निर्णायक रही है:
- ओडिशा 2024: बीजेडी को पहली बार हटाकर भाजपा सरकार बनी—प्रधान इस पूरी रणनीति के केंद्र में थे
- हरियाणा 2024: चुनौतियों के बावजूद भाजपा की सत्ता में वापसी—संगठन और आखिरी हफ्तों की योजना उनकी देन
- पश्चिम बंगाल 2021: सिर्फ नंदीग्राम की जिम्मेदारी दी गई थी, जहां से ममता बनर्जी चुनाव हारीं
- उत्तराखंड 2017 और यूपी 2022: दोनों जगह भाजपा की मजबूत वापसी में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है
- यह सिलसिला उन्हें भाजपा का ‘इलेक्शन मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट' बनाता है
क्यों माने जाते हैं जीत की गारंटी?
धर्मेंद्र प्रधान का स्टाइल अनोखा है ना ज्यादा बयान, ना ज्यादा प्रचार. वे जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच रहकर काम करने में विश्वास रखते हैं, उनकी प्राथमिकता हमेशा स्थानीय नेताओं से सीधे संवाद, बूथ-स्तर की संरचना को मजबूत करना और हर सीट का माइक्रो-मैनेजमेंट रहती है. उनके शांत स्वभाव और संतुलित रणनीति की वजह से ही भाजपा नेतृत्व उन्हें कई राज्यों में ‘जीत का जादूगर' मानता है.
बिहार में उनकी रणनीति का असर
आज के नतीजे एक संदेश दे रहे हैं, धर्मेंद्र प्रधान की रणनीति बिहार में असर दिखा रही है. चुनावों की घोषणा के बाद से लेकर उम्मीदवार चयन, सामाजिक समीकरण और बूथ-स्तर प्रबंधन तक उन्होंने हर पहलू पर अपनी छाप छोड़ी. NDA के भीतर उन्हें एक ऐसी शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जो संगठन और चुनाव दोनों में जीत सुनिश्चित कराती है. बिहार का यह जनादेश सिर्फ NDA की जीत नहीं, बल्कि उस शांत लेकिन प्रभावी रणनीतिकार की भी जीत है, जिसने अपनी शैली से चुनाव को नई दिशा दी.














