जाति, क्षेत्र, वोट बैंक... नीतीश के नए कैबिनेट गठन में इन 5 कारकों पर होगी सबकी नजर

बिहार में नीतीश कुमार का नया मंत्रिमंडल एक जटिल राजनीतिक और सामाजिक संतुलन का परिणाम होगा, जिसमें हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाया जाएगा.

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नीतीश कुमार 20 नवंबर को बिहार के मुख्यमंत्री पद की 10 वीं बार शपथ लेंगे.
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  • बिहार के नए मंत्रिमंडल में जातीय आबादी के अनुपात पर मंत्री बनाया जाएगा ताकि सामाजिक संतुलन बना रहे.
  • NDA के जीतने वाले विधायकों की जातीय संख्या के आधार पर भी मंत्रिमंडल का गठन होगा.
  • जिन सामाजिक समूहों ने चुनाव में NDA को समर्थन दिया है, उन्हें मंत्रिमंडल में विशेष स्थान दिया जा सकता है.
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नई दिल्ली:

बिहार में NDA की प्रचंड जीत के साथ ही अब सबकी निगाहें नीतीश कुमार के नए मंत्रिमंडल पर टिक गई हैं. नीतीश कुमार 20 नवंबर को 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. बिहार में मुख्यमंत्री को लेकर अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं. नीतीश की नई कैबिनेट में किस पार्टी से कौन-कौन और कितने विधायक शामिल होंगे. किस जाति, क्षेत्र और समुदाय के कितने विधायक होंगे यह देखने वाली बात होगी. इस बार बिहार में दो डिप्टी सीएम होंगे या यह नंबर बढ़ेगा? यह भी देखना वाली बात होगी. क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार इस बार डिप्टी सीएम पद के लिए चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) भी ताल ठोक रही है. साथ ही नीतीश के नए कैबिनेट गठन में यह बात भी देखने वाली होगी कि क्या मंत्रिमंडल का पूरा कोटा एक बार में ही भर दिया जाएगा या कुछ पद आगे के लिए खाली रखा जाएगा. 

सहयोगियों को साधना, जातीय समीकरण को संतुलित करना और भविष्य की राजनीतिक योजनाओं को ध्यान में रखते हुए मंत्रियों का चयन करना... इस बार मुख्यमंत्री के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. इस बार का कैबिनेट विस्तार केवल सरकार चलाने के लिए नहीं बल्कि दूरगामी राजनीतिक संदेश देने का भी एक माध्यम होगा.

बिहार में NDA कैबिनेट गठन के 5 प्रमुख कारक

1. जातीय आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी

बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से एक महत्वपूर्ण कारक रही है. सरकार में स्थायित्व और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मंत्रिमंडल में राज्य की जातीय आबादी का प्रतिबिंब दिखे. इसका मतलब है कि जिस जाति की जितनी हिस्सेदारी आबादी में है, उसे उसी अनुपात में कैबिनेट में जगह मिल सकती है. यह कदम सभी प्रमुख सामाजिक वर्गों को यह संदेश देगा कि सरकार में उनकी भागीदारी सुनिश्चित है.

इस हिसाब से मंत्रिमंडल में 11 फीसदी सवर्ण, 14 फीसदी यादव, 11 फीसदी गैर यादव ओबीसी, 25 फीसदी ईबीसी, 20 फीसदी दलित, एक फीसदी आदिवासी और 18 फीसदी मुस्लिम होना चाहिए. हालांकि एनडीए के पास सिर्फ एक मुस्लिम समाज का विधायक है. जदयू के टिकट पर जीते जमा खान NDA के इकलौते मुस्लिम विधायक हैं. 

2. NDA के जातीय विधायक दल का संतुलन

केवल आबादी ही नहीं, बल्कि NDA के टिकट पर जीतकर आए विधायकों की जातीय संख्या भी मंत्री पदों के बंटवारे में अहम भूमिका निभाएगी. किस जाति के कितने विधायक जीते हैं? इसके आधार पर भी मंत्रालयों का वितरण किया जाएगा. यह कदम सुनिश्चित करेगा कि पार्टी के भीतर किसी भी जातीय समूह को यह महसूस न हो कि उनकी उपेक्षा की गई है.

NDA के टिकट पर जीते हुए 36 प्रतिशत विधायक सवर्ण, 6 फीसदी यादव, 21 फीसदी गैर यादव ओबीसी विधायक हैं. इसके अलावा 19 फीसदी विधायक EBC, 17 फीसदी विधायक दलित-आदिवासी है. प्रतिशत पर मुस्लिम का आंकड़ा जीरो आता है. आबादी के अनुपात से EBC समाज को कम टिकट दिया गया है, लेकिन एनडीए के पक्ष में आए इस प्रचंड जनादेश में EBC वर्ग की बड़ी भूमिका है, लेकिन मंत्रिमंडल गठन में यह फॉर्मूला फुल प्रूफ नजर नहीं आता है. 

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3. सामाजिक समूहों से मिले समर्थन का इनाम

चुनावों में एनडीए को विभिन्न सामाजिक समूहों से मिले समर्थन को भी ध्यान में रखा जाएगा. जिन समुदायों ने गठबंधन को भारी समर्थन दिया है, उन्हें कैबिनेट में विशेष प्रतिनिधित्व देकर पुरस्कृत किया जा सकता है. यह न केवल उन समूहों का विश्वास बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि भविष्य के चुनावों के लिए भी उनकी लामबंदी सुनिश्चित करेगा. 

VoteVibe एग्जिट पोल के अनुसार लगभग 64 फीसदी सवर्ण समाज ने एनडीए को सपोर्ट किया है. 60 फीसदी दलित-आदिवासी वर्ग ने, 57.7 फीसदी गैर यादव ओबीसी समाज ने एनडीए को समर्थन किया है. ये सारे वर्ग एनडीए के कोर वोट बैंक माने जाते हैं. 

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VoteVibe एग्जिट पोल के अनुसार 19 फीसदी यादव समाज और 12 फीसदी मुस्लिम समाज ने भी NDA को सपोर्ट किया है. इस अनुपात से भी मंत्रिमंडल बनाया जा सकता है. हालांकि एनडीए के पास मुस्लिम समाज का सिर्फ एक विधायक है, फिर यहां भी वहीं दुविधा आएगी. 

4. भौगोलिक प्रतिनिधित्व का महत्व

एक संतुलित कैबिनेट के लिए यह भी जरूरी है कि राज्य के सभी भौगोलिक क्षेत्रों, जैसे मिथिलांचल, मगध, भोजपुर, और सीमांचल, को उचित प्रतिनिधित्व मिले. यदि किसी एक क्षेत्र से अधिक मंत्री बनाए जाते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में असंतोष पैदा हो सकता है. इसलिए, नीतीश कुमार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर क्षेत्र को सरकार में अपनी आवाज महसूस हो. 

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बिहार में नॉर्थ बिहार में 58 फीसदी सीटें है (सारण, तिरहुत, दरभंगा, कोसी और पूर्णिया प्रशासनिक जोन). जबकि साउथ बिहार में 42 फीसदी सीटें हैं (भागलपुर, मुंगेर, मगध, पटना और भोजपुर जोन). 

एनडीए के 56 फीसदी MLA नॉर्थ बिहार से आते हैं, जबकि 44 फीसदी साउथ बिहार से.  सारण से एनडीए के 10 फीसदी विधायक आते हैं. तिरहुत से 22 फीसदी, दरभंगा से 13 फीसदी, कोसी से 5 फीसदी और पूर्णिया प्रशासनिक जोन से 7 फीसदी विधायक हैं. वहीं भागलपुर जोन से 6 फीसदी, मुंगेर से 9 फीसदी, मगध से 10 फीसदी और पटना से 9 फीसदी और भोजपुर से 9 फीसदी विधायक आते हैं.  

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5. भविष्य के चुनावों पर नजर

यह कैबिनेट गठन केवल बिहार तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस मंत्रिमंडल के माध्यम से कुछ विशेष वोट बैंकों को साधने की कोशिश करेगी, ताकि इसका फायदा पड़ोसी राज्यों और राष्ट्रीय राजनीति में भी मिल सके.

कुल मिलाकर, नीतीश कुमार का नया मंत्रिमंडल एक जटिल राजनीतिक और सामाजिक संतुलन का परिणाम होगा, जिसमें हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाया जाएगा.

एक और एंगल है कि जो पिछले जिले और जोन हैं, उनसे ज्यादा प्रतिनिधित्व होना चाहिए. महिलाओं की हिस्सेदारी भी 50 फीसदी होनी चाहिए. लेकिन सिर्फ 12 फीसदी महिलाएं ही विधायक है. ऐसे में इसे हासिल करना मुश्किल है. अंत में इन पांचों फॉर्मूले का मिश्रण क्रायान्वित किया जा सकता है. अब देखने वाली बात होगी नीतीश के नेतृत्व में नए मंत्रिमंडल का गठन कैसे होता है?

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