बिहार चुनाव में महिलाओं का वोट है 'किंगमेकर', NDA और INDIA गठबंधन में लुभाने की होड़, जानें क्या है गणित

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की महिलाएं अब राजनीति के केंद्र में हैं. ऐसे में सवाल है कि आखिर क्‍यों हर दल महिलाओं को अपने पाले में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है. 

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  • बिहार में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में लगातार अधिक मतदान कर राजनीतिक परिणामों को प्रभावित कर रही हैं.
  • बिहार की महिलाएं राजनीति के केंद्र में हैं. हर दल उन्‍हें अपने पाले में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है.
  • आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिला मतदाताओं ने जब-जब अधिक वोट किया है, एनडीए को जीत मिली है और कम वोट तो हार.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की अहमियत हर राजनीतिक दल को समझ आ रही है. एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों महिलाओं को रिझाने की कोशिश में जुटे हैं. आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिला वोटर जिसे ज्यादा वोट करती हैं, सरकार उसी की बनती है. यही कारण है कि राजनीतिक मंचों पर जगह बनाने के लिए जद्दोजहद करने वाली महिलाएं शुक्रवार को राजनीतिक मंचों के केंद्र में थी. आइए जानते हैं कि बिहार में क्‍या है महिलाओं का गणित और राजनीतिक दल उन्‍हें साधने में किस तरह से जुटे हैं. 

बिहार में शुक्रवार को दो अलग-अलग महिलाओं की अलग-अलग मंच से दी प्रतिक्रियाएं सामने आई है. पहली प्रतिक्रिया गया की नूर जहां खातून की हैं, जिन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करते हुए अपनी बात रखी तो दूसरी प्रियंका गांधी से बात कर रही अर्चना की है.  

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राजनीति के केंद्र में हैं महिलाएं

नूर जहां खातून ने कहा, "पहले तो हमलोग अपने पति को ही संपत्ति समझते थे, मगर आज हमलोग के पति हमलोगों को लखपति समझते हैं. पहले मेरे पति बाहर काम करते थे, अब उन्हें भी मैंने अपने पास बुला लिया है. अब वे मेरे साथ ही सिलाई कटाई का काम करते हैं."

वहीं अर्चना ने कहा, "बिहार में कोई रोजगार नहीं है. मेरे पति जमशेदपुर में काम करते हैं. मैं अपने बच्चे को खुद ही स्कूल छोड़ने जाती हूं. जिनके पति, भाई बाहर काम करते हैं वे बहुत संघर्ष करती हैं. इसलिए रोजगार बिहार में होना चाहिए."

इससे साबित होता है कि बिहार की महिलाएं अब राजनीति के केंद्र में हैं. ऐसे में सवाल है कि आखिर क्‍यों हर दल महिलाओं को अपने पाले में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है. 

क्यों महत्वपूर्ण हैं महिला मतदाता?

बिहार में महिला मतदाता पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोट करती हैं. 2010 के चुनाव में 51.12% पुरुषों ने वोट किया था तो 54.49 % महिलाएं वोट के लिए बाहर आई थीं. 2015 के चुनाव में 53.32% पुरुष और 60.48% महिलाओं ने वोट किया था. 

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बीते विधानसभा चुनाव में 54.45 % पुरुषों के मुकाबले 59.69 % महिलाएं वोट के लिए बाहर निकली थीं यानी पिछले 3 चुनावों में हर बार महिलाओं ने ज्यादा वोट किया है. आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि महिला मतदाता क्यों महत्वपूर्ण हैं. 

नीतीश ने महिला मतदाताओं को कैसे साधा?

2005 में सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायती राज में 50% आरक्षण दिया. स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल दी. बाद में दसवीं और बारहवीं, ग्रेजुएशन पास करने पर प्रोत्साहन राशि का भी ऐलान किया. इन फैसलों ने महिलाओं को उनसे जोड़ा. शराबबंदी का फैसला भी महिलाओं की मांग पर किया, जबकि इससे राज्य को भारी आर्थिक नुकसान हुआ. नीतीश कुमार के इन फैसलों के कारण महिला मतदाताओं ने उन्हें सबसे ज्यादा वोट किया. 

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इसे पिछले चुनाव के परिणामों से भी समझा जा सकता है. पहले फेज में पुरुषों (56.8%) ने महिलाओं (54.4%) के मुकाबले 2.4% अधिक वोटिंग की. इस फेज में महागठबंधन ने 71 में से 47 सीटें जीत लीं. हालांकि दूसरे चरण में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले करीब 6 फीसदी अधिक वोट डाले. तब 94 में से महागठबंधन 42 सीटें ही जीत पाया और एनडीए को ज्यादा सीटें मिली. तीसरे चरण में दोनों का अंतर 11% हो गया और महागठबंधन को बुरी हार मिली. तीसरे चरण की 78 सीटों में से एनडीए को 52 सीटें मिली यानी करीब दो तिहाई. 

आंकड़े बताते हैं कि महिला मतदाताओं ने जब-जब अधिक वोट किया है, एनडीए को जीत मिली है और कम वोट तो हार. इस वर्ग को अपने साथ बनाए रखने के लिए इस बार सरकार ने 10 हजार रुपए भेजने समेत कई अन्य ऐलान किए हैं. 

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नीतीश का वोट बैंक, महागठबंधन की नजर

महागठबंधन के दल जानते हैं कि महिला मतदाताओं को अपने पाले में लाए बगैर वे सत्ता में नहीं आ सकते हैं. इसलिए उन्होंने महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपए महीने देने का ऐलान किया है. इस तरह की योजनाएं महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश तक में गेम चेंजर रही हैं. प्रियंका गांधी ने आज भूमिहीन परिवारों को 3 से 5 डिसमिल जमीन देने का ऐलान किया है. इस जमीन का मालिकाना हक महिलाओं के पास होगा. पार्टी इसे दस हजार रुपए का काट मान रही है. 

प्रियंका गांधी ने कहा, "क्या वे हर महीने 10 हजार देंगे? चुनाव खत्म होने दीजिए यह भी बंद हो जाएगा. आप समझदारी से हर पार्टी को पहचानो. हम हर महीने ढाई हजार देंगे." 

पार्टी को लगता है कि महिलाओं के लिए घोषणाएं महिला नेता करे तो इससे महिलाएं ज्यादा जुड़ाव महसूस करेंगी. इसलिए इसका ऐलान प्रियंका गांधी से कराया गया. 

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किधर जाएंगी बिहार की महिला म‍तदाताएं? 

सदाकत आश्रम में प्रियंका गांधी को सुनने आईं कुम्हरार की ऋतु देवी कहती हैं, "एक बार दस हजार रुपए मिलने से ज्यादा फायदा महीने-महीने ढाई हजार मिलने में है. हम चाहते हैं कि इंडिया गठबंधन की सरकार बने तो हमें 30 हजार सालाना मिलेंगे." वहीं 10 हजार रुपए पाने वाली सुधा देवी कहती हैं, "जो हमको ताके हैं, हम भी उनको ताकेंगे (जो हमारे लिए सोच रहे हैं, हम उनके लिए सोचेंगे). 10 हजार के बाद 2 लाख मिलेंगे, रोजगार चला तो ढाई हजार से ज्यादा कमाएंगे.  इसलिए यही सरकार ठीक है."

कांग्रेस दफ्तर में ही एक महिला कार्यकर्ता ने कहा, "महिलाओं के लिए जमीन, घर, जेवर जैसी चीजें हर महीने मिलने वाली राशि से ज्यादा महत्वपूर्ण है. वे इन चीजों से ज्यादा जुड़ाव महसूस करती हैं. इसलिए हमें उम्मीद है कि वह वोट बैंक हमारे साथ आएगा. वे एक बार दस हजार मिलने से एनडीए को वोट नहीं करेंगी."

कांग्रेस भले ही सिर्फ एक बार दस हजार रुपए बनाम 30 हजार सालाना का नैरेटिव बना रही हो लेकिन महिलाओं के एक वर्ग को लंबे समय से नीतीश कुमार की योजनाओं का लाभ मिलता रहा है. भोजपुर की रीता देवी इसकी उदाहरण हैं. रीता देवी उन महिलाओं में है जिन्हें 10 हजार रुपए मिले हैं. 

प्रधानमंत्री से बातचीत के दौरान रीता देवी ने कहा, "जब हम पढ़ते थे तो हमें साइकिल भी मिला. अब 10 हजार रुपए भी मिले हैं." 

रीता देवी जैसी महिलाओं की संख्या लाखों में है. इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार के इस वोट बैंक में महागठबंधन कितना सेंध लगा पाता है. 

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