बगहा विधानसभा सीट: सीमावर्ती इलाका, जहां विकास, विरासत और वोटिंग पैटर्न तय करते हैं सियासी समीकरण

बगहा की भौगोलिक और सांस्कृतिक बनावट इसे विशेष पहचान देती है. नारायणी (गंडक) नदी इस क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाती है, जो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को समर्थन देती है.

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नई दिल्ली:

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित बगहा विधानसभा क्षेत्र राज्य की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाता रहा है. बगहा विधानसभा सीट वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और सीट संख्या 4 के अंतर्गत आती है. यह वर्तमान में सामान्य (ओपन) वर्ग के लिए आरक्षित है, हालांकि 2008 के परिसीमन से पहले यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ करती थी.

यह क्षेत्र बगहा नगर परिषद सहित बगहा सामुदायिक विकास खंड और सिधाव ब्लॉक की कुछ पंचायतों को सम्मिलित करता है. भौगोलिक दृष्टि से भी बगहा विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह नेपाल की सीमा से सटा हुआ है, जहां त्रिवेणी संगम जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल मौजूद हैं.

एक ओर नेपाल का त्रिवेणी गांव और दूसरी ओर चंपारण का भैंसालोटन गांव के बीच नेपाल की सीमा पर वाल्मिकीनगर से 5 किलोमीटर की दूरी पर त्रिवेणी संगम है. त्रिवेणी से 8 किलोमीटर दूर बगहा-२ प्रखंड के दरवाबारी गांव के पास बावनगढ़ी किले का खंडहर मौजूद है. पास ही तिरेपन बाजार है. इस प्राचीन किले के पुरातात्विक महत्व के बारे में तथ्यपूर्ण जानकारी का अभाव है.

त्रिवेणी संगम स्थल की बात करें तो यहां गंडक के साथ पंचनद तथा सोनहा नदी का मिलन होता है. श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार विष्णु के प्रिय भक्त 'गज' और 'ग्राह' की लड़ाई इसी स्थल से शुरू हुई थी जिसका अंत हाजीपुर के निकट कोनहारा घाट पर हुआ था. हरिहर क्षेत्र की तरह प्रत्येक साल माघ संक्रांति को यहां मेला लगता है.

बगहा की भौगोलिक और सांस्कृतिक बनावट इसे विशेष पहचान देती है. नारायणी (गंडक) नदी इस क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाती है, जो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को समर्थन देती है.

जनसंख्या और मतदाता आंकड़ों को देखें तो यह क्षेत्र चुनावी दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन जाता है. वर्ष 2024 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, बगहा की कुल जनसंख्या लगभग 5.37 लाख है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,82,119 और महिलाओं की संख्या 2,55,039 है. वहीं, 01 जनवरी 2024 की अर्हता तिथि के आधार पर यहां कुल 3,28,670 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें 1,73,328 पुरुष और 1,55,324 महिलाएं शामिल हैं.

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इतिहास की बात करें तो बगहा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है. यह क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. 1957 से लेकर 1985 तक कांग्रेस ने यहां लगातार आठ बार जीत दर्ज की. उस समय केदार पांडे जैसे नेता, जो बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे, यहां से चुने गए. इसी दौरान नरसिंह बैथा और त्रिलोकी हरिजन जैसे नेताओं ने भी कांग्रेस की पकड़ को मजबूत बनाए रखा. लेकिन 1990 में जनता दल के प्रत्याशी पूर्णमासी राम ने कांग्रेस के इस वर्चस्व को तोड़ा और अगले 25 वर्षों तक बगहा की राजनीति में छाए रहे. पूर्णमासी राम ने जनता दल से लेकर राजद और फिर जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और कुल मिलाकर पांच बार जीत दर्ज की.

2005 के बाद से बगहा की राजनीति में एक नया दौर शुरू हुआ, जिसमें मतदाताओं ने किसी एक नेता या पार्टी को लगातार समर्थन नहीं दिया. 2010 के चुनाव में जेडीयू के प्रभात रंजन सिंह ने भारी अंतर से जीत हासिल की, वहीं 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को क्रमशः राघव शरण पांडेय और राम सिंह ने जीत दिलाई. 2020 के चुनाव में राम सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 30,020 वोटों से हराकर जीत दर्ज की.

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जल संसाधन, सीमावर्ती सुरक्षा, वन क्षेत्र, और सांस्कृतिक विरासत—इन सभी पहलुओं को जोड़कर देखें तो बगहा विधानसभा सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र है.

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