- बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एनडीए और महागठबंधन दोनों दल सीट बंटवारे को लेकर सक्रियता दिखा रहे हैं.
- जीतन राम मांझी ने पहले सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया, बाद में इसे केवल उत्साह बढ़ाने वाला बताया.
- महागठबंधन में झामुमो और लोक जनशक्ति पार्टी के शामिल होने से सामाजिक और जातीय समीकरणों में बदलाव आएगा.
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही एनडीए और महागठबंधन, दोनों ही खेमे में सीट बंटवारे को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. चुनाव की रणभेरी बजने में अभी देर है, लेकिन तमाम दल अपने जातीय और सामाजिक समीकरणों के मुताबिक सीटों की इच्छा लिए तैयारी में लगे हैं. इस बीच दोनों ही दलों के नेताओं को अतिउत्साह भी दिखा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बक्सर की सभा में अचानक राजपुर सीट से प्रत्याशी का नाम उछालकर एनडीए की ओर से बड़ा संदेश दिया, तो वहीं महागठबंधन ने पशुपति कुमार पारस और झामुमो को साथ जोड़कर समीकरण बदलने की तैयारी कर ली है. सीटों को लेकर बयानबाजी, पलटी और गठबंधन साधने की कवायद ने माहौल को दिलचस्प बना दिया है.
नीतीश का अचानक दांव
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को बक्सर जिले में योजनाओं का उद्घाटन करने के बाद एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में ऐसा कदम उठाया, जिसकी उम्मीद वहां मौजूद नेताओं को भी नहीं थी. उन्होंने पूर्व विधायक संतोष निराला को मंच से ही एनडीए उम्मीदवार घोषित कर दिया और कार्यकर्ताओं से अपील की- 'इन्हें जिताइएगा ना, ये आपके लिए काम करने वाले हैं.'
नीतीश के इस कदम ने साफ कर दिया कि सीट बंटवारे की औपचारिक बातचीत शुरू होने से पहले ही जेडीयू अपनी मजबूत पकड़ वाले इलाकों में प्रत्याशी तय करने की रणनीति पर है.
मांझी की पलटी और चिराग पर निशाना
एनडीए सहयोगी और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने पहले दावा किया था कि अगर गठबंधन में उचित जगह नहीं मिली तो उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है. गुरुवार को दिए गए इस बयान से एनडीए में हलचल मच गई. लेकिन दो दिन बाद ही मांझी ने इसे हल्की बात बताते हुए सफाई दी कि यह केवल 'कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए' कहा गया था.
हालांकि सफाई के साथ ही मांझी ने चिराग पासवान को भी घेरा. उन्होंने याद दिलाया कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग की बगावत से जेडीयू की सीटें प्रभावित हुई थीं. मांझी का यह हमला एनडीए के भीतर चल रहे सूक्ष्म खींचतान की ओर इशारा करता है.
महागठबंधन की गोटियां कब तक फिट बैठेगी?
विपक्षी खेमे में भी सीट बंटवारे को लेकर मंथन शुरू हो चुका है. शनिवार को तेजस्वी यादव के सरकारी आवास पर राजद, कांग्रेस और वीआईपी के नेताओं की बैठक हुई. इसमें सीटों के बंटवारे के साथ-साथ नए सहयोगियों को जोड़ने पर चर्चा हुई. सूत्रों का कहना है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और पशुपति कुमार पारस की लोक जनशक्ति पार्टी को महागठबंधन में शामिल करने पर सहमति बन गई है.
कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने संकेत दिया कि दिल्ली में पार्टी आलाकमान की मौजूदगी में जल्द ही अंतिम फॉर्मूला तय हो सकता है. वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने भी कहा कि सीट बंटवारे का फार्मूला '15 सितंबर तक साफ हो जाएगा.'
झामुमो और पारस की लोजपा का महत्व
महागठबंधन में पारस और झामुमो का जुड़ना सिर्फ संख्यात्मक मजबूती नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों में भी बड़ा असर डालता है. पशुपति पारस दिवंगत रामविलास पासवान के छोटे भाई हैं. उनका आना दलित राजनीति के उस वोट बैंक को खींचने की कोशिश है, जिस पर अब तक NDA का मजबूत दावा रहा है.
दूसरी ओर, झामुमो और सोरेन परिवार का जुड़ाव सीमांचल और झारखंड सीमा से लगे इलाकों में आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटों को साधने की रणनीति का हिस्सा है. यानी महागठबंधन ने जातीय और सामाजिक आधार पर अपने दायरे का विस्तार करने का संकेत दिया है.
दोनों खेमों के औपचारिक ऐलान का इंतजार
बिहार की राजनीति में हर चुनाव से पहले सीटों को लेकर सौदेबाज़ी और दबाव की राजनीति आम है. इस बार भी वही तस्वीर बन रही है- एक ओर एनडीए में अंदरूनी खींचतान, दूसरी ओर महागठबंधन में नए सहयोगी जोड़ने की कवायद.
नीतीश कुमार के अचानक दांव से लेकर मांझी की पलटी और चिराग पर हमले तक, ये बताता है कि सीट बंटवारा सिर्फ गणित नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश और मनोवैज्ञानिक दबाव का खेल भी है.
वहीं महागठबंधन पारस और झामुमो जैसे नेताओं के सहारे सामाजिक समीकरण मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. अब असली तस्वीर तभी साफ होगी जब दोनों खेमे औपचारिक तौर पर सीटों का ऐलान करेंगे.














