- बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग सत्रह दशमलव सात प्रतिशत है, जो पचास से सत्तर सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है
- 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने दस मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन कोई भी जीत नहीं पाया था
- राजद ने इस बार कम से कम नौ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो उनकी अब तक की सबसे कम संख्या है
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17.7 प्रतिशत है. कई सीटों पर मुस्लिम वोट 35 से 40 प्रतिशत तक हैं. 2020 में JDU ने 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था लेकिन इसमें से एक भी चुनाव जीत नहीं सका था. इस सूची के मुताबिक राजद ने नौ मुसलमानों को टिकट दिया है. यह पहली बार है कि राजद ने इतनी कम संख्या में मुसलमानों को टिकट दिया है. वहीं राजद की सहयोगी कांग्रेस की ओर से अब तक घोषित 60 उम्मीदवारों में 10 मुसलमानों के नाम शामिल हैं. इस तरह से मुसलमानों को टिकट देने के मामले में कांग्रेस ने राजद से बाजी मार ली है.
गठबंधन में शामिल दलों ने अब तक केवल पांच सीटों पर ही मुसलमान उम्मीदवार उतारे हैं. इसमें भी सबसे अधिक टिकट नीतीश कुमार की जदयू ने दिए हैं. जदयू की सूची में चार मुसलमान उम्मीदवार शामिल हैं. इनमें दो महिलाएं और दो पुरुष हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने केवल एक मुसलमान को टिकट दिया है. इसके अलावा एनडीए में शामिल बीजेपी, हम और रालोपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है. बीजेपी 101, हम और रालोपा छह-छह सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं.
अगर हम पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू ने 10 सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसका कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया था. इसी तरह से आरजेडी ने 17 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. उनमें केवल आठ ही जीत पाए थे. वहीं कांग्रेस ने 10 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. उसके केवल चार उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए थे. असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 20 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. उनमें केवल पांच ही जीत पाए थे. इसी तरह से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी.
बिहार चुनाव का बिगुल बज चुका है. राज्य में अगले महीने नवंबर में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं. ऐसे में राज्य के 17.7 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम वोटर लगभग 50-70 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राज्य में मुस्लिमों की कुल आबादी 17.7% है, लेकिन विधानसभा में उनकी हिस्सेदारी 8 प्रतिशत से भी कम है. मौजूदा चुनाव में राजनीतिक दलों ने 60 के करीब मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं.
साल 2023 में बिहार सरकार ने जातिगत गणना कराई थी. जिसमें मुसलमानों की संख्या 2.30 करोड़ दर्ज की गई थी. इन आंकड़ों के आधार पर बिहार में 17.7 फीसदी मुसलमान है. लालू-नीतीश की सियासत के शुरुआती दौर में मुस्लिम विधायक चुनकर बड़ी संख्या में विधानसभा पहुंचते थे. आज के दौर में यह संख्या आधी रह गई है.
मुस्लिम विधायकों की संख्या में देखी गई गिरावट
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 से लगातार मुस्लिम विधायकों की संख्या में गिरावट देखी गई है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस गिरावट की वजह जनसंख्या अनुपात नहीं, बल्कि पार्टियों के टिकट बंटवारा करने की नीति में बदलाव से हुई है. वहीं बिहार में मुस्लिम बाहुल इलाकों में आज के चुनाव में गैर-मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए जा रहे हैं. वर्ष 1990 के दशक में राजद और जदयू गठबंधन में सामाजिक न्याय और राजनीति को मजबूती दी थी, तब मुस्लिम समुदाय को प्रतिनिधित्व और एक पहचान हासिल हुई थी. लेकिन पिछले एक दशक में NDA-JDU गठबंधन और राजनीतिक समीकरणों की वजह से मुस्लिमों की मौजूदगी सीमित होकर रह गई.
साल 2020 के चुनावी आंकड़े
बात करें साल 2020 की तो 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 19 मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. इसमें 8 विधायक राजद की ओर से थे. 5 विधायक एआईएमएम, 4 कांग्रेस, 1 बीएसपी और 1 सीपीआई एमएल से थे. इस चुनाव में मुस्लिमों की भागीदारी 7.81 प्रतिशत रही थी. वहीं नीतीश कुमार की जनता दल यूनाईटेड ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. जिसमें सभी को हार का मुंह देखना पड़ा था. वर्ष 2020 के आंकड़ों को देखा जाए तो मुस्लिमों की भागीदारी ज्यादा थी, वहीं साल 2015 में 24 मुस्लिम विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे. जिसमें 12 राजद, 6 कांग्रेस, 5 जदयू और एक सीपीआई एमएल का शामिल था.
2025 में मुस्लिमों उम्मीदवारों की संख्या
बिहार विधानसभा के लिए दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं. जो 6 नवंबर और 11 नवंबर को होंगे. इस बीच राष्ट्रीय जनता दल ने 143 उम्मीदवारों की लिस्ट में 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. पार्टी ने साल 2020 में 144 सीटों की लिस्ट में 18 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 8 ने जीत हासिल की थी. वहीं, कांग्रेस ने 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है. 2020 के चुनाव में 8 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिसमें सिर्फ 4 के हाथ कामयाबी लगी थी.कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माले) ने 20 उम्मीदवारों की सूची में 2 मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा है. पार्टी के 2020 में 19 उम्मीदवारों में से 3 मुस्लिम चेहरे थे. जिसमें से 1 ने जीत दर्ज की थी.
वहीं मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं है. पार्टी ने पिछले चुनाव में 2 मुस्लिमों को टिकट दिया था, जो एनडीए गठबंधन के साथ लड़े थे, दोनों को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में जदयू की ओर से 101 की लिस्ट में सिर्फ 4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है. पिछले चुनाव की बात करें तो पार्टी ने 11 मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया था. जिसमें से एक ने भी जीत दर्ज नहीं की थी.
वहीं चिराग पासवान की पार्टी ने 29 उम्मीदवारों की सूची में सिर्फ 1 मुस्लिम उम्मीदवार को मौका दिया है. जो किशनगंज की बहादुरगंज सीट से चुनाव मैदान में हैं. पिछले चुनाव में लोजपा ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें 7 मुस्लिम उम्मीदवार थे. एक भी जीतने में कामयाब नहीं हो पाया था. असददुद्दीन औवैसी की पार्टी इस बार 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से 23 मुस्लिम उम्मीदवार हैं. 2024 के चुनाव में पार्टी ने 20 प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें 5 ने जीत दर्ज की थी. उपलब्ध जानकारी के अनुसार बसपा ने भी 4 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
पिछले चुनावों में मुस्लिमों की भागीदारी
साल 1985 में मुस्लिमों की भागीदारी 10 फीसदी से ज्यादा रही. बिहार में 324 सीटों पर हुए चुनाव में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं बिहार की राजनीति में मुस्लिम समुदाय के योगदान को दरकिनार नहीं किया जा सकता. इस समुदाय के लोग हमेशा से ही राज्य की 50 से 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहे हैं. मुस्लिमों को सभी पार्टियों के वादे भरोसा दिलाते हैं. फिलहाल राजनीतिक दलों के तरफ से वोट के लिए सब कुछ किया जा सकता है, लेकिन सत्ता में साझेदारी के वक्त सभी दल कंजूसी कर जाते हैं.














