बिहार विधानसभा चुनाव में कई ऐसी सीटे हैं, जहां पर महागठबंधन के उम्मीदवार आपस में फाइट कर रहे हैं. इन सीटों में से एक सीट वारिसलीगंज भी है. इस सीट पर कांग्रेस ने भी उम्मीदवार उतारा है. जबकि आरजेडी ने अशोक महतो की पत्नी को टिकट दिया है. कुल मिलाकर आपस की इस लड़ाई से एनडीए को फायदा मिल सकता है. नवादा के वारिसलीगंज में कांग्रेस के सतीश कुमार और RJD की अनीता कुमारी (अशोक महतो की पत्नी) आमने-सामने हैं. वारिसलीगंज में बाहुबली व प्रभावशाली परिवारों की मौजूदगी निर्णायक है. अनीता का टिकट स्थानीय प्रभाव कायम रखने की रणनीति है. कांग्रेस ने शुरुआती सूची में न होने के बावजूद सिंबल दिया, जो स्थानीय समझौते के कारण हो सकती है.
अरुणा देवी पर बीजेपी ने जताया भरोसा
मौजूदा विधायक और एनडीए की भाजपा उम्मीदवार अरुणा देवी से अनीता देवी का मुकाबला सीधा है, जो एक अन्य प्रभावशाली नेता अखिलेश सिंह की पत्नी भी हैं. नवादा जेल ब्रेक मामले में 17 साल जेल में बिताने के बाद दिसंबर 2023 में रिहा हुए अशोक महतो इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं. हालांकि उन्हें दोषी ठहराए जाने के कारण चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, फिर भी वह कई हफ्तों से अपनी पत्नी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं.
अशोक महतो और अखिलेश सिंह के बीच प्रतिद्वंद्विता लगभग तीन दशकों से वारिसलीगंज-नवादा-नालंदा क्षेत्र की राजनीति पर हावी रही है. 1990 के दशक में जाति और क्षेत्र के वर्चस्व की लड़ाई के रूप में शुरू हुआ यह मामला धीरे-धीरे उनके परिवारों के बीच राजनीतिक युद्ध में बदल गया. वारिसलीगंज का चुनावी इतिहास इस कड़ी प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है.
बाहुबलियों की पत्नियों के बीच मुकाबला
2000 में, अरुणा देवी ने पहली बार जद(यू) के टिकट पर यह सीट जीती थी. 2005 में, अशोक महतो के करीबी प्रदीप महतो चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन फरवरी का चुनाव हार गए, लेकिन अक्टूबर में हुए पुनर्निर्वाचन में उन्होंने अरुणा देवी को हरा दिया. प्रदीप महतो ने 2010 में यह सीट बरकरार रखी, लेकिन अरुणा देवी ने 2015 में फिर से जीत हासिल की और 2020 में भाजपा के टिकट पर राजद की आरती सिंह को 25,000 से ज़्यादा वोटों से हराकर अपनी स्थिति मज़बूत कर ली. अब, एक और बड़े मुकाबले के लिए मंच तैयार है – इस बार दो प्रतिद्वंद्वी बाहुबलियों की पत्नियों के बीच.