रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर RJD की हैट्रिक, ओसामा शाहाब की 9,248 वोटों से जीत; जदयू को बड़ा झटका

रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर 2020 में आरजेडी के हरिशंकर यादव ने एलजेपी के मनोज कुमार सिंह को करीब 18 हजार वोटों से हराया था. सिवान जिले की यह सीट अब राजद का मजबूत गढ़ मानी जाती है.

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  • सिवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण और स्थानीय राजनीति का प्रभाव रहा है
  • 2020 के चुनाव में राजद के हरिशंकर यादव ने लोजपा के मनोज कुमार सिंह को लगभग सत्रह हजार वोटों से हराया
  • यादव, राजपूत, भूमिहार और मुसलमान इस विधानसभा क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली सामाजिक वर्ग माने जाते हैं
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सिवान:

सिवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट से इस बार भी राजद ने अपना दबदबा कायम रखा है. मतगणना पूरी होने के बाद आरजेडी प्रत्याशी ओसामा शाहाब ने जीत दर्ज की है. उन्हें कुल 88,278 वोट मिले, जबकि जेडीयू उम्मीदवार विकास कुमार सिंह को 9,248 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. यह जीत रघुनाथपुर में राजद के लगातार बढ़ते जनाधार की एक और पुष्ट‍ि मानी जा रही है.

रघुनाथपुर सीट बिहार की उन महत्वपूर्ण सीटों में शामिल है जहां जातीय समीकरण और स्थानीय नेतृत्व दोनों का समान असर होता है. सिवान लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली यह सीट कांग्रेस, जेडीयू और राजद तीनों ही दलों के सियासी उतार-चढ़ाव का गवाह रही है. 1951 में पहले चुनाव में कांग्रेस के राम नंदन यादव यहां से विजयी हुए थे, जबकि 2020 में आरजेडी के हरिशंकर यादव ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की थी.

उस चुनाव में हरिशंकर यादव ने लोजपा (LJP) के मनोज कुमार सिंह को 17,965 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. हरिशंकर को 67,757 वोट, जबकि मनोज कुमार सिंह को 49,792 वोट मिले थे. इस जीत के बाद रघुनाथपुर राजद का मजबूत गढ़ बनकर उभरा था.

इस बार राजद ने ओसामा शाहाब पर दांव लगाया, और उन्होंने शुरू से ही बढ़त बनाकर मुकाबले को अपने पक्ष में रखा. जातीय-सामाजिक संरचना भी उनके पक्ष में जाती दिखी. यादव, राजपूत, भूमिहार और मुस्लिम मतदाताओं की प्रभावी मौजूदगी इस सीट को बेहद राजनीतिक रूप से संवेदनशील बनाती है. स्थानीय स्तर पर आरजेडी की लगातार सक्रियता, हरिशंकर यादव की पिछली दो जीतों से बनी मजबूत संगठनात्मक संरचना और सामाजिक गठजोड़ ने ओसामा शाहाब की राह आसान की.

वहीं, जेडीयू लगातार कोशिशों के बावजूद इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाई. विकास कुमार सिंह ने मुकाबला कड़ा करने की कोशिश जरूर की, लेकिन सामाजिक समीकरण और स्थानीय नेटवर्क उनके पक्ष में नहीं आ पाया.

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