बिहार के गयाजी में दिखा अद्भुत नजारा, रूस-यूक्रेन के श्रद्धालु एक साथ कर रहे पिंडदान

पितरों के उद्धार और श्राद्ध कर्म के लिए देशभर में कई तीर्थस्थल हैं, लेकिन बिहार का गयाजी हमेशा से ही मोक्षस्थली के रूप में पूजनीय रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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  • रूस और यूक्रेन के युद्धरत देशों के श्रद्धालु पितृपक्ष मेले में एक साथ बैठकर पिंडदान करते नजर आए
  • देवघाट के फल्गु नदी तट पर विदेशी श्रद्धालुओं ने विधि-विधान से पिंडदान और तर्पण किया
  • गयाजी में करीब 25.19 लाख श्रद्धालु अब तक अपने पितरों का श्राद्ध कर चुके हैं
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पटना:

विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में इस बार अद्भुत दृश्य देखने को मिला, जब रूस और यूक्रेन जैसे युद्धरत देशों के श्रद्धालु एक साथ बैठकर पितरों की आत्मशांति के लिए पिंडदान करते दिखे. गुरुवार को फल्गु नदी तट स्थित देवघाट पर रूस, यूक्रेन, अमेरिका और स्पेन से आए कुल 17 विदेशी श्रद्धालुओं ने विधि-विधान से पिंडदान और तर्पण किया. गयापाल पंडा मनोज लाल टइयां के नेतृत्व में सम्पन्न इस अनुष्ठान में 3 पुरुष और 14 महिलाएं शामिल हुईं.

सभी विदेशी श्रद्धालु भारतीय परिधान में सजे-धजे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मंत्रोच्चार के बीच बैठकर पिंडदान करते दिखे. 

विदेशी श्रद्धालुओं ने बताया कि गयाजी का विष्णुपद मंदिर और पितृपक्ष मेला हिन्दू संस्कृति का जीवंत प्रतीक है, जहां आकर वे भारतीय परंपरा को आत्मसात कर पा रहे हैं.

विदेश से आई श्रद्धालु सियाना ने कहा कि गयाजी की आध्यात्मिक धरा और यहां की संस्कृति ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया है.

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करीब 25 लाख ने गयाजी में किया पितरों का श्राद्ध

उन्होंने इसे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव बताया. पितरों के प्रति प्रेम, श्रद्धा और आस्था ही इस पितृपक्ष की सबसे बड़ी पहचान है. 

जिला प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, अब तक करीब 25 लाख 19 हजार श्रद्धालु गयाजी पहुंचकर अपने पितरों का श्राद्ध कर चुके हैं. 

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इस दौरान देवघाट, अक्षयवट, रामशिला और प्रेतशिला वेदियों पर लगातार हजारों की संख्या में देश–विदेश से आए श्रद्धालु पिंडदान कर रहे हैं.

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मोक्षनगरी में आस्था का अनोखा संगम

युद्ध की विभीषिका के बीच भी रूस और यूक्रेन के नागरिकों का एक साथ बैठकर पिंडदान करना न सिर्फ अद्भुत दृश्य रहा, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी है कि आस्था और संस्कृति की ताकत सीमाओं और परिस्थितियों से ऊपर होती है. यह अनोखा संगम गयाजी की मोक्ष नगरी में पितरों के उद्धार की अनंत परंपरा को और भी जीवंत कर गया.

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